(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
कोरोना वायरस से लड़ाई में नई रणनीति, अब जिला स्तर पर रखी जाएगी इंफेक्शन पर नजर
अब जिला स्तर पर उन लोगों के टेस्ट होंगे जिनमें कोरोना वायरस के लक्षण नहीं हैं. हर हफ्ते ऐसे 200 लोगों की जांच की जाएगी. इसके लिए हर जिले में छह सरकारी और चार प्राइवेट अस्पतालों को चुना जाएगा, जहां से सैंपल इकट्ठा किए जाएंगे.
नई दिल्ली: कोरोना वायरस को हराने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं. इसी कड़ी में पूरे देश में कोरोना वायरस के लिए पुख्ता सर्विलांस तैयार होगा. इसका मकसद जिले के स्तर पर कोरोना के इंफेक्शन पर नजर रखना है. इसके लिए हर जिले में हर हफ्ते कोरोना का 200 टेस्ट और एक महीने में 800 टेस्ट करना जरूरी होगा. ये टेस्ट रूटीन टेस्ट से अलग होंगे.
ये टेस्ट उन लोगों का किया जाएगा, जिनमें कोरोना का कोई लक्षण नहीं है. इससे हर जिले में आम लोगों के शरीर में कोरोना वायरस की मौजूदगी का तत्काल पता लगाया जा सकेगा और बाद में उसके नियंत्रण के लिए विशेष कदम उठाए जा सकेंगे.
स्वास्थ्य मंत्रालय के जारी नए दिशा निर्देश में सभी राज्यों को हर जिले में कोरोना के जांच का इंतजाम करने के लिए कहा गया है. इसके लिए हर जिले में छह सरकारी और चार प्राइवेट अस्पतालों को चुना जाएगा, जहां से सैंपल इकट्ठा किए जाएंगे.
जिलों में जिन लोगों का सैंपल लिया जाएगा, उन्हें भी दो ग्रुप में बांटा गया है. पहला ग्रुप हाई-रिस्क ग्रुप होगा जिसमें हेल्थ केयर वर्कर्स को रखा गया है और इनके हर हफ्ते 100 सैंपल लिए जाएंगे, यानि महीने 400 सैंपल की जांच होगी.
दूसरा ग्रुप में नॉन आईएलआई (इन्फ्लूएंजा लाइक इल्लनेस) और गर्भवती महिलाएं होंगी यानि बिना सर्दी-खांसी-जुकाम वाले मरीजों और गर्भवती महिलाओं को लो-रिस्क ग्रुप में रखा गया है. इन दोनों के हर हफ्ते 50 सैंपल लिए जाएंगे. एक महीने में 200 सैंपल की कोरोना की जांच होगी.
लेबोरेटरी टेस्ट और पूलिंग, आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए गले या नाक के सैंपर लिए जाएंगे. सैंपल को 25 के ऑनटाइम पूल में टेस्ट किया जाना चाहिए. इस सैंपल पूलिंग के रिजल्ट सिर्फ निगरानी उद्देश्यों के लिए है. इसका उपयोग व्यक्ति के निदान के लिए नहीं किया जाना चाहिए. मरीजों का एलिसा टेस्ट के लिए गले और नाक से लिए गए सैंपल के अलावा आईजीजी एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए ब्लड सैंपल लेना होगा.
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