नई दिल्ली: देश में धोखेबाजों की चांदी सी होती दिखाई दे रही है. जोखिम से बचने का तरीका मुहैया कराने वाली कंपनी क्रॉल की ताजा रिपोर्ट बताती है कि 2017 के दौरान फ्रॉड का शिकार होने वाले भारतीय कंपनियों की गिनती विश्व औसत (ग्लोबल एवरेज) से भी ज्यादा रही.


क्रॉल की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, एक सर्वे में भाग लेने वाले भारतीय कारोबारियों में से 89 फीसदी ने माना कि पिछले 12 महीने में उनकी कंपनी को कम से कम एक बार फ्रॉड का शिकार होना पड़ा. ये सख्या 2016 में 68 फीसदी थी. यानी फ्रॉड का शिकार होने वालों की संख्या 21 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जो चिंताजनक है. साथ ही ये विश्व औसत के मुकाबले 5 पर्सेंटेज प्वाइंट ज्यादा है.


सर्वे में भाग लाने वालों में से 84 फीसदी ने कहा कि 2017 में उनकी कंपनी को कम से कम एक बार साइबर अटैक झेलना पड़ा, जबकि 2016 में ये बात कहने वाले 73 फीसदी लोग थे. साथ ही ये विश्व औसत से दो पर्सेंटेज प्वाइंट ज्यादा है.  74 फीसदी लोगों ने सुरक्षा पर कम से कम एक बार चोट की बात मानी है. 2016 में ये संख्या 72 फीसदी थी जबकि विश्व औसत 70 फीसदी है.


ये नतीजे भारत के दुनियाभर में विभिन्न कंपनियो में शामिल 540 वरिष्ठ अधिकारियों से ऑनलाइन सर्वे के आधार पर हासिल किया गए. इसमें भारतीय कंपनियों के सीनियर अधिकारियों की हिस्सेदारी 9 फीसदी यानी 49 फीसदी रही. खास बात ये रही कि जब विभिन्न देशों में कार्यरत अधिकारियों से पूछा गया कि सुरक्षा कारणों से उन्हें किस देश मे काम करने से रोका गया तो महज 9 फीसदी ने ही भारत का नाम लिया जबकि 2016 में ये संख्या 19 फीसदी थी. इससे जाहिर होता है कि फ्रॉड के बढ़ते जोखिम के बावजूद भारत निवेशकों के लिए पसंदीदा जगहों में अपनी स्थिति बेहतर करने में कामयाब रहा है.


फ्रॉड के तरीके, जोखिम और बचाव


फ्रॉड के तरीकों की बात करें तो उसमें मुख्य रुप से संपत्ति की चोरी, बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) की चोरी और मिलीभगत कर बाजार में नुकसान पहुंचाने की कोशिश शामिल है. फ्रॉड करने वालों में पार्टनर्स, जूनियर कर्मचारी और सामान (लॉजिस्टिक) मुहैया कराने वाले मूल रूप से शामिल है. फ्रॉड करने वालों में 45 फीसदी के साथ सबसे ऊपर बिजनेस पार्टनर्स रहे. सर्वे में भाग लेने वाले 33 फीसदी ने कहा कि फ्रॉड की वजह से कुल आमदनी के सात फीसदी के बराबर का घाटा उठाना पड़ा.


सर्वे में शामिल लोगों की राय में फ्रॉड को लेकर कई तरह की जोखिम की आशंका काफी ज्यादा बनी रहती है. सर्वे में भाग लेने वाले 10 में से नौ ने सूचनाओं को चीरी, डाटा या उनपर हमले को सबसे बड़ा खतरा बताया तो 85 फीसदी की राय थी कि खातों में हेराफेरी का खतरा काफी है. कुछ लोगों का मत था कि बौद्धिक संपदा की चोरी और नकली माल का जोखिम बड़ा हो रहा है.


फिलहाल, सर्वे में एक बात सामने आयी कि भारतीय कारोबारी जोखिम प्रबंधन (रिस्क मैनेजमेंट) के नए-नए उपायों को आजमा रहे हैं. मसलन 83 फीसदी लोगों ने जहां वित्तीय नियंत्रण (फाइनैंशियल मैनेजमेंट) के बेहतर तरीके अपनाए जाने की बात मानी, वहीं 83 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किया है.


क्या है सबसे बड़ा खतरा


सर्वे में शामिल होने वाले 80 फीसदी लोगों को ईमेल से हमले (phishing attack) का खतरा सबसे बड़ा खतरा लगता है. वहीं डाटा नष्ट होना और डाटा में बदलाव दूसरे बड़े खतरे हैं. इस सूची में वायरस अटैक का खतरा बाद में आता है. साइबर सिक्योरिटी में सेंध लगाने का सबसे बड़ा लक्ष्य कर्मचारियों का रिकॉर्ड है, वहीं कारोबारी गोपनीयता और ग्राहकों के रिकॉर्ड में सेंधमारी का खतरा बना रहता है. साइबर अटैक की वजह से कर्मचारियों की निजता और कार्यकुशलता (प्राइवेसी-प्रोफिशिएंसी) पर असर पड़ता है.


सार्क के तीन देश सुरक्षा कारणों से खतरे वाली लिस्ट में शुमार


सुरक्षा में सेंध को लेकर सबसे ज्यादा चिंता सामान की चोरी को लेकर रही. हालांकि बौद्धिक संपदा को लेकर हुए नुकसान और कार्यस्थल पर हिंसा भी सुरक्षा के मामले में दूसरी और तीसरी बड़ी चिंता रही. आतंकवाद को लेकर कारोबारियों के बीच काफी चिंता है. सर्वे में भाग लेने वाले तीन चौथाई लोगों ने आतंकवाद को बड़ा खतरा माना है जबकि विश्व स्तर पर ये संख्या 49 फीसदी है.


सुरक्षा में सेंध लगाने वालों में कर्मचारी सबसे आगे हैं, वहीं पुराने कर्मचारी भी इस मामले में पीछ नहीं रहते. सर्वे में भाग लेने वालें 53 फीसदी से ज्यादा लोगों ने कहा कि सुरक्षा कारणों से उन्हे अलग-अलग देशों में काम करने से मना किया जाता है. इन देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका शामिल हैं.