नई दिल्ली: अन्ना का आन्दोलन छठे दिन में प्रवेश कर चुका है. उनकी सेहत तेज़ी से खराब हो रही है. वहीं सरकार की तरफ से उन्हें मनाने की कोशिशें भी तेज़ हो गई हैं. उम्मीद जताई जा रही है बुधवार को अन्ना और सरकार के बीच कोई सहमति बन सकती है. इस बीच एबीपी न्यूज ने अन्ना के आंदोलन में शामिल लोगों से बात की कि उनकी उम्मीदें क्या हैं?
80 साल के अन्ना हजारे 23 मार्च से दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे हैं. उनका वजन पांच किलो से ज्यादा घट चुका है. इसके बावजूद वो जमे हुए हैं और उनके साथ जमे हैं देश के अलग-अलग इलाकों से आए हुए कई लोग. इनमें ज़्यादातर किसान हैं. आपको बता दें कि इस बार अन्ना के आंदोलन के केंद्र में किसान ही है.
अन्ना किसानों की कर्ज माफी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू करवाने की मांग कर रहे हैं. स्वामीनाथन कमिटी ने किसानों को लागत पर 50% मुनाफे का प्रावधान करने की सिफारिश की थी. इसके अलावा अन्ना की मजबूत लोकपाल और चुनाव सुधार से जुड़ी मांगें भी हैं. सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर महाराष्ट्र सरकार में मंत्री गिरीश महाजन के मुताबिक लोकपाल को छोड़ कर अन्य प्रमुख मांगों पर सहमति बन गई है और लोकपाल पर भी जल्द बात बन जाएगी.
लोकपाल और चुनाव सुधार तो पुराने मुद्दे हैं लेकिन इस बार अन्ना किसानों पर फोकस कर रहे हैं. भले ही महाराष्ट्र सरकार उनसे बातचीत कर रही हो लेकिन अन्ना के सीधे निशाने पर केंद्र सरकार ही हैं. वो पूछ रहे हैं कि चार सालों में मोदी सरकार ने कितने वादे निभाए? अन्ना किसानों की कर्ज माफी और फसल पर 50% मुनाफे के साथ-साथ किसानों के लिए पेंशन और फसलों के मूल्य निर्धारण आयोग को स्वायतता देने की मांग कर रहे हैं.
इस आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए लोग देश के अलग अलग हिस्सो से आए हैं. पंजाब से लेकर महाराष्ट्र, यूपी, एमपी, राजस्थान जैसे तमाम राज्यों के लोग इसमें शामिल हैं. इनमें से ज्यादातर किसान हैं जो अपनी फसलों के सही दाम चाहते हैं. बिना किसी बड़े संगठन के इन सबका दिल्ली पहुंचना बताता है कि ग्रामीण भारत की स्थिति कितनी खराब है. सबको अन्ना की लड़ाई में पूरा भरोसा है.
किसानों के अलावा अन्य कई समूह भी आंदोलन में जमे हैं. इनमें सबसे प्रमुख संख्या है बन्द हो चुकी चिटफंड कंपनी PACL के निवेशकों की. इनका मुद्दा मंच से भले ही प्रमुखता से ना उठ रहा हो लेकिन इन्हें लगता है कि कॉरपोरेट लूट पर रोक लगेगी तो और लोग नहीं ठगे जाएंगे. वहीं इन्हें थोड़ी उम्मीद पैसा वापस मिलने की भी है.
आंदोलन से युवा और शहरी वर्ग गायब है. अन्ना का मनना है कि उनके लिए भीड़ नहीं मुद्दा अहम है. लेकिन भीड़ ना जुटने से निराशा तो उन्हें भी होगी ही. इस बार आंदोलन बिखरा सा है और कोई जोश नहीं दिखता. दिखती है तो बस बेचारे किसानों की सरकार से निराशा और अन्ना से आशा. ऐसे में देखना यही है कि सरकार और अन्ना में अगर सहमति बन जाती है तो किसानों के हाथ क्या आएगा?