लॉकडाउन के 30 दिन: महामारी ने कैसे लगा दी जिंदगी की रफ्तार पर ब्रेक, जानें एक महीने का पूरा हाल
लॉकडाउन के 30 दिन पूरे हो चुके हैं. अब तक पूरे देश में 23452 केस आ चुके हैं जो अभी भी लगातार बढ़ रहे हैं. वायरस के कारण हुए लॉकडाउन ने उद्योगों, छोटे कारोबारियों, एमएसएमई, इंडस्ट्री पर भारी नकारात्मक असर छोड़ा है जो आनेवाले समय में और बड़ा हो सकता है.
नई दिल्ली: देश में कोरोना महामारी के एक महीने पूरे हो चुके हैं. वायरस को हर मुमकिन मात देने में पीएम मोदी द्वारा लगाया गया लॉकडाउन बेहद कारगार साबित हुआ. इस बीच देशभर से कई ऐसी तस्वीरें सामने आई जिसने सभी देशवासियों को झकझोर कर रख दिया लेकिन फिर भी भारत के नागरिक इस महामारी का डट कर मुकाबला करते रहे और पीछे नहीं हटे. एक महीने बाद अब आलम ये है कि सरकार के विशेषज्ञों का मानना है कि लॉकडाउन ने कोरोना संक्रमण की रफ़्तार पर एक तरह का नियंत्रण बना लिया है और इसे जल्द ही पूरा देश मात देने में कामयाब होगा.
कोरोना महामारी के चलते पिछले महीने 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की गई थी. अब तक पूरे देश में 23452 केस आ चुके हैं जो अभी भी लगातार बढ़ रहे हैं. इस बीच एक्टिव केस कुल 17915 हैं तो वहीं इस खतरनाक वायरस के कारण 723 लोग अब तक अपनी जान गंवा चुके हैं. वहीं दूसरे देशों के मुकाबले भारत का रिक्वरी रेट काफी अच्छा है. इन आंकड़ों में से कुल 4813 लोग अब तक रिक्वर भी हो चुके हैं. 30 दिनों के भीतर देश को काफी नुकसान सहना पड़ा तो वहीं कई फायदे भी हुए. लॉकडाउन के दौरान सब कुछ बंद रहने का असर सीधे अर्थव्यवस्था पर पड़ा जिससे अब लोगों की आजीविका पर खतरा मंडरा रहा है. एक ग्लोबल एविएशन कॉर्पोरेशन ने शुक्रवार को कहा कि कोरोना वायरस महामारी के चलते भारतीय एविएशन सेक्टर और उस पर निर्भर उद्योगों में 29 लाख नौकरियों के जोखिम में पड़ने की आशंका है.
कोरोना वायरस के कारण देश में 3 मई तक लॉकडाउन जारी है और आर्थिक गतिविधियां लगभग नहीं के बराबर हो रही हैं. इसके चलते उद्योगों, छोटे कारोबारियों, एमएसएमई, इंडस्ट्री पर भारी नकारात्मक असर हो रहा है. अद्योग और व्यवसाय से जुड़े संगठन फ़िक्की यानी फेडेरेशन ऑफ़ इंडियन चैंबर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के एक अनुमान के मुताबिक़ बंद के हर दिन भारतीय अर्थव्यवस्था को चालीस हज़ार करोड़ रूपयों का नुक़सान हो रहा है. वहीं साल 2020 के अप्रैल-सितंबर के बीच कम से कम चार करोड़ नौकरियों के जाने का ख़तरा है.
लॉकडाउन के कारण पर्यावरण और नदियां स्वच्छ हुई हैं, लेकिन कोरोना संकट से मजदूर और छोटे कारोबारी बेहाल हैं क्योंकि जीवन यापन के संघर्ष को लेकर लोगों में चिंता बढ़ी है.
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच की मानें तो वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर घटकर 0.8 फीसदी रह सकती है. फिच रेटिंग्स ने अपने वैश्विक आर्थिक अनुमानों में कहा कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के दौरान घटकर 0.8 फीसदी रह जाएगी, जबकि बीते वित्त वर्ष के दौरान यह आंकड़ा 4.9 फीसदी था.
देश में फिलहाल लॉकडाउन 3 मई तक है. लेकिन सरकार की ओर से पहली बार ये संकेत दिया गया कि कोरोना संक्रमण की रफ़्तार में गिरावट आ रही है. दूसरे देशों के मुकाबले भारत की कोरोना जंग की तारीफ हो रही है. ऐसे में आज गृह मंत्रालय ने एक नए आदेश में शुक्रवार को कहा कि सभी संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जरूरी सावधानियों को ध्यान में रखते हुए 50 प्रतिशत कार्यबल के साथ दुकान और प्रतिष्ठान खोले जा सकते हैं. इससे एक तरह की उम्मीद तो बंध रही है कि देश जल्द ही इस महामारी से बाहर आ जाएगा लेकिन इस वायरस के नुकसान की भरपाई का डर अभी भी लोगों के जहन में बसा हुआ है.