OBC संशोधन बिल: राज्यसभा में हंगामे के दौरान सभापति की तरफ फेंकी गई रूल बुक, आज हो सकता है एक्शन
देश की बात करें तो वहां सियासत का एक बड़ा सिरा OBC वोटरों को साधने का रहा है. पार्टी कोई भी हो जीत के लिए OBC का साथ जरुरी है.
नई दिल्ली: लोकसभा में शांति और राज्यसभा में जो क्रांति मंगलवार को दिखी. वो आज पलट सकती है, राज्यसभा में आज OBC आरक्षण बिल पेश किया जा सकता है. राज्यसभा में आज क्या होगा इसकी बानगी कल लोकसभा में मिल गई थी. विपक्ष ने इस बिल पर सरकार का तो समर्थन किया लेकिन साथ ही ये भी ध्यान रखा कि विरोध का सुर भी ऊंचा रहे.
दरअसल कई राज्यों में चुनाव भी है खासकर यूपी, उसमें OBC आरक्षण बिल का बीजेपी को फायदा हो सकता है. ये डर भी विपक्ष के मन में है...लोकसभा में जो मन में था वो जुबान पर भी आया. लेकिन यही दल संसद के अंदर और बाहर राज्यों में 50 फीसदी आरक्षण कैप को हटाने की मांग कर रहे हैं.
इस तकरार के पीछे सत्ता का इकरार है, हर राज्य चुनावी समर में OBC वोटरों को लुभाने और अपना बनाने में जुटा है. पहले बात यूपी की कर लेते हैं क्योंकि वहां चुनाव होने वाले हैं. यूपी की कुल आबादी में 45 फीसदी ओबीसी हैं. इसमें सबसे ज्यादा में करीब 10 फीसदी यादव हैं. ओबीसी में यादव के बाद सबसे ज्यादा 5 फीसदी कुर्मी हैं, करीब 4 फीसदी लोधी हैं. सभी दलों की नजर इन्हीं लोगों पर है. क्योंकि 2017 के चुनाव में इस ओबीसी वोटबैंक ने बड़ी भूमिका निभाई थी.
राज्यों को OBC List तैयार करने का अधिकार देने संबंधी संविधान संशोधन बिल लोकसभा से पास
बीजेपी भी इस समीकरण को साधने में लगी है, यही वजह है कि मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार में OBC समुदाय के 3 मंत्री बनाए गए. यूपी में 30 से ज्यादा जातियों को OBC लिस्ट में शामिल करने की योजना है. यूपी के अलावा हरियाणा से कर्नाटक तक OBC वोटरों के इर्द गिर्द सियासत का ताना बाना बुना जाता रहा है.
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय, हरियाणा में जाट समुदाय, राजस्थान में गुर्जर समुदाय, गुजरात में पटेल समुदाय, कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को OBC लिस्ट में शामिल करने की सियासत पुरानी है.
देश की बात करें तो वहां भी सियासत का एक बड़ा सिरा OBC वोटरों को साधने का रहा है. पार्टी कोई भी हो जीत के लिए OBC का साथ जरुरी है. केंद्रीय सूची में देश की 2700 जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग का दर्जा हासिल है. इनमें 1000 जातियों को ही आरक्षण मिल रहा है, बाकी इस दायरे से बाहर हैं.
अलग-अलग जातियां खुद को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की मांग कर रही हैं. 1993 से केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ही OBC की अलग-अलग लिस्ट बनाते थे. 2018 के संविधान संशोधन के बाद पुरानी व्यवस्था समाप्त हो गई. इस बिल के पास होने के बाद दोबारा से पुरानी व्यवस्था लागू हो जाएगी.
चाहे सरकार हो या विपक्ष या फिर क्षेत्रीय पार्टियां हर किसी की कोशिश खुद को OBC वर्ग का बड़ा हितौषी साबित करने का है क्योंकि इस साथ के बिना सत्ता की आस बहुत कमजोर हो जाती है.