One Year of Lockdown: बीते साल 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना वायरस के कहर के बाद देशभर में लॉकडाउन लगाने की घोषणा की थी. ये दिन अब इतिहास में दर्ज हो गया है. देश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों का आंकड़ा 500 से पार होने के बाद यह एहतियाती कदम उठाया गया था. लेकिन आज की वर्तमान स्थिति पिछले साल के मुकाबले ज्यादा भयावह हो गई है. देश में आज संक्रमण के 53 हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं. जानिए लॉकडाउन के बाद देश में क्या बदला.


अभी भी बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है भारत


लॉकडाउन के चलते पैदा हुआ आजीविका का संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा और एक साल बाद भी भारत बेरोजगारी की समस्या से उबर नहीं पाया है. सरकार ने महामारी के घातक प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया था, लेकिन इससे आर्थिक और वाणिज्यिक गतिविधियां थम गईं और बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा और प्रवासी मजदूरों के पलायन ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया.


सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार फरवरी 2021 में बेरोजगारी की दर 6.9 प्रतिशत रही, जो पिछले साल इसी महीने में 7.8 प्रतिशत और मार्च 2020 में 8.8 प्रतिशत थी. आंकड़ों से पता चलता कि अप्रैल में बेरोजगारी दर 23.5 प्रतिशत तक पहुंच गई थी और मई में यह 21.7 प्रतिशत पर रही. हालांकि, इसके बाद थोड़ी राहत मिली और जून में यह 10.2 प्रतिशत और जुलाई में 7.4 प्रतिशत रही.


शिक्षा के तौर तरीकों में आए नए बदलाव


पिछला अकादमिक सत्र इतिहास में एक ऐसे दौर के रूप में याद किया जाएगा, जिसमें पढ़ने लिखने के तौर तरीकों में नए बदलाव की शुरुआत हुई. कोरोना वायरस महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के दौरान ‘स्मार्टफोन क्लासरूम’ से लेकर ‘व्हाट्सऐप’ माध्यम से परीक्षा आयोजित की गई और ‘जूम’ पर प्लेसमेंट होने से लेकर ‘स्क्रीन’ के सामने बैठने का समय तक निर्धारित किया गया जो पहले कभी नहीं हुआ था.


गत वर्ष लॉकडाउन की घोषणा होने के एक सप्ताह बाद ही 2020-21 का अकादमिक सत्र शुरू होने वाला था और ऐसे में स्कूल के पहले दिन बच्चों को न बस्ता तैयार करना पड़ा, न ‘स्पोर्ट्स डे’ हुआ, न कोई ‘फेयरवेल’ और न ही दोस्तों के साथ अपना टिफिन साझा करने का मौका मिला. आमतौर पर स्कूल और घरों में बच्चों को स्मार्टफोन तथा लैपटॉप के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जाती लेकिन पूरे एक साल तक यह उपकरण पठन-पाठन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बने रहे.


भारतीय खेलों की दुनिया भी बदल गई


दर्शकों के बिना मैचों का आयोजन, अभ्यास की बदली परिस्थितियां और बायो बबल पिछले एक साल में खेलों के अभिन्न अंग बन गए, क्योंकि कोरोना और उसके बाद लगाये गए लॉकडाउन के कारण भारतीय खेलों का परिदृश्य भी बदल गया है. कोरोना का प्रकोप ऐसा पड़ा जिससे खेलों की चमक फीकी पड़ गई. खिलाड़ी हॉस्टल के अपने कमरों या घरों तक सीमित रहे और उन्हें यहां तक कि अभ्यास का मौका भी नहीं मिला. ओलंपिक सहित कई बड़ी खेल प्रतियोगिताएं भी स्थगित या रद्द कर दी गयी. आज भारत में क्रिकेट मैच बिना दर्शकों के खेले जा रहे हैं.


घरेलू विमानन उद्योग की हालत में सुधार


भारत में घरेलू विमानन क्षेत्र ने कोरोना संक्रमण के दौरान पिछले एक साल में कारोबार को हुए नुकसान की तेजी से भरपाई की है, हालांकि महामारी को लेकर अनिश्चितता जारी रहने से गतिरोध बना हुआ है. पिछले दिनों कई राज्यों ने कोरोना महामारी के चलते कुछ प्रतिबंध लगाए हैं और दिशानिर्देशों को सख्त बनाया है. घरेलू बाजार के विपरीत भारत से अंतरराष्ट्रीय विमान यात्राएं सुधार से अभी बहुत दूर हैं, अभी सिर्फ 27 देशों के साथ विशेष व्यवस्था के तहत भारत से चुनिंदा उड़ानों का संचालन ही किया जा रहा है.


भारत में अंतरराष्ट्रीय हवाई यातायात मार्च-दिसंबर 2020 में 90.56 प्रतिशत घटकर 18.55 लाख हो गया. अप्रैल-सितंबर 2020 के दौरान प्रमुख भारतीय विमानन कंपनियों की आय घटकर 11,810 करोड़ रुपये रह गई, जो इससे पिछले साल की समान अवधि में 46,711 करोड़ रुपये थी.


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