नई दिल्ली: देश भर में कोरोना का प्रकोप लगातार जारी है लेकिन अब तनाव की बात ये बन गई है कि संक्रमणों के मामले ग्रामीण इलाकों में भी बढ़ते दिख रहे हैं. जिसको देखते हुए केंद्र ने रविवार को इस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए नए दिशा निर्देश जारी किये हैं.


सरकार ने शहरी क्षेत्रों से सटे इलाकों और ग्रामीण इलाकों में जहां घर पर पृथक वास संभव नहीं है वहां दूसरी बीमारियों से ग्रसित बिना लक्षण वाले या हल्के लक्षण वाले मरीजों के लिए न्यूनतम 30 बिस्तर वाले कोविड देखभाल केंद्र बनाने की सलाह दी है.


केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि उप केंद्रों या स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों समेत सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में रैपिड एंटीजन जांच (आरएटी) किट्स उपलब्ध होनी चाहिए. मंत्रालय ने कोविड-19 निषेध और प्रबंधन पर मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी करते हुए कहा कि शहरी इलाकों में मामले बढ़ने के अलावा अब शहरी इलाकों से जुड़े क्षेत्रों, ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में भी मामले धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं. उसने यह दिशा निर्देश इसलिए जारी किए हैं ताकि ये समुदाय कोविड-19 से निपटने के लिए सभी स्तरों पर स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढांचा मजबूत कर सकें.


संदिग्ध और संक्रमित व्यक्ति को एक साथ नहीं रखा जाए


उसने कहा कि कोविड देखभाल केंद्र (सीसीसी) किसी संदिग्ध या संक्रमित व्यक्ति को भर्ती कर सकते हैं लेकिन उनके लिए अलग जगह और साथ ही उनके प्रवेश और निकासी के लिए अलग व्यवस्था होनी चाहिए. एसओपी में कहा गया है, ‘‘संदिग्ध और संक्रमित व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में एक साथ नहीं रखा जाना चाहिए.’’ एसओपी के अनुसार, हर गांव में इन्फ्लुएंजा जैसी बीमारी/गंभीर श्वसन संबंधी संक्रमण के मामलों पर गांव की स्वास्थ्य स्वच्छता तथा पोषण समिति की मदद से निगरानी की जानी चाहिए.


बीमारी के लक्षण वाले मरीजों को सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) फोन पर परामर्श दे सकते हैं और अन्य बीमारी से पीड़ित या कम ऑक्सीजन स्तर वाले मरीजों को उच्च केंद्रों में भर्ती कराया जाना चाहिए. एसओपी में कहा गया है कि सीएचओ और एएनएम को रैपिड एंटीजन जांच करने में प्रशिक्षित होना चाहिए. मामले बढ़ने और मामलों की संख्या के आधार पर जितना संभव हो संपर्क में आए लोगों का पता लगाया जाए.


गांव में पर्याप्त संख्या में पल्स ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर होने चाहिए


एसओपी में कहा गया है, ‘‘कोविड-19 के करीब 80-85 प्रतिशत मामले बिना लक्षण/हल्के लक्षण वाले होते हैं. इन मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत नहीं होती और इनका घर पर या कोविड देखभाल पृथकवास केंद्रों में इलाज किया जा सकता है.’’


चूंकि कोविड मरीजों की निगरानी के लिए ऑक्सीजन स्तर पर नजर रखना महत्वपूर्ण है तो प्रत्येक गांव में पर्याप्त संख्या में पल्स ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर होने चाहिए. एसओपी में आशा/आंगनवाड़ी कर्मियों तथा गांव स्तर के स्वयंसेवकों की मदद से संक्रमित लोगों को पल्स ऑक्सीमीटर तथा थर्मामीटर मुहैया कराने की सिफारिश की गई है.


इसमें कहा गया है कि हर बार इस्तेमाल के बाद पल्स ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर को एल्काहोल वाले सैनिटाइजर में भीगी रूई या कपड़े से साफ करना चाहिए. अग्रिम मोर्चे के कर्मचारी/स्वयंसेवक/शिक्षक घर-घर जाकर पृथक वास कर रहे मरीजों के स्वास्थ्य की जानकारी लें साथ ही ऐसा करते समय आवश्यक सावधानी बरतें जिसमें मेडिकल मास्क का इस्तेमाल तथा अन्य उचित एहतियात बरतना शामिल है.


पृथक वास कर रहे मरीज को किट उपलब्ध कराई जाए


एसओपी में कहा गया है, ‘‘घर पर पृथक वास कर रहे मरीज को किट उपलब्ध कराई जाए जिसमें पैरासिटामोल 500 मिलीग्राम, आइवरमैक्टिन, खांसी की सिरप, मल्टीविटामिन जैसी आवश्यक दवाओं के साथ ही एक विस्तृत पैम्फ्लेट हो जिसमें घर पर पृथक वास के दौरान बरते जाने वाले एहतियात की जानकारी और लक्षण गंभीर होने पर संपर्क करने की जानकारी शामिल हो.’’


मंत्रालय ने कहा कि शहरी क्षेत्रों से जुड़े इलाकों, ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में तीन स्तरीय व्यवस्था होनी चाहिए यानी हल्के या बिना लक्षण वाले मरीजों से निपटने के लिए कोविड देखभाल केंद्र, मध्यम लक्षण वाले मामलों के लिए समर्पित कोविड स्वास्थ्य केंद्र तथा गंभीर मामलों से निपटने के लिए समर्पित कोविड अस्पताल होना चाहिए.


कोविड देखभाल केंद्रों के पास बेसिक लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस होनी चाहिए


सीसीसी अस्थायी केंद्र होते हैं जो स्कूलों, सामुदायिक हॉल, शादी समारोह हॉल, पंचायत इमारतों में बनाए जा सकते हैं. ऐसे कोविड देखभाल केंद्रों के पास बेसिक लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस होनी चाहिए जिसमें चौबीसों घंटे पर्याप्त ऑक्सीजन उपलब्ध हो. इन इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और उप जिला अस्पतालों में समर्पित कोविड स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए. इसमें कम से कम 30 बिस्तरों की व्यवस्था होनी चाहिए. मामले बढ़ने पर जिले को बिस्तरों की संख्या बढ़ाने के लिए तैयार रहना चाहिए.


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