नई दिल्ली: अखिलेश यादव कुछ दिन बाद किसी भी सदन के सदस्य नहीं रहेंगें. देश के किसी सदन के वे मेंबर नहीं होंगें और ये सब अखिलेश यादव की ज़िन्दगी में 18 साल बाद होने जा रहा है. यूपी या केंद्र में किसी भी सरकार को वे हाउस में खुद नहीं घेर पाएंगे. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पूर्व सांसद, पूर्व मुख्यमंत्री के बाद अब पूर्व एमएलसी यानी पूर्व विधान परिषद् सदस्य होने जा रहे हैं. फिलहाल वे योगी सरकार को सदन में किसी भी मुद्दे पर खुद घेर नहीं पाएंगे ,इसके लिए उन्हें अपनी पार्टी के सदस्यों का सहारा लेना पड़ेगा.
साल 2000 में अखिलेश यादव ने की थी सियासी सफर की शुरुआत
देश के सबसे बड़े सियासी परिवार से ताल्लुक रखने वाले अखिलेश यादव ने साल 2000 से अपने सियासी सफर की शुरुआत की. कन्नौज उपचुनाव में सांसद चुने गए. इसके बाद वे दो बार और सांसद बने. साल 2009 में वे कन्नौज और फ़िरोज़ाबाद दोनों सीट से जीते लेकिन बाद में फ़िरोज़ाबाद सीट उन्होंने छोड़ दी. तीन बार सांसद बन चुके अखिलेश यादव ने साल 2012 में सांसद के पद से इस्तीफ़ा दिया क्योंकि उन्हें यूपी का सीएम की कुर्सी मिल गयी थी.
सीएम बनने के बाद उनका यूपी के किसी न किसी सदन का सदस्य होना जरूरी था लिहाज़ा वे छह साल के लिए एमएलसी यानी विधान परिषद् सदस्य बन गए. ये कार्यकाल पांच मई को ख़त्म हो जायेगा और अखिलेश यादव के नाम के आगे पूर्व लग जाएगा. लोकसभा चुनाव तक वे देश के किसी सदन का सदस्य नहीं बनेगें.