One Nation One Election Cost: एक देश, एक चुनाव लागू हुआ तो बचेगा 5500 करोड़ रुपए का खर्च? समझें कैसे
One Nation One Election: 'एक देश, एक चुनाव' की समिति की रिपोर्ट में आगामी लोकसभा, विधानसभा, नगरपालिकाओं और पंचायत चुनावों को एक साथ आयोजित करने से संबंधित सिफारिशें पेश की गई थीं.
One Nation One Election Cost: मोदी सरकार की कैबिनेट ने कोविंद कमिटी की 'एक देश, एक चुनाव' पर बनी उच्च स्तरीय कमेटी की सिफारिशों को मंजूर कर लिया है. इसी साल मार्च में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली इस कमेटी ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.
'एक देश, एक चुनाव' को लेकर बनी इस कमेटी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और चीफ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे. इसके अलावा विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर कानून राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल और डॉ. नितेन चंद्रा समिति में शामिल थे.
रिपोर्ट में क्या हैं सिफारिशें?
'एक देश, एक चुनाव' की समिति की रिपोर्ट में आगामी लोकसभा, विधानसभा, नगरपालिकाओं और पंचायत चुनावों को एक साथ आयोजित करने से संबंधित सिफारिशें पेश की गई थीं. रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि चुनाव दो चरणों में संपन्न हो. पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराए जाएं, जबकि दूसरे चरण में नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव हों. इसे इस प्रकार समन्वित किया जाए कि पहले चरण के चुनावों के सौ दिनों के भीतर नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव संपन्न हो सकें.
क्या 'एक देश, एक चुनाव' से चुनावी खर्चे हो जाएंगे किफायती?
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक देश, एक चुनाव लागू करने के पक्ष में दलील देते हुए कहा, "चुनाव की वजह से जो बहुत खर्चा होता है, वो न हो. बहुत सारा जो लॉ एंड ऑर्डर बाधित होता है, वो न हो. एक तरीके से जो आज का युवा है, आज का भारत है, जिसकी इच्छा है कि विकास जल्दी से हो उसमें चुनावी प्रक्रिया से कोई बाधा न आए."
देशभर में एक साथ चुनाव कराए जाने पर कितने पैसों की बचत होगी?
साल 2018 में लगाए गए अनुमान के मुताबिक, लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग कराए जाने पर सरकारी खजाने पर 10 हजार करोड़ रुपये का भार पड़ता है. साल 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की रिपोर्ट में ये आंकड़ा 10 से 12 हजार करोड़ रुपये आंका गया था, लेकिन अगर ये चुनाव एक साथ कराए जाएंगे तो यह आंकड़ा घटकर 4500 करोड़ रुपये हो जाएगा. यानी एक साथ चुनाव कराने पर करीब 5500 करोड़ रुपये की बचत होगी.
कहां खर्च करता है चुनाव आयोग?
लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव दोनों में चुनाव आयोग को कई तरह के खर्चों से गुजरना पड़ता है. इनमें अधिकारियों और सशस्त्र बलों की तैनाती, मतदान केंद्र स्थापित करना, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) की खरीद और अन्य जरूरी उपकरण की व्यवस्था शामिल है. इसके साथ ही जागरूकता कार्यक्रम चलाने में भी खर्च होता है.
इनमें से EVMs की खरीद एक बड़ा खर्च है. चुनाव आयोग (EC) को अपने अधिकारियों और स्वयंसेवकों को उनके चुनावी कार्य के लिए भुगतान करना पड़ता है. अधिकारियों को ट्रेनिंग और यात्रा के लिए भुगतान किया जाता है. इसके अलावा, चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के चुनावी अभियानों और मतदान प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी कराता है, जिससे खर्च और बढ़ जाता है. EC के हालिया आदेश (22 मार्च) के अनुसार, एक प्रिसाइडिंग ऑफिसर को प्रति दिन 350 रुपये जबकि मतदान अधिकारियों को 250 रुपये प्रति दिन का भुगतान किया जाता है.
ये भी पढ़ें:
One Nation One Election के बहाने बीजेपी पर अखिलेश यादव ने कसा तंज, उठाए ये सवाल