नई दिल्ली: असम से जुड़ा नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजन (एनआरसी) वो दस्तावेज है जिसमें असम के सभी असली नागरिकों का रिकॉर्ड है. इसका सबसे ताज़ा आंकड़ा 30 जुलाई 2018 को यानी आज पब्लिश किया गया है. एनआरसी को नागरिकता से जुड़े 2003 के नियम (नागरिकों का पंजीकरण और उनको पहचान पत्र जारी किया जाना) के तहत अपडेट किया जा रहा है.


साल 2015 में 3.29 करोड़ लोगों ने 6.63 करोड़ दस्तावेजों के साथ एनआरसी में अपना नाम शामिल करवाने के लिए आवेदन किया था. इनमें से 2.89 करोड़ को नागरिकता दी गई है. वहीं, 40 लाख के करीब लोग इसमें अपना नाम शामिल नहीं करवा पाए हैं.


इस लिस्ट की बड़ी बात ये है कि ये राज्य के हर नागरिक तक पहुंचा है. वहीं इसके सहारे सरकार को ये पता चला है कि कौन भारत का नागरिक है और कौन अवैध तरीके से भारत में रह रहा है. ये सारी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पूरी की गई है. देश का सबसे बड़ा कोर्ट लगातार इसकी मॉनिटरिंग करता रहा है.


कौन होता है असम का नागरिक?
असम का नागरिक होने के लिए किसी व्यक्ति को ऐसे दस्तावेज या सबूत सौंपने थे/होंगे जिससे पता चल सके की वो या उसका परिवार/खानदान 1971 के पहले से असम में रहता था. इसके लिए अन्य उपाय ये भी है कि ऐसे लोगों के परिवार का नाम 1951 में जारी किए गए एनआरसी में हो या 1971 से पहले राज्य में हुए चुनाव से जुड़े दस्तावेज में उनका या उनके परिवार का नाम हो.


1951 में आया था असम का पहला एनआरसी
एनआरसी वो रजिस्टर है जिसमें असम के असली नागरिकों का नाम है. इसे पहली बार 1951 में तैयार किया गया था. इसमें 1951 की जनगणना में शामिल हुए लोगों से जुड़ी तमाम जानकारियां हैं. आपको बता दें कि ताज़ा एनअरसी को पूरा करने में करीब 1,221 करोड़ रुपए का खर्च आया है.


असम में अवैध वोटर
· 1951-1971 के बीच राज्य के वोटरों की संख्या अचनाक से 51% बढ़ गई
· 1971-1991 के बीच राज्य में वोटरों की संख्या 89% तक बढ़ गई
· 1991-2011 के बीच बढ़े हुए वोटरों की संख्या 53% बढ़ी


एनआरसी की अबतक की बड़ी बातें
1979-85 के बीच राज्य में अवैध अप्रवासियों के खिलाफ असम आंदोलन हुआ. इसी आंदोलन का नतीजा ये हुआ कि राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार, राज्य सरकार, ऑल इंडिया स्टूडेंट यूनियन और ऑल असम गण परिषद के बीच 1985 में एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ.


समझौते में 24 मार्च 1971 की तारीख तय की गई जिसके बारे में कहा गया कि इसके पहले से राज्य में रह रहे लोगों को वहां का नागरिक माना जाएगा. वहीं, इसके बाद आए लोगों को तब के पाकिस्तान और अब के बांग्लादेश से आया अवैध अप्रवासी माना जाएगा. आपको ये भी बता दें बांग्लादेश के साथ असम 262 किलोमीटर का बॉर्डर शेयर करता है और 1971 में जब दोनों पूर्वी  पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था तब बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक भारत आ गए थे.


एनआरसी के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 को संशोधित करके उसमें सेक्शन 6A शामिल करके असम के लिए अलग से प्रवाधान किया गया. साल 2005 के मई महीने में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार, राज्य सरकार और ऑल इंडिया स्टूडेंट यूनियन के बीच एक मीटिंग हुई जिसमें 1951 में बनी एनआरसी को अपडेट करने पर समहति बनी. केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने मिलकर तय किया कि इसके लिए क्या तौर-तरीके अपनाए जाएंगे.


सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को पालन करते हुए इस प्रक्रिया को साल 2013 में शुरू किया गया जिसे पूरा करने के लिए तीन साल की समय सीम तय की गई. सुप्रीम कोर्ट ने लगतारा इस प्रक्रिया पर अपनी नज़र बनाए रखी और समय समय पर इससे जुड़े कई दिशा निर्देश दिए.


अवैध नागरिकों को वापस भेजने का है कानून
आपको बता दें कि विदेशी कानून, 1946 के सेक्शन 3(2) (c) के तहत भारत सरकार के पास इसकी ताकत/अधिकार है कि वो गैरकानूनी तरीके से भारत में आए विदेशी नागरिकों को वापस उनके देश भेज सके. सरकार ने असम में विदेशियों से जुड़े 36 अधिकरण पहले से बना रखे हैं जिनका काम गैरकानूनी तरीके से भारत में आए विदेशी नागरिकों को हिरासत में लेना और उन्हें वापस भेजना है. इनके अलावा जून 2013 में विदेशियों से जुड़े 64 और अधिकरणों को बनाया गया है.


बॉर्डर से सटे ज़िलों में अवैध आप्रवासियों की आबादी
2001 की जनगणना की तुलना में नौ ज़िलों में 20% बढ़ी आबादी की बात सामने आई है. इन जिलों में मुस्लिम आबादी ज़्यादा है. इनमें धुर्बी (74.9%), बारपेटा (54%), करीमगंज (52%), हैलाकांडी (57%) जगहों में पहले से मुस्लिम आबादी ज़्यादा है. इसके अलावा बोंगाईगांव (39%), काचर (36%), डारंग (35%) और मारीगांव (47.5%) जैसी जगहें भी हैं जहां अच्छी मुस्लिम आबादी है.


असम में मुस्लिम बहुल क्षेत्र
असम में ऐसे 40 क्षेत्र हैं जहां मुस्लिमों की आबादी 40 से 80% के बीच है.


पिछली लिस्ट में आम नहीं खास लोगों के नाम भी थे गयाब
एनआरसी से जुड़ा पहला ड्राफ्ट 31 दिसंबर 2017 को पब्लिश किया गया था. इस ड्राफ्ट में 3.29 करोड़ की कुल आबादी में से 1.90 लोगों का नाम पब्लिश किया गया था. पहले लिस्ट में जो बड़े नाम गायब थे उनमें- राज्य की राजनीतिक पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) प्रमुख और धुबरी लोकसभा से सांसद बदरुद्दीन अजमल, उनके बेटे और जमुनामुख के एमएमलए अब्दुर रहीम अजमल और बारपेटा से सांसद उनके भाई सिराजुद्दीन अजमल के नाम शामिल थे.


इस लिस्ट से जिन विधायकों के नाम गायब थे उनमें- अनंत कुमार मालो (अभयपुरी साउथ), अमीनुल इस्लाम (ढिंग), निजानुर रहमान (गौरीपुर), हाफिज बशीर अहमद कासमी (बिलासी पारा वेस्ट) नाम शामिल थे.


इसमें दो बीजेपी एमएलए- शिलादित्य देब (होजाई) और अश्विनी रे सरकार (गोलकागंज) के नाम भी गायब थे. इसी लिस्ट में कांग्रेस के एमएलए सुकुर अली अहमद (चेंगा), शेरमान अली (बाघंबर) और नरुल हुडा (रुपोहिहट) के नाम भी गायब थे.


वर्तमान सीएम का एनआरसी में योगदान
राज्य के सीएम सर्बानंद सोनोवाल के मुताबिक ये उनके राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा चैलेंज है. सोनोवाल का राजनीतिक सफर ऑल इंडिया स्टूडेंट यूनियन के छात्र नेता के तौर पर शुरू हुआ था. इस स्टूडेंट यूनियन ने अवैध अप्रवासियों के मुद्दे को पूरे ज़ोर-शोर से उठाया था. अवैध अप्रवासियों के मुद्दे पर उन्हें असम का हीरो माना जाता है.


एक बड़ा सवाल ये है कि जिनका नाम इस दूसरी लिस्ट में भी नहीं आया उनका क्या होगा. इसे लेकर असम के सीएम सर्बानंद सोनोवाल ने कई बातें साफ की हैं और इसी सिलसिले में उन्होंने कहा कि ये कोई फाइनल लिस्ट नहीं बल्कि एक संपूर्ण एनआरसी ड्राफ्ट है. फाइनल लिस्ट आना अभी भी बाकी है.

असम की आबादी (2011 के मतगणना के अनुसार)
कुल आबादी- 3.12
करोड़
हिंदू- 1.92 करोड़ (कुल आबादी का 61.47%). 2001 की तुलना में राज्य में हिंदुओं की आबादी घटी है.
मुस्लिम- 1.07 करोड़ (कुल आबादी का 34.22%) 2001 की तुलना में राज्य में मुस्लिमों की आबादी बढ़ी है.
ईसाई- 11.67 लाख (कुल आबादी का 3.73%)
सिख- 20,672 (कुल आबादी का 0.06 %)
बौद्ध- 54,993 (कुल आबादी का 0.17 %)
जैन- 25,949 (कुल आबादी का 0.09 %)
अन्य धर्म- 27118 (कुल आबादी का 0.09 %)
जिन्होंने अपना धर्म नहीं बताया- 50873 (कुल आबादी का 0.16 %)

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