नई दिल्लीः भारत में चल रहे आम चुनावों की आपाधापी और नतीजों के इंतजार के बीच अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर चल रहे कुछ तनाव नई सरकार के लिए भी सिरदर्द साबित हो सकते हैं. इनमें एक अहम मुद्दा है नाभिकीय समझौते और अंतर्राष्ट्रीय पाबंदियों को लेकर ईरान-अमेरिका के बीच बढ़ता तनाव. ऐन चुनावों के बीच भारत आए ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की. उनका यह दौरा ऐसे वक्त हुआ है जब भारत की तरफ से इस महीने तेल खरीद का कोई ऑर्डर नहीं दिया गया.
हालांकि नई दिल्ली का मन टटोलने के लिए आए ईरानी विदेश मंत्री के हाथ कोई खास भरोसा नहीं लगा. अमेरिकी पाबंदियों के बीच ईरानी तेल खरीद को लगभग बंद कर चुके भारत ने साफ कर दिया कि इस बारे में अंतिम फैसला चुनाव बाद आने वाली अगली सरकार करेगी. ईरान सरकार के अंतर्राष्ट्रीय संपर्क की कड़ी में भारत आए जरीफ ने करीब एक घंटे विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की. इससे पहले वो रूस, चीन, तुर्कमेनिस्तान समेत कुछ अन्य देशों का दौरा बीते दिनों कर चुके हैं.
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक मुलाकात के दौरान विदेश मंत्री ने ईरानी मेहमान को बताया कि “भारत में इस वक्त चुनाव चल रहे हैं. लिहाजा तेल खरीद के मुद्दे पर अंतिम फैसला 23 मई के नतीजों के बाद गठित होने वाली सरकार लेगी. भारत अपने व्यावसायिक हितों, ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक सरोकारों के मद्देनजर ही निर्णय करेगा.”
भारतीय विदेशमंत्री से मुलाकात के पहले मीडिया को दिए बयान में ईरानी विदेश मंत्री ने कहा कि भारत एक महत्वपूर्ण सहयोगी देश है और उससे हमारे आर्थिक, राजनीतिक और क्षेत्रिय हित जुड़े हैं. भारत के साथ हम लगातार विभिन्न मुद्दों पर संवाद करते रहते हैं. मैं भारतीय विदेश मंत्री के साथ मुलाकात में इस क्षेत्र के हालिया घटनाक्रम और द्विपक्षीय संबंधों पर बात होगी.
इस बीच अप्रैल 2018 में अमेरिका द्वारा भारत औऱ चीन को ईरानी तेल खरीद में दी गई रियायत वापस लिए जाने के बाद से नई दिल्ली ने कोई नया खरीदी ऑर्डर नहीं जारी किया है. इसके चलते ईरान से होने वाली तेल खरीद लगभग बंद हो गई है. आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक भारत केवल अमेरिकी पाबंदियों से नाइत्तेफाकी के नाम पर अपनी कंपनियों के लिए जोखिम लेने के मूड़ में कतई नहीं है. ईरान को भी यह समझाने का प्रयास किया गया है कि भारत को अनचाहे यह फैसला लेना पड़ रहा है क्योंकि ऐसा न करने पर उसके आर्थिक नुकसान का खतरा बड़ा है. मामले की जानकारी रखने वाले अधिकारियों के मुताबिक भारत की फिक्र अपनी सरकारी कंपनियों के विदेश में मौजूद निवेश को लेकर हैं. अमेरिकी पाबंदियों के बावजूद तेल खरीदने पर भारत की सरकारी तेल कंपनियों को जोखिम मोल लेना होगा और किसी तरह की कार्रवाई होने पर नुकसान भी भारी होगा.
महत्वपूर्ण है कि, ईरान के तेल का दूसरा सबसे बड़ा तेल खरीददार देश भारत है. वर्ष 2010-11 तक भारत सउदी अरब के बाद सबसे ज्यादा तेल ईरान से ही खरीदता रहा है. हाल के वर्षों में ईरान का स्थान तीसरा रहा है. पेट्रोलियम खरीद के आंकड़ों के मुताबिक मार्च, 2019 को समाप्त वित्त वर्ष में भारतीय तेल कंपनियों ने ईरान से जितनी मात्रा में तेल खरीदी है वह मार्च, 2018 को समाप्त वित्त वर्ष के मुकाबले पांच फीसद ज्यादा है.
भारत और ईरान के बीच केवल तेल खरीद ही नहीं चाबहार बंदरगाह विकास परियोजना भी अहम मुद्दा है. अमेरिकी पाबंदियों से फिलहाल इस परियोजना को रियायत हासिल है.सूत्रों के मुताबिक भारत और ईरान के विदेश मंत्रियों की मुलाकात में चाबहार परियोजना के क्रियान्वयन की भी समीक्षा की गई.
अमेरिकी के डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने 18 मई 2018 को ईरान के साथ ओबामा सरकार के राज में हुए नाभिकीय समझौते या जॉइंट कॉम्प्रिहैंसिव प्लान ऑफ एक्शन( जेसीपीओए) से बाहर निकलने का ऐलान किया था. साथ ही नवंबर 2018 में ईरान के खिलाफ पाबंदियों का भी ऐलान किया था. इसमें यूरोपीय संघ समेत कई हिस्सेदार पक्ष समाधान निकालने की कोशिश कर रहे थे. मगर बीते दिनों अमेरिका द्वारा फारस की खाड़ी में नौसैनिक बेड़ा भेजने के बाद से तनाव और बढ़ा और ईरान ने भी 8 मई को ऐलान किया कि वो जेसीपीओए की शर्तों में संशोधन करेगा. ईरान की फिक्र इस बात को लेकर है कि यदि उसका तेल आयात 15 लाख बैरल प्रति दिन से नीचे गिरा तो नाभिकीय समझौते में रहने की शर्ते टूट जाएंगी और उसपर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध और सख्त हो जाएंगे.
राहुल गांधी का पीएम मोदी पर तंज, पूछा- बारिश में क्या सभी विमान रडार से गायब हो जाते हैं?
माफी की शर्त पर SC ने प्रियंका शर्मा की रिहाई के दिए आदेश, ममता का मीम पोस्ट करने पर हुई थी गिरफ्तार
मणिशंकर अय्यर ने PM मोदी के लिए 'नीच आदमी' वाले बयान को सही ठहराया, BJP बोली- नाश तय है
गृह मंत्री राजनाथ सिंह का दावा- बीजेपी को 2014 की तुलना में अधिक सीटें मिलेंगी