OBC Quota Policy: ओबीसी कोटा पॉलिसी में अहम बदलावों की सिफारिश कर सकता है रोहिणी कमीशन
Rohini Commission: ओबीसी जातियों का वर्गीकरण के बहस के बीच केंद्र सरकार ने 2 अक्टूबर, 2017 को एक आयोग बनाने की घोषणा की थी. इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है.
OBC Quota Policy: अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को सब-कैटगरी में बांटने की संभावना को लेकर बनाए गए रोहिणी कमीशन ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पिछले महीने सौंपी थी. जस्टिस जी रोहिणी आयोग की रिपोर्ट 1000 पन्नों से भी ज्यादा की है और इसे दो भागों में बांटा गया है. पहला भाग इस बात से संबंधित है कि ओबीसी कोटा को कैसे आवंटित किया जाना चाहिए और दूसरे भाग में देश की सभी 2600 ओबीसी जातियों की एक अपडेट लिस्ट है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग ने कहा है, “सब कैटगराइजेशन का उद्देश्य ओबीसी वर्ग के बीच एक नई हिरार्की पैदा करना नहीं है बल्कि सभी के लिए समान अवसर पैदा करना है.” दरअसल, अक्टूबर 2017 में आयोग की स्थापना इसलिए की गई थी कि ये सुनिश्चित किया जा सके कि आरक्षण का लाभ कुछ प्रमुख ओबीसी वर्ग तक ही न रहे.
किस आधार पर बनाई गई सूची
नाम न छापने की शर्त पर लोगों ने कहा, "ओबीसी की केंद्रीय सूची मुख्य रूप से विभिन्न समुदायों से मिले लाभों की मात्रा के आधार पर बनाई गई है." लोगों ने आगे कहा कि आयोग ने इस उप-वर्गीकरण के लिए मानदंडों की सिफारिश की है, जो काका कालेलकर जैसे पहले के आयोगों या बीपी मंडल की अध्यक्षता वाले पैनल के अपनाए गए मानदंडों से परे है.
उन्होंने बताया कि दोनों ने एक समुदाय की सामाजिक स्थिति और पारंपरिक व्यवसाय को आरक्षण के मानदंड के रूप में इस्तेमाल किया. यहां तक कि देश के जिन 10 राज्यों में सब कैटगराइजेशन है वो भी एक समुदाय की स्थिति से चलते हैं.
कई सामुदायिक प्रतिनिधिमंडलों ने रोहिणी आयोग के सदस्यों से मुलाकात की और मानदंडों को जारी रखने की सिफारिश की. लोगों ने कहा कि पैनल इस दृष्टिकोण से असहमत है.
कमीशन ने क्या पाया?
jरिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न वर्गों से मिले आरक्षण के लाभों के आंकड़ों से आयोग ने पाया कि जो लोग अपनी निर्धारित स्थिति में बेहद पिछड़े हैं, उनका देश के कुछ हिस्सों में एजूकेशन और सर्विस दोनों में महत्वपूर्ण प्रतनिधित्व है. उन्होंने कहा, “अत्यधिक अतुलनीय समुदायों को एक ही श्रेणी में समूहित करने का कोई मतलब नहीं है.” लोगों ने आगे बताया कि आयोग की रिपोर्ट एक वैकल्पिक दृष्टिकोण की सिफारिश करती है.
इतनी सब- कैटगरी होने की संभावना
हालांकि सब-कैटगरी की पुष्टि नहीं की गई है लेकिन इसको तीन से चार वर्गों में बांटने की संभावना है. जो तीन सब-कैटगरी की संभावना जताई जा रही है वो इस तरह हो सकती है- जिन्हें कोई लाभ नहीं मिला है उनको 10 प्रतिशत, जिन्हें कुछ लाभ मिला है उन्हें भी 10 प्रतिशत और जिन्हें सबसे ज्यादा लाभ मिला है उन्हें 7 प्रतिशत. या हो सकता है कि इसे 4 हिस्सों में भी बांट दिया जाए. हालांकि सब-कैटगरी की प्रक्रिया संख्यात्मक है.
आयोग ने केवल यह निर्धारित करने की कोशिश की कि कौन से समुदाय एक-दूसरे के साथ उचित रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं और एक साथ रखे जा सकते हैं. रिपोर्ट के दूसरे भाग में हर जाति का इतिहास और उन्हें पिछड़ा माने जाने का कारण बताया है.
रिपोर्ट का इंतजार करने वालों के बीच ये डर है कि यह उन ओबीसी समूहों को बाहर कर देगा जिन्हें अधिकांश आरक्षण लाभों के लाभार्थियों के रूप में देखा जाता है, पैनल को नहीं लगता कि इससे किसी एक समुदाय को ज्यादा नुकसान होगा. सरकार इस रिपोर्ट को अपनी कैबिनेट बैठक में ला सकती है जिसके बाद इसे संसद में पेश किया जाएगा लेकिन ये सरकार पर निर्भर है कि वह इसे स्वीकार करती है या अस्वीकार करती है.
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