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अब अमेरिकी वैक्सीन देगी भारत में कोरोना को मात ?

फाइज़र के इस टीके के 21 दिनों के भीतर दो डोज़ लगाने होंगे. इसे स्टोर करने के लिए माइनस 25 से माइनस 15 डिग्री तक तापमान चाहिए.

नई दिल्ली: कोरोना के कहर से जूझ रहे भारत के लिए अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर की वैक्सीन क्या उम्मीद की किरण साबित होगी? दुनिया के कई देशों में इस वैक्सीन का असर देखने के बाद फ़िलहाल यही कहा जा सकता है कि कोरोना से लड़ने में यह टीका अब तक सबसे ज्यादा कारगर साबित हो रहा है,लिहाजा भारत के लिए भी यह रामबाण बन सकता है.

फाइजर ने इसे जर्मन कंपनी बायोएनटेक के साथ मिलकर बनाया है और इसे 95 फीसदी तक असरदार बताया जा रहा है. हालांकि हमारी दोनों देसी वैक्सीन के मुकाबले इसकी कीमत कुछ ज्यादा है लेकिन सरकार के लिए इस वक़्त लोगों की जिंदगी बचाने से बड़ी प्राथमिकता और कोई नहीं होनी चाहिए. अंतराष्ट्रीय बाजार में इसकी दो डोज़ की कीमत करीब तीन हज़ार रुपये है,लिहाजा इसे खरीदने के लिए सरकार को ज्यादा मोल-भाव करने के पचड़ों में पड़ने से बचना चाहिए.

बेहतर तो यह होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद ही अपनी अगुवाई में एक ऐसी कमिटी बना दें जो विदेशों से खरीदी जाने वाली वैक्सीन, ऑक्सिजन व वेंटिलेटर जैसी जीवनरक्षक चीजों की प्रक्रिया को जल्द व पारदर्शी तरीके से पूरा करे और जहां भ्रष्टाचार की रत्ती भर भी गुंजाइश न रहे. वैसे भी फाइजर ने फैसला लिया है कि वो भारत में कोविड -19 वैक्सीन की आपूर्ति केवल सरकारी चैनल के माध्यम से ही करेगी. इसका मतलब है कि यह अमेरिकी वैक्सीन भारत में केवल सरकारी अस्पतालों में ही उपलब्ध होगी. वैसे होना भी यही चाहिए कि केंद्र सरकार पूरा स्टॉक खरीदे और फिर उसे आबादी व जरूरत के मुताबिक सभी राज्यों को उपलब्ध कराए.

फार्मा जाइंट के एक प्रवक्ता ने कहा, “कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच फाइजर अपने वैक्सीनेशन कार्यक्रम में सरकार को प्राथमिकता देगा और केवल सरकारी कॉन्ट्रैक्ट के माध्यम से ही COVID-19 वैक्सीन की सप्लाई करेगा."

फाइज़र के इस टीके के 21 दिनों के भीतर दो डोज़ लगाने होंगे. इसे स्टोर करने के लिए माइनस 25 से माइनस 15 डिग्री तक तापमान चाहिए. अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक टीके की कीमत करीब 1500 रुपये है. जाहिर है कि भारत में इसके इस्तेमाल से पहले इसकी कीमत को लेकर चर्चा होगी. संभव है कि भारत की आबादी के लिहाज से मिलने वाले खरीद आर्डर को देख अमेरिकी कंपनी कीमत में कुछ रियारत भी कर दे.

फाइजर की खास बात यह भी है कि उसने 12 साल से कम उम्र के बच्‍चों के लिए अपने कोविड-19 वैक्‍सीन  का ट्रायल पिछले महीने से ही शुरू कर दिया है. कंपनी ने उम्‍मीद जताई है कि वह 2022 की शुरुआत में बच्‍चों के लिए कोरोना वायरस टीका बाजार में पेश करने में सफल होगी. फाइजर के प्रवक्‍ता शैरोन कैस्टिलो के मुताबिक़ 26 मार्च को वॉलेंटियर्स के पहले बैच को शुरुआती ट्रायल के तहत पहला इंजेक्‍शन दिया गया. फाइजर और बायोएनटेक के वैक्‍सीन को 16 साल और इससे कम उम्र के बच्‍चों पर ट्रायल के लिए यूएस रेगूलेटर्स ने पिछले साल दिसंबर में ही अपनी मंजूरी प्रदान की थी.

हालांकि वैक्‍सीन को तैयार करने वाली सहयोगी कंपनी बायोएनटेक की चीफ मेडिकल ऑफिसर ने कहा है कि लोगों को इस वैक्‍सीन का तीसरा शॉट भी लगवाना पड़ सकता है. बायोएनटेक की को-फाउंडर और सीएमओ डॉक्‍टर ओजलेम ट्रूसी के मुताबिक कोविड-19 वैक्‍सीन की फिलहाल दो डोज दी जा रही हैं. लेकिन वायरस को रोकने और इम्‍युनिटी मजबूत करने के लिए वैक्‍सीन की तीसरी डोज की जरूरत भी पड़ सकती है.

फाइजर के सीईओ अल्‍बर्ट बोरला ने भी उनके इस बयान से सहमति जताई है. डॉक्‍टर ओजलेम ने ही फाइजर के साथ मिलकर इस वैक्‍सीन को डेवलप किया है.उनका मानना है कि जिस तरह से हर साल सीजनल फ्लू से बचने के लिए लोग दवाई लेते हैं, उसी तरह से कोविड-19 की वैक्‍सीन हर साल लेनी पड़ सकती है. डॉक्‍टर ट्रूसी की मानें तो वैक्‍सीन से मिली हुई इम्‍युनिटी समय के साथ कमजोर पड़ सकती है.उनका कहना था कि 12 माह के अंदर पूरी तरह से वैक्‍सीनेट होने के बाद तीसरी बार वैक्‍सीन को लगाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है. बोरला की मानें तो लोगों को हर साल इस तरह के बूस्‍टर शॉट की जरूरत पड़ सकती है.

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