लंदन की एजेन्सी ODI की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर को इस साल अब तक 3 प्रतिशत का नुकसान हो चुका है. 'द कॉस्ट ऑफ क्लाइमेट चेंज इन इंडिया' के शीर्षक से प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल वॉर्मिंग में तय इंडस्ट्री लेवल से एक डिग्री अधिक की बढ़ोत्तरी हुई है. साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि, इसमें ज्यादा से ज्यादा तीन डिग्री से अधिक की बढ़ोत्तरी हो सकती है, और यदि ऐसा हुआ तो भारत की जीडीपी को 10 प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है. 


ODI की रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल वॉर्मिंग में तय इंडस्ट्री लेवल से तीन डिग्री अधिक की बढ़ोत्तरी होने पर समुद्र का स्तर बढ़ जाएगा, कृषि उत्पादकता भी घटेगी और साथ ही स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में भी बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है. इस रिपोर्ट में अर्थशास्त्री जेम्स निक्सन के Oxford Economics में पिछले साल छपे रिसर्च पेपर का हवाला दिया गया है. इसके अनुसार यदि ग्लोबल वॉर्मिंग का असर नहीं होता तो भारत कि जीडीपी की दर 25 प्रतिशत अधिक होती. साथ ही रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, तीन डिग्री से अधिक की बढ़ोत्तरी होने पर इस सदी के अंत तक जीडीपी को 90 प्रतिशत तक का नुकसान उठाना पड़ सकता है.


बढ़ रहे तापमान को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने की है जरुरत 


ODI के सीनियर रिसर्च ऑफिसर एंजेला पिकिएरीलो के अनुसार, "भारत को अभी से क्लाइमेट चेंज का नुकसान उठाना पड़ रहा है. साल 2020 में यहां के कई शहरों में 48 डिग्री से अधिक का तापमान दर्ज किया गया था. यहां की बड़ी आबादी को साल में कम से कम एक महीने पानी के भीषण संकट से जूझना पड़ता है. यदि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते बढ़ रहे तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित नहीं रखा तो सदी के अंत तक अर्थव्यवस्था के साथ साथ लोगों पर भी इसका खराब असर देखने को मिल सकता है."  


 रिपोर्ट के अनुसार, "ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते एक डिग्री अधिक की बढ़ोत्तरी का असर भारत में अभी से दिखने लगा है. देश के कई हिस्सों में तेज और असमय बारिश, बहुत ज्यादा गर्म हवाएं, बाढ़, विनाशकारी तूफान, और समुद्र स्तर के बढ़ने के चलते लोगों के जीवन, उनकी आजीविका और सम्पत्ति का बड़ा नुकसान हुआ है."


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