8 में से एक इंसान कर रहा है डिप्रेशन के कारण सुसाइड, जानिये क्रिएटिव काम से कैसे मिलती है मदद
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर 8 में से एक शख्स मेंटल डिसऑर्डर का शिकार है. वहीं दुनियाभर में हर साल अलग-अलग उम्र के करीब आठ लाख लोग खुदकुशी करते हैं.
"यार आज काम नहीं कर पा रही हूं, मैं बहुत डिप्रेस फील कर रहा हूं" ये शब्द हम दिन भर में कम से कम एक बार तो जरूर किसी से कहते हैं या सुनते हैं. यूं बात बात पर खुद को डिप्रेस्ड बताना कहीं ना कहीं ये दर्शाता है कि हमारा समाज आज भी मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूक नहीं हैं.
दिल्ली की साइकोलॉजिस्ट डॉ पूनम कहती हैं, " ये एक विडंबना ही है कि हम हर छोटी छोटी बातों में डिप्रेस्ड, डिप्रेशन जैसी शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. इस शब्द का इस्तेमाल हमारे बीच इतना सामान्य है कि असल अवसाद की स्थिति क्या होती है इसे समझ ही नहीं पाते. "
दरअसल विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर 8 में से एक शख्स मेंटल डिसऑर्डर का शिकार है. वहीं दुनियाभर में हर साल अलग-अलग उम्र के करीब आठ लाख लोग खुदकुशी करते हैं. इसी रिपोर्ट के मुताबिक हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति खुदकुशी के कारण अपनी जान गंवाता है.
हालांकि कई मनोवैज्ञानिक का कहना है कि अवसाद की शिकार होने वाले लोगों की संख्या इससे बहुत ज्यादा हो सकती है क्योंकि कई लोगों को पता ही नहीं होता कि वो डिप्रेशन में हैं.
'द कन्वरसेशन' में छपी एक रिपोर्ट कहती है कोरोना के दौर के बाद से बच्चों में डिप्रेशन की समस्या बढ़ गई है. रिपोर्ट के अनुसार जब पूरी दुनिया कोरोना की मार झेल रहा था तब कुछ परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई थी और इसका सीधा असर बच्चों की मानसिक स्थिति पर पड़ा है.
आर्थिक तंगी के कारण खुदकुशी
दौड़-भाग भरी जिंदगी में बढ़ता तनाव लोगों की खुशहाल जिंदगी लील रहा है. रिपोर्ट की माने तो आत्महत्या करने जैसी कदम उठाने वाले ज्यादातर लोग लो एंड मिडिल इनकम देशों से ताल्लुक रखते हैं. आसान भाषा में समझिए तो जिन देशों में लोगों की प्रतिव्यक्ति आय बहुत ज्यादा कम है, वहां आत्महत्या के मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं. हैरान करने वाली बात यह है कि खुदकुशी करने वाले 80 प्रतिशत लोग शिक्षित व नौजवान (15-39 साल) होते हैं और 90 प्रतिशत लोग किसी न किसी मानसिक रोग से पीड़ित होते हैं.
उदासी, डिप्रेशन, एंग्जाइटी अलग-अलग हैं
दिल्ली की साइकोलॉजिस्ट डॉ पूनम कहतीं हैं कि हमारे देश के ज्यादातर लोगों को उदासी, डिप्रेशन, एंग्जाइटी का फर्क नहीं पता है. आमतौर पर जब हम कोई काम नहीं कर पा रहे हों और उससे डिप्रेस महसूस कर रहे हैं, वो असल में डिप्रेशन नहीं उदासी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार डिप्रेशन एक आम मानसिक बीमारी है जो मूड में होने वाले उतार-चढ़ाव और कम समय के लिए होने वाले भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से अलग है. इसके सबसे प्रमुख लक्षण में लगातार दुखी रहना और पहले की तरह चीजों में रुचि नहीं लेना शामिल है.
वहीं एंग्ज़ाइटी डर और घबराहट के लक्षण वाली एक मानसिक बीमारी है. एंग्जाइटी डिसऑर्डर में हर छोटी-छोटी बात पर घबराहट हो जाती है. इस बीमारी में व्यक्ति हर समय किसी न किसी समस्या से परेशान रहता है. कोई शख्स यदि इस समस्या से परेशान है, तो उसे घबराहट होने पर उसकी हार्ट बीट बढ़ जाती है. ये समस्या भविष्य में डिप्रेशन का कारण बनती है.
डिप्रेशन, मनपसंद काम और क्रिएटिविटी
साइकोलॉजिस्ट डॉ पूनम ने कहा अगर आपके आसपास कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसमें उदासी, डिप्रेशन, एंग्जाइटी जैसे लक्षण हो उनके लिए इस स्थिति से निकलने के लिए अपना ध्यान बंटाना होगा. उन्हें उन कामों पर ध्यान देने के लिए कहना चाहिए जो उन्हें पसंद हो. जैसे कुछ लोगों को पेंटिंग करना पसंद है तो कुछ को गाना सुनना, ऐसे कामों में व्यस्त रहने के कारण वह उदासी महसूस नहीं कर पाएंगे.
दिल्ली के मनोविज्ञान विभाग की डॉक्टर स्मिता बताती हैं, "हमारे पास जब ऐसे पेशेंट आते हैं को हम उन्हें सलाह देते हैं, कि आप वो काम करें जो आप आसानी से कर सकते हैं. सबसे पहले जरूरी है कि डिप्रेस फीस कर रहे लोग एक्टिव रहें, इस दौरान कुछ लोग पेंटिंग करते हैं तो कुछ फोटोग्राफी. हमारा मक़सद उस काम की क्वालिटी को देखना नहीं होता, लेकिन कई लोग इस दौरान बहुत अच्छा काम कर जाते हैं. जो लोग क्रिएटिव होते हैं, वो डिप्रेशन के दौरान एक नए तरह का आर्ट बना सकते हैं, वो अच्छा भी हो सकता है, ख़राब भी. मक़सद होता है, उन्हें एक्टिव रखना."
डॉक्टर कहती हैं कि हालांकि ये तरीक़ा सभी पर कारगार साबित होगा ऐसा जरूरी नहीं है. हर इंसान का सोचने का तरीका अलग होता है, कुछ लोगों के केस में क्रिएटिव काम करवा कर उनका ध्यान भटकाना काम कर जाता है लेकिन कुछ केस में नहीं. उन्होंने कहा कि इसके अलावा सिर्फ़ अपना ध्यान किसी क्रिएटिव काम में लगाना भी इलाज नहीं है. ऐसे समय में परिवार और दोस्तों से बातचीत, योगा, फिजिकल एक्टिविटी और डॉक्टर्स द्वारा दी जाने वाली दूसरी थेरेपी भी बहुत ज़रूरी हैं. सबसे ज़्यादा ज़रूरी है आपके दोस्तों और परिवार वालों का साथ और मानसिक स्थिति पर खुलकर बातचीत हो.
डॉक्टर ने कहा कि WHO के रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के बाद से बच्चों में डिप्रेशन की स्थिति बढ़ी है. बच्चों में डिप्रेशन को ऐसे पहचाने
- डिप्रेशन के कारण बच्चे चिड़चिड़े हो जाते है, कई बार उन्हें काफी गुस्सा भी आता है.
- एक सामान्य लक्षण ये भी है कि बच्चे अपना पसंदीदा काम में दिलचस्पी लेना बंद कर देते हैं.
- अवसाद की वजह से बच्चों को सिर दर्द और पेट दर्द की समस्या आने लगते हैं.
- अपने बच्चों के खानपान का ख्याल रखें. अगर बच्चे को भूख कम लग रही है और वह ज्यादा सो रहा है तो ये डिप्रेशन के लक्षण हो सकते हैं.
- इसके साथ अगर बच्चा अकेला रहना पसंद करता है तो यह भी एक डिप्रेशन का लक्षण हो सकते हैं.
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