NPR की शुरुआत यूपीए के कार्यकाल से हुई, तो अब हंगामा क्यों- बीजेपी
सरकार की दलील है कि एनपीआर देश की मौजूदा आबादी के बारे में जानने की प्रक्रिया है और इसका देश की नागरिकता से कोई लेना देना नहीं है. जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा कि विपक्ष लोगों को गुमराह कर रहा है.
नई दिल्ली: नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है. विपक्षी राजनीतिक दल मोदी सरकार पर इसके जरिए एनआरसी को लागू करने का आरोप लगा रहे हैं. विपक्षी दलों की दलील है की नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर एनआरसी का ही एक शुरुआती चरण है और जब यह चरण पूरा हो जाएगा तो उसके बाद सरकार एनआरसी को देशभर में लागू करेगी. इसको लेकर अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेताओं ने सरकार को घेरा. हालांकि, सरकार की दलील है कि एनपीआर देश की मौजूदा आबादी के बारे में जानने की प्रक्रिया है और इसका देश की नागरिकता से कोई लेना देना नहीं है.
यूपीए सरकार ने की थी एनपीआर की शुरुआत
विपक्षी सांसदों के आरोपों का जवाब देते हुए बीजेपी सांसद और प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा कि एनपीआर कोई पहली बार नहीं तैयार हो रहा. इसकी शुरुआत तो दिसंबर 2004 में तब की गई थी जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी और मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे. इसके चलते साल 2010 में पहली बार नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर तैयार किया गया था. लेकिन उस दौरान तो किसी ने उसका विरोध नहीं किया क्योंकि वह कार्रवाई कांग्रेस ने की थी और अब जब बीजेपी उसी कार्रवाई को दोबारा कर रही है तो इसको राजनैतिक रंग दिया जा रहा है. जीवीएल नरसिम्हा राव ने साफ किया कि यह देश की मौजूदा जनगणना को जानने का तरीका है और नागरिकता संशोधन कानून, नागरिकता देने को लेकर है लेकिन विपक्ष इन सबको मिलाकर लोगों को गुमराह कर रहा है.
देश के हर राज्य में होगी एनपीआर के तहत गणना कुछ प्रदेशों के द्वारा जिसमें पश्चिम बंगाल और केरल शामिल हैं, एनपीआर के लिए जनगणना करने से ऐतराज करने पर हमला करते हुए जीवीएल नरसिम्हा ने कहा, देश के सभी प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश देश का हिस्सा हैं और ऐसे में जो कानून देश में लागू होता है उससे कोई राज्य खुद को अलग नहीं कर सकता. रही बात एनपीआर की तो एनपीआर तो पहले भी तैयार हो चुका है तो आखिर अब इसका विरोध क्यों?
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