Om Birla On Legislature And Judiciary: पीठासीन अधिकारियों के अखिल भारतीय सम्मेलन में उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विधायी मामलों में 'न्यायिक ओवरस्टेप' के बारे में कड़ी टिप्पणियां की है. धनखड़ ने कहा कि संसद कानून बनाता है और सुप्रीम कोर्ट उसे रद्द कर देता है, क्या संसद से पारित हुआ कानून तभी कानून होगा जब उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी.
सम्मेलन में ओम बिरला ने कहा, "देश की न्यायपालिका से उम्मीद की जाती है कि जो उनको संवैधानिक अधिकार दिया है वह उसका इस्तेमाल करे. साथ ही अपनी शक्तियों का संतुलन भी बनाए रखें." लोकसभा अध्यक्ष ने दो दिवसीय सम्मेलन के बाद कहा कि विधायिका को कानून बनाने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार होना चाहिए. न्यायपालिका के लिए हमारे मन में बहुत सम्मान है और हम उम्मीद करते हैं कि न्यायपालिका संवैधानिक सीमाओं और मिसालों पर टिकी रहेगी.
'विधायिका एकमात्र विधायी प्राधिकरण है'
राजस्थान के स्पीकर सीपी जोशी ने इस विवाद का समर्थन किया. सीपी जोशी ने कहा कि संविधान स्पष्ट रूप से यह कहता है कि विधायिका एकमात्र विधायी प्राधिकरण है और न्यायपालिका की जांच के अलावा कोई भूमिका नहीं है. बिरला ने कहा कि सम्मेलन का संदेश यह है कि तीनों अंग-कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका स्वतंत्र हैं. उनका समान कद है, लेकिन कानून बनाने में विधायिका सर्वोच्च है और न्यायपालिका को केवल कानूनों की समीक्षा करने का अधिकार है.
'एक-दूसरे की स्वतंत्रका का सम्मान करना चाहिए'
ओम बिरला ने इस बात से इनकार किया कि विचार-विमर्श न्यायपालिका पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि सभी संवैधानिक निकायों को एक संदेश भेजा गया है कि लोगों के जनादेश को सर्वोच्चता दी जानी चाहिए. हालांकि, हमें टकराव से बचना चाहिए और एक-दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए.
पीठासीन अधिकारियों का संकल्प
अपने संकल्प में 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन (AIPOC) ने राज्य के सभी अंगों को संविधान में निहित अपनी सीमाओं का सम्मान करने का आह्वान किया. पीठासीन अधिकारियों ने सभी राजनीतिक दलों से विधानमंडल के सदनों में विशेष रूप से प्रश्नकाल के दौरान, किसी भी व्यवधान के खिलाफ आम सहमति बनाने का आह्वान किया.
'कामकाज प्रक्रिया और आचरण की समीक्षा हो'
सम्मेलन ने एक प्रस्ताव पारित किया कि विधायी निकायों के कामकाज की प्रक्रिया और आचरण के नियमों की व्यापक रूप से समीक्षा की जाए और सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल करते हुए आदर्श समान नियम तैयार किए जाएं. इसी के साथ, अभद्रता और असंसदीय आचरण के खिलाफ एक प्रभावी जांच लाने के लिए नियमों में सदस्यों के लिए एक आचार संहिता पेश की जाए.