नई दिल्ली: गल्वन घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई झड़प को एक साल हो चुका है. पिछले साल 15 जून को चीन के सैनिकों ने गश्त के दौरान समझौते के खिलाफ जाकर भारतीय जवानों पर हमला किया था. इसके बाद दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प शुरू हो गयी थी. 


इस छड़प में भारत के बीस सैनिक शहीद हुए थे, जबकि चीन ने सिर्फ चार सैनिकों के मारे जाने की बात कुबूली थी. एक साल पूरा होने के बाद अभी सीमा पर शांति है और सैनिकों के पीछे हटने का काम भी जारी है. लेकिन विश्वास का माहौल बन नहीं पाया है. इसकी बड़ी वजह भी है कि चीन ने जितनी भी बार भी कोई वादा किया है, उससे परे जाकर वादा खिलाफी की है.


गल्वन के बाद और मजबूत हुई भारत की सुरक्षा
एक अधिकारी ने बताया, ‘‘सैन्य रूप से हम इस बार बेहतर तरीके से तैयार हैं. गल्वन घाटी की झड़प के बाद हमें उत्तरी सीमा पर राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर अपने दृष्टिकोण को प्राथमिकता में रखने का मौका मिला.’’ यह पता चला है कि चीन ने भी ऊंचाई वाले क्षेत्र के कई इलाकों में अपनी मौजूदगी बढ़ा ली है.


सेना के तीनों अंगों के बीच बढ़ा तालमेल, एलएसी पर बढ़ी मुस्तैदी
सूत्रों ने कहा कि झड़प के बाद सेना के तीनों अंगों के बीच तालमेल और एकजुटता भी बढ़ी है. उन्होंने एलएसी पर समग्र चुनौतियों से निपटने के लिए भारतीय थल सेना और भारतीय वायु सेना के एकीकृत रुख का भी हवाला दिया. एक अधिकारी ने कहा, ‘‘इस झड़प के बाद थल सेना और वायु सेना के बीच तालमेल और बेहतर हो गया.’’


भारत अब किसी भी स्थिति से निपटने में सक्षम
सूत्रों ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच अब भी विश्वास बहाल नहीं हो पाया है और भारत पूर्वी लद्दाख और अन्य क्षेत्रों में एलएसी के पास किसी भी स्थिति से निपटने को तैयार है. सैन्य और राजनयिक स्तर पर कई दौर की बातचीत के बाद दोनों सेनाओं ने फरवरी में पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी तट से सैनिकों और हथियारों को हटाने की प्रक्रिया पूरी कर ली. टकराव के बाकी स्थानों से भी सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया पर बातचीत चल रही है.