कांवड़ यात्रा पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा- "सोमवार तक रद्द करने पर फैसला लें, नहीं तो हमें देना पड़ेगा आदेश"
उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील सी एस वैद्यनाथन ने कोर्ट को बताया कि इस यात्रा से जुड़ी लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हैं. इसलिए, इसे मंजूरी दी गई है.
नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा को मंजूरी दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सख्त टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि धार्मिक भावनाएं जीवन के अधिकार से बड़ी नहीं हैं. इस यात्रा के आयोजन से देश के सभी नागरिकों के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है. इसलिए, राज्य सरकार खुद ही इस पर विचार कर निर्णय ले. कोर्ट ने सुनवाई सोमवार, 19 जुलाई के लिए टालते हुए यह भी कहा कि अगर राज्य सही निर्णय नहीं ले पाता तो वह खुद आदेश जारी करेगा.
बुधवार, 14 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन और बी आर गवई की बेंच ने मामले पर स्वतः संज्ञान लिया था. कोर्ट ने कहा था कि उत्तराखंड ने कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए यात्रा रद्द कर दी है. लेकिन यूपी ने ऐसा नहीं किया है. राज्य सरकारों का यह रवैया लोगों को भ्रमित करने वाला है. कोर्ट ने मामले में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. कोर्ट ने यह भी कहा था कि चूंकि यात्रा 25 जुलाई से शुरू होनी है. इसलिए, इस मसले पर जल्द सुनवाई ज़रूरी है.
आज केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की चिंता से सहमति जताते हुए कहा कि इस यात्रा को सांकेतिक रूप से चलाना बेहतर होगा. केंद्र के लिए पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "हरिद्वार से गंगाजल लेकर कांवड़ियों का अपने इलाके के मंदिर तक आना कोरोना के लिहाज से उचित नहीं होगा. बेहतर हो कि टैंकर के ज़रिए गंगाजल जगह जगह उपलब्ध करवाया जाए. हालांकि, इस बारे में फैसला राज्य सरकार को ही लेना है."
उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील सी एस वैद्यनाथन ने कोर्ट को बताया कि इस यात्रा से जुड़ी लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हैं. इसलिए, इसे मंजूरी दी गई है. लेकिन इसे लेकर कड़ी सावधानी बरती जाएगी. सीमित संख्या में ही कांवड़ यात्रियों को अनुमति मिलेगी. नेगेटिव आरटीपीसीआर रिपोर्ट और दोहरे वैक्सीनेशन के प्रमाणपत्र के आधार पर ही किसी को यात्रा में शामिल होने दिया जाएगा.
जज यूपी सरकार की इन दलीलों से संतुष्ट नज़र नहीं आए. बेंच के अध्यक्ष जस्टिस नरीमन ने कहा, "हम आप को विचार का एक और मौका देना चाहते हैं. आप सोचिए कि यात्रा को अनुमति देनी है या नहीं? हम सब भारत के नागरिक हैं. सबको जीवन का मौलिक अधिकार है. इस यात्रा से इस पर सीधा असर पड़ेगा. हम आपको सोमवार तक समय दे रहे हैं. नहीं तो हमको ज़रूरी आदेश देना पड़ेगा." इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई 19 जुलाई के लिए टालते हुए कहा कि उस दिन सुबह तक राज्य सरकार हलफनामा दाखिल कर दे.
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