नई दिल्ली: असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स यानि की एनआरसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट सामने आने के बाद अब सवाल ये है कि आखिर उन 40 लाख से ज्यादा लोगों का क्या होगा ? अभी तक इनमें से बड़ी संख्य़ा में लोगों का नाम वोटर लिस्ट में था तो क्या अब ऐसे लोगों का नाम वोटर लिस्ट से काटा जाएगा और अगले साल होने वाले आम चुनावों में वोट डालने का हक़ ऐसे लोगों को मिलेगा या नहीं ?


केंद्रीय चुनाव आयुक्त ओ पी रावत के मुताबिक अभी इस मुद्दे पर कुछ भी कहना जल्दबाजी ही है क्योंकि अभी ये एनआरसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट ही है और जिन लोगों का नाम इस ड्राफ्ट रिपोर्ट में नहीं है उनको एनआरसी की तरफ से बताया जाएगा कि आखिर उनका नाम एनआरसी की लिस्ट में क्यों नहीं है. इसके आधार पर ऐसे लोगों के पास मौका होगा कि वो अपनी नागरिकता से जुड़े सबूत दें और उन सबूतों पर गौर करने के बाद ही उनके बारे में कोई अंतिम फैसला लिया जाएगा.


चुनाव आयोग के मुताबिक किसी भी शख्स का नाम वोटर लिस्ट में तभी जोड़ा जाता है जब वो रिप्रेजेंटेशन ऑफ पिपुल्स एक्ट में दिए गए 3 प्रावधानों को पूरा करता है. नियमों के मुताबिक


- वोटर का भारतीय नागरिक होना ज़रूरी है.
- वोटर की उम्र 18 साल से ऊपर हो.
- वोटर उस विधानसभा क्षेत्र का मतदाता हो जहां पर उसका नाम वोटर लिस्ट में शामिल करना है.


अगले साल होने वाले आम चुनावों के लिए चुनाव आयोग को 4 जनवरी 2019 तक अपनी वोटर लिस्ट तैयार करनी होगी और उसी लिस्ट के आधार पर तय होगा कि कौन सा मतदाता आगामी लोकसभा चुनावों के लिए मतदान कर सकेगा या नहीं या किस मतदाता का नाम वोटर लिस्ट में शामिल होगा या काटा जाएगा


मुख्य चुनाव आयुक्त ने साफ किया एनआरसी की इस ड्राफ्ट रिपोर्ट का वोटर लिस्ट के ऊपर कोई असर नहीं पड़ेगा. अगर फाइनल रिपोर्ट भी आ जाती है और किसी का नाम एनआरसी में नहीं होता तब भी ऐसा नहीं है कि उस शख्स का नाम वोटर लिस्ट से यूं ही काट दिया जाएगा. उसके बाद भी चुनाव आयोग अपनी जांच करेगा कि क्या वाकई में वह शख्स देश का नागरिक है या नहीं. क्योंकि चुनाव आयोग रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट के तहत कुछ प्रमाणों के आधार पर तय करता है कि किसी शख्स का नाम वोटर लिस्ट में होना चाहिए या नहीं. अगर वह शख्स चुनाव आयोग के पैमाने पर खरा उतरता है तो उसका नाम वोटर लिस्ट में बना रहेगा.