कई मुल्कों में एक भारतीय जासूस के तौर पर काम करने वाले अजित डोभाल को आज पूरा देश जानता है. अजित डोभाल आज देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) हैं और कहा जाता है कि सुरक्षा के मसले पर मोदी सरकार की हर परेशानी का हल उनके पास होता है. यही वजह है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके मुरीद हैं. भारत के जेम्स बॉन्ड के नाम से मशहूर अजित डोभाल का जन्म आज ही यानी 20 जनवरी को हुआ था. इस खास मौके पर जानिए उनके कुछ दिलचस्प किस्से और उनकी कहानी. 


उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में जन्मे अजित डोभाल ने मिलिट्री स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी की. जिसके बाद उन्होंने आईपीएस की तैयारी शुरू की और काफी कम उम्र में ये सफलता हासिल कर ली. वो 1968 केरल बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. जिसके बाद वो खुफिया विभाग (IB) से जुड़ गए. उनकी तेज तर्रार शख्सियत ने उन्हें इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर पद तक पहुंचाया. उन्हें दुनियाभर के बड़े जासूसों में गिना जाता है. आइए जानते हैं उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से... 


पाकिस्तान में भारत का शातिर जासूस
पाकिस्तान जैसे देश में एक जासूस की तरह कई साल बिताना ठीक वैसा ही जैसा मौत को हाथ में लेकर चलना होता है. अजित डोभाल ने आसानी से ये काम किया और करीब सात साल तक वो पाकिस्तान में रहे. जिसकी पाकिस्तानी एजेंसियों को कानों कान खबर तक नहीं हुई. उन्होंने पाकिस्तान में एक मुस्लिम की तरह अपना पूरा वक्त बिताया और इस दौरान कई अहम जानकारी निकाली. यही वजह है कि पाकिस्तान के बड़े नेता और अधिकारी भी उनका लोहा मानते हैं. 


ऑपरेशन ब्लैक थंडर में डोभाल की भूमिका
अजित डोभाल को यूं तो उनके कई खास कामों के लिए जाना जाता है, लेकिन साल 1988 में अमृतसर के गोल्डन टेंपल में हुए ऑपरेशन ब्लैक थंडर में उनकी भूमिका को याद किया जाता है. जब खालिस्तानी चरमपंथियों ने स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर लिया था, तब डोभाल भी वहीं मौजूद थे और इस बात की भनक किसी को नहीं थी. बताया जाता है कि डोभाल इस दौरान रिक्शा चलाकर मंदिर की तरफ पहुंचे थे, उन्होंने खालिस्तानियों को ये यकीन दिलाया कि वो आईएसआई से हैं और उनकी मदद करने यहां आए हैं. करीब दो दिन तक डोभाल स्वर्ण मंदिर के अंदर रहे और उसके बाद बाहर आकर एजेंसियों को तमाम जानकारी दी. इस जानकारी के आधार पर ऑपरेशन ब्लैक थंडर चलाया गया और अंदर मौजूद सभी खालिस्तानी चरमपंथियों को मार गिराया गया. 


कांधार हाईजैक में डोभाल का रोल
भारतीय एयरलाइन के विमान को जब आतंकियों ने 1999 में हाईजैक कर लिया था और उसे कई जगह होते हुए कांधार ले गए थे, तब अजित डोभाल को भारत से अफगानिस्तान के कांधार भेजा गया था. आतंकियों के बातचीत करने के लिए खुफिया एजेंसी से अजित डोभाल और नहचल संधू को भेजा गया. इस दौरान डोभाल बिल्कुल भी इस पक्ष में नहीं थे कि आतंकियों से बातचीत की जाए. हालांकि भारत में सरकार पर बन रहे दबाव के चलते आतंकियों के साथ समझौता किया गया और आखिर में दो आतंकियों की रिहाई पर सौदा तय हो गया. आतंकी मसूद अजहर और उमर शेख को रिहा किया गया और कांधार से सभी भारतीय यात्रियों को वापस लाया गया. 


डोकलाम संकट के वक्त बने संकट मोचक
भारत-चीन सीमा पर डोकलाम में जब तनाव अपने चरम पर पहुंच गया था और युद्ध तक की बातें होने लगी थीं, तब अजित डोभाल ने कुछ ऐसा किया जिसने पूरे मामले को शांत करने में अहम भूमिका अदा की. डोभाल ने चीनी एनएसए से बातचीत कर मामले को सुलझाने का काम किया. इसके बाद दोनों के बीच इस तरह की कई बातचीत हुईं. कहा जाता है कि डोभाल की कूटनीतिक बातचीत के बाद चीन ने अपना रुख नरम किया. हाल ही में एलएसी पर हुए डिसएंगेजमेंट में भी एनएसए डोभाल की अहम भूमिका मानी जाती है. डोभाल को चीन पर पीएम मोदी का प्वाइंट पर्सन भी कहा जाता है. 


साल 2014 में जब बीजेपी भारी बहुमत के साथ सत्ता में आई और नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली, तब देश के लिए एक नए एनएसए की तलाश की जा रही थी. कई नामों पर चर्चा हुई, लेकिन पीएम मोदी ने अजित डोभाल पर भरोसा जताया. इस भरोसे पर डोभाल खरे भी उतरे और उन्होंने हर मोर्चे पर मोदी सरकार की मुश्किलों को दूर किया. 


दिल्ली दंगों के बाद सड़कों पर उतर गए डोभाल
दिल्ली में जब सीएए-एनआरसी को लेकर प्रदर्शन के बाद दंगे शुरू हुए तो हालात काफी नाजुक बन गए. इस दौरान पहली बार देखा गया कि खुद एनएसए अजित डोभाल मौके पर पहुंचे और उन्होंने वहां लोगों से बातचीत की. कहा गया कि खुद पीएम मोदी की तरफ से डोभाल को ये जिम्मेदारी दी गई थी. इसस पहले कभी किसी एनएसए को ऐसे लोगों को समझाते हुए या सलाह देते हुए नहीं देखा गया था. दंगाग्रस्त इलाकों में डोभाल ने दोनों पक्षों के नेताओं से मुलाकात की और पुलिस अधिकारियों से भी बातचीत की. 


सिर्फ इतना ही नहीं अजित डोभाल ने कश्मीर में आतंक के खात्मे से लेकर सर्जिकल स्ट्राइक तक में अहम भूमिका निभाई. भारत के पड़ोसी मुल्क इसीलिए डोभाल के रवैये से घबराते हैं. कश्मीर में जब सरकार ने आर्टिकल 370 खत्म किया तो डोभाल वहां कई दिनों तक खुद मौजूद रहे. 


ये भी पढ़ें - 'पेंशन देनदारियों का रिस्क', पुरानी पेंशन पर राज्यों को रिजर्व बैंक की चेतावनी के क्या हैं मायने