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पढ़ाई-लिखाई के कर्ज का एनपीए 46 फीसदी तक बढ़ा
आंकड़े बताते हैं कि तीन सालों के दौरान सरकारी बैंकों के एजुकेशन लोन से जुड़े एनपीए में 46 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई.
नई दिल्ली: पढ़ाई लिखाई के लिए कर्ज यानि एजुकेशन लोन के मामले में फंसे कर्ज (एनपीए) में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. आंकड़े बताते हैं कि तीन सालों के दौरान सरकारी बैंकों के एजुकेशन लोन से जुड़े एनपीए में 46 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई.
इंडियन बैंक एसोसिएशन यानी आईबीए से जुटायी गयी जानकारी का हवाला देते हुए वित्त मंत्रालय ने लोकसभा को बताया कि 31 मार्च 2015 को खत्म हुए कारोबारी साल 2014-15 के दौरान पढ़ाई-लिखाई के लिए कर्ज के मामले में एनपीए साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का था. जबकि कारोबारी साल 2016-17 के अंत में ये रकम 5200 करोड़ रुपये के करीब रही. अगर बकाये के अनुपात में फंसे कर्ज को देखे तो 2014-15 के अंत में ये जहां 5.7 फीसदी थी, वही 2016-17 में 7.67 फीसदी पर पहुंच गई. ध्यान रहे कि इस दौरान पढ़ाई लिखाई के लिए कर्ज में महज नौ फीसदी के करीब की बढ़ोतरी हुई.
आम तौर पर यदि कोई एजुकेशन लोन लेता है तो पढ़ाई लिखाई पूरी होने बाद और नौकरी मिलने के साथ ही किश्तो में कर्ज चुकाना शुरु करेगा. अब ये भी व्यवस्था की गई है कि कोर्स पूरा होने के एक साल बाद ही कर्ज की किश्ते शुरु की जा सकती है. साथ ही कर्ज वापस करने के लिए 15 साल तक समय भी दिया जाने लगा है. इन सब के बावजूद यदि फंसे कर्ज में बढ़ोतरी हो रही है तो इसका कारण क्या है ये तो सरकार ने नही बताया है. लेकिन ऐसा समझा जा रहा है कि कुछ हद तक इसका मतलब ये भी है कि कोर्स पूरा होने के बाद नौकरी नहीं मिल पा रही. फंसे कर्ज में बढ़ोतरी से बेरोजगारी को लेकर लग रहे सरकार पर आरोपों को भी बल मिलता है.
नियमों के मुताबिक, अभी
- 4 लाख रुपये तक के कर्ज के लिए किसी भी तरह की गारंटी या जमानत की जरुरत नहीं होती.
- 4 लाख रुपये से ज्यादा लेकिन साढ़े सात लाख रुपये तक के कर्ज के लिए थर्ड पार्टी गारंटी की जरुरत होती है, ये गारंटी आम तौर पर छात्र के माता-पिता देते हैं.
- साढ़े सात लाख रुपये से ज्यादा के कर्ज के लिए जमानत की जरुरत होती है.
- कोर्स के दौरान कर्ज पर सामान्य ब्याज लगाया जाता है. यदि कोर्स के दौरान सामान्य ब्याज चुकाया जाता रहे तो बाद में कर्ज की किश्त कम हो जाती है.
वैसे तो कर्ज वापस करने की जिम्मेदारी छात्र की होती है, लेकिन किसी वजह से वो नहीं चुका पाए तो ये जिम्मेदारी माता-पिता पर आ जाती है. माता-पिता नही होने की सूरत में भाई-बहन या कोई भी सगा संबंधी जिसने गारंटी दिया है, उस पर कर्ज वापस करने की जिम्मेदारी भी आ सकती है. वैसे सरकार ने क्रेडिट गारंटी फंड भी शुरु किया है जिसके तहत साढ़े सात लाख रुपये तक के कर्ज पर डिफॉल्ट की सूरत में तीन चौथाई तक बकाया रकम वापस करने की व्यवस्था है.
टेबल
पढ़ाई लिखाई के लिए कर्ज
स्रोत – इंडियन बैंक एसोसिएशन
31 मार्च तक | कुल बकाया (करोड़ रु में) | एनपीए की रकम (करोड़ रु में) | एनपीए (प्रतिशत में) |
2015 | 62003.30 | 3536.02 | 5.70 |
2016 | 65454.42 | 4777.07 | 7.30 |
2017 | 67678.50 | 5191.72 | 7.67 |
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