One Nation One Election: मोदी कैबिनेट ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को आखिरकार बुधवार (18 सितंबर) को मंजूरी दे दी. कमेटी ने सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाने का सुझाव दिया है. संसद के शीतकालीन सत्र में इसपर बिल पेश किया जा सकता है. इसके बाद संसद, संविधान संशोधन और राज्यों के सहयोग के साथ सरकार आगे इस दिशा में रास्ता तय करेगी. आइए जानते हैं इससे पहले वन नेशन वन इलेक्शन पर कब हुई बात?
भारत की आजादी के बाद पहले चुनाव एक साथ हुए थे. इसके बाद 1957, 1962 और 1967 तक तक भारत में एक देश एक चुनाव ही होता था. यानि कि सभी राज्यों के लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ कराए जाते थे. हालांकि, इसके बाद फिर कभी देश में एकसाथ चुनाव नहीं कराए जा सके.
एक देश एक चुनाव का विचार 1983 से हुआ शुरू
देश में वन नेशन वन इलेक्शन का विचार कम से कम 1983 से ही चला आ रहा है, जब भारतीय चुनाव आयोग ने 1983 में एक साथ चुनाव कराए जाने का प्रस्ताव तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार को दिया था. हालांकि, चुनाव आयोग ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा कि तत्कालीन सरकार ने इसके खिलाफ फैसला लिया था. इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एकसाथ चुनाव कराने की चर्चा फिर तेज हुई.
1999 में लॉ कमीशन ने एक साथ चुनाव कराने की सौंपी थी रिपोर्ट
इसके बाद साल 1999 में लॉ कमीशन ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने से जुड़ी रिपोर्ट सौंपी. ताकि, देश में विकास कार्य चलते रहें. "इसके बाद साल 2014 में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए घोषणापत्र में कहा कि राज्य सरकारों की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एकसाथ चुनाव कराने की कोशिश करेगी.
एक देश एक चुनाव कराने पर 2015 में लॉ कमीशन ने सौंपी रिपोर्ट
जब मई 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आई, तो एक बार फिर देश में वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर बहस शुरु हो गई. जिसके बाद साल 2015 में लॉ कमीशन ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक रिपोर्ट पेश की थी. इसमें बताया था कि अगर देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं. साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से विकास से जुड़े कामों पर भी असर नहीं पड़ेगा. इन बातों के मद्देनजर 2015 में सिफारिश की गई थी कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए.
PM मोदी क्यों चाहते हैं एकसाथ चुनाव
साल 2017 में नीति आयोग ने वन नेशन वन इलेक्शन कराने पर जोर दिया. इसके बाद साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अगस्त 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट आई थी. इसमें कहा गया था कि अगर 2019 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं, तो उससे 4,500 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ेगा. ये खर्चा इसलिए क्योंकि ईवीएम ज्यादा लगानी पड़ेंगी. जिसके बाद PM मोदी ने 2019 में पहली बार औपचारिक तौर पर सभी पार्टियों के साथ इस मसले पर विचार-विमर्श के लिए बैठक बुलाई थी.
2023 को कोविंद समिति का हुआ गठन
हालांकि, कोविंद समिति का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था. समिति ने करीब 190 दिनों तक राजनीतिक दलों तथा विभिन्न हितधारकों के साथ मंथन करने के बाद 18,626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की थी. 8 सदस्यीय समिति ने आम जनता से भी राय ली थी. आम लोगों की तरफ से 21,558 सुझाव मिले. इसके अलावा 47 राजनीतिक दलों ने भी अपने राय और सुझाव दिए, जिनमें 32 ने इसका समर्थन किया था. कुल 80 प्रतिशत सुझाव 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के पक्ष में आए थे. समिति ने देश के प्रमुख उद्योग संगठनों और अर्थशास्त्रियों के भी सुझाव लिए थे.
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