नई दिल्ली: आईसीएमआर ने एक बार फिर साफ़ किया है कि कोरोना वायरस से लड़ाई के लिए सबको टेस्ट करवाने की ज़रूरत नहीं है. आईसीएमआर के वैज्ञानिक डॉक्टर रमन गंगाखेड़कर के मुताबिक़ कोरोना वायरस की जांच के लिए एक प्रोटोकॉल बना हुआ है, जिसका पालन करते हुए देश में महामारी की जांच की जा रही है. गंगाखेड़कर ने बताया कि चार पांच कारणों से ही जांच की कार्रवाई की जाती है.


पहला, कोई व्यक्ति पिछले 14 दिनों में विदेश से लौटा हो या उसके सम्पर्क में कोई आया हो. हालांकि फ़िलहाल अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रद्द हैं, इसलिए किसी के बाहर सर आने का सवाल ही नहीं उठता है. दूसरा, अगर किसी व्यक्ति में साधारण वायरल इंफेक्शन जैसे खांसी, ज़ुकाम या बुख़ार के लक्षण दिखते हों. तीसरा, अगर कोई संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आया हो. चौथा, संक्रमित मरीज़ों के इलाज़ में लगे डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी और पांचवां, SARI यानि Severe Acute Respiratory Illness की शिकायत वाले व्यक्तियों के लिए.


सरकार की ओर से आईसीएमआर का बयान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान के बाद आया, जिसमें राहुल गांधी ने देश में कोरोना की जांच में तेज़ी लाने की बात कही थी. एक आंकड़ा देते हुए राहुल ने कहा कि भारत में हर 10 लाख की आबादी पर महज 199 टेस्ट हो रहे हैं, जबकि हर ज़िले में औसतन 350 टेस्ट हो रहे हैं.


आईसीएमआर की ओर से गंगाखेड़कर ने भी आंकड़ों में जवाब दिया. उनके मुताबिक़ भारत में एक संक्रमित व्यक्ति तब मिल रहा है जब कुल 24 लोगों की जांच की जा रही है. दूसरे देशों से तुलना करते हुए उन्होंने बताया कि जापान में 11.7 लोगों की जांच करने पर, इटली में 6.7, अमेरिका में 5.3 और यूके में महज 3.4 लोगों की जांच करने पर ही एक संक्रमित व्यक्ति मिलता है.


आईसीएमआर के मुताबिक़ आजतक भारत में कोरोना संक्रमण की जांच के लिए कुल 2,90,401 टेस्ट किए जा चुके हैं. पिछले 24 घंटे में ही जांच के लिए कुल 30,043 सैम्पल लिए गए हैं. क्षमता की बात की जाए तो एक शिफ़्ट होने पर अगर एक दिन में करीब 48000 सैंपल लिए जा सकते हैं, वहीं दो शिफ़्ट होने पर करीब 78000 सैम्पल लिए जा सकते हैं. इनमें सरकारी और प्राइवेट लैब, दोनों शामिल हैं.


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