नई दिल्ली: ‘एक देश एक चुनाव’ की प्रधानमंत्री मोदी की योजना परवान चढ़ती नजर आ रही है. सूत्रों के मुताबिक कोशिश इस बात की है कि "एक देश एक चुनाव" 2019 से लागू कर दिया जाए. इसके तहत कम से कम 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ कराए जा सकते हैं. बीजेपी की योजना है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम के चुनाव आगे बढ़ाए जाएं. ओड़िशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के चुनाव तय वक्त पर लोकसभा के साथ हों और हरियाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड के चुनाव जल्दी कराए जाएं.


कैसे लागू हो सकता है एक देश, एक चुनाव?
ओड़िशा, तेलंगाना,और आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव तो लोकसभा के साथ ही होते हैं. लेकिन बाकी बचे आठ राज्यों में से मिजोरम में मौजूदा विधानसभा की मियाद दिसंबर तक है जबकि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जनवरी 2018 तक. सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के बीच की अवधि को पाटने के लिए इन राज्यों में न्यूट्रल सरकार रखने के लिए गवर्नर रूल यानी राष्ट्रपति शासन भी लागू करने का विकल्प आज़माया जा सकता है.


पिछली बार हरियाणा, महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव लोकसभा के 6 महीने बाद हुए थे. पिछली बार झारखंड विधासनभा के चुनाव लोकसभा के 7 महीने बाद हुए थे. लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत बिहार की है क्योंकि यहां चुनाव लोकसभा के करीब डेढ़ साल बाद हुए थे तो क्या ऐसे में सवाल है कि क्या बिहार में डेढ़ साल पहले ही चुनाव करा लिए जाएंगे.


भोपाल में तैयारियों का जायजा लेने आए चुनाव आयुक्त चंद्र भूषण से ये सवाल किया गया तो उन्होंने इस पर सीधा जवाब नहीं दिया. वहीं सूत्रों के मुताबिक सरकार इस पर गंभीर है. बीजेपी की तरफ से विधि आयोग को 8 पेज का हलफनामा दिया गया. हलफनामा एक देश, एक चुनाव के पक्ष में है. तर्क दिया जा रहा है कि बार-बार चुनाव से बार-बार विकास की योजनाएं रूकती हैं. एक देश एक चुनाव से चुनावी खर्च की भी बचत होगी.


सेल्फ गोल करेगी बीजेपी: सिंधिया
कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा है कि अगर बीजेपी ने ऐसा किया तो ये सेल्फ गोल होगा. वहीं शिवसेना इस मामले पर चुनाव आयोग से मिली और मांग की ऐसे में चुनाव प्रचार में पीएम और सीएम शामिल ना हों. इस मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने के लिए सर्वदलीय बैठक सरकार बुला सकती है. यह बैठक विधि आयोग की सिफारिश सामने आने के बाद आयोजित की जा सकती है. बता दें कि 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ होते थे. लेकिन कभी राज्य और कभी केंद्र में अस्थिता के चलते चुनावों के वक्त में फर्क आता चला गया.