Sonam Wangchuk On Hunger Strike: लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने समेत विभिन्न मांगों को लेकर दिल्ली में पिछले 14 दिन से जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक अनशन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि केवल चुनावों से ही कोई देश लोकतांत्रिक नहीं बन जाता बल्कि यह तभी हो सकता है जब लोगों की आवाज सुनी जाए. 


लेह से दिल्ली तक की पदयात्रा का नेतृत्व करने वाले सोनम वांगचुक को पिछले महीने उनके कई समर्थकों के साथ हिरासत में लिया गया था और बाद में रिहा कर दिया गया था. वह तब से देश के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की मांग को लेकर करीब दो दर्जन समर्थकों के साथ लद्दाख भवन में अनिश्चितकालीन अनशन पर हैं. सरकार की ओर से अब तक किसी भी बैठक के बारे में कोई सूचना नहीं दी गई है. 


छह अक्टूबर से अनशन पर हैं सोनम वांगचुक


छह अक्टूबर, 2024 से सिर्फ नमक के पानी का घोल पीकर अनशन कर रहे सोनम वांगचुक ने अफसोस जताते हुए कहा कि उनके समर्थकों को भवन के चारों ओर अवरोधक लगाकर शीर्ष नेतृत्व से मिलने से रोका जा रहा है. कई दिन के उपवास के बाद शारीरिक रूप से कमजोर हो चुके वांगचुक ने मद्धिम आवाज में बात की और इंटरव्यू में बताया, “आप देख सकते हैं कि लद्दाख भवन में पाबंदियां हैं. वे तय कर रहे हैं कि कौन अंदर आ सकता है और कौन नहीं. वे लोगों को यहां पार्क में इकट्ठा होने की भी अनुमति नहीं दे रहे.” 


नहीं सुन रही सरकार- सोनम वांगचुक


सोनम वांगचुक ने बताया कि शायद उनको मिल रहे समर्थन से शीर्ष नेतृत्व को कुछ डर है. वे उन लोगों से डरते हैं, जो चुपचाप अनशन करना चाहते हैं. दिल्ली आने के बाद से उनके साथ जो कुछ हुआ उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता. यह लोकतंत्र के लिए दुखद है. देश के एक छोर से सीमावर्ती इलाकों से 150 लोग राष्ट्रीय राजधानी में आए, जिनमें 80 से अधिक उम्र के लोग, महिलाएं और भारत की सीमाओं की रक्षा करने वाले सेवानिवृत्त सैनिक शामिल हैं. दिल्ली आने के बाद उन्हें हिरासत में लिया गया और फिर अनशन पर बैठने के लिए मजबूर किया गया. इतना कुछ होने के बावजूद सरकार सुनने को भी तैयार नहीं हैं.


इसे कैसे कहें लोकतंत्र - सोनम वांगचुक 


एक्टिविस्ट ने कहा कि समझ नहीं आ रहा कि इसे लोकतंत्र कैसे कहें. केवल चुनाव किसी देश को लोकतांत्रिक नहीं बनाते. सरकार को लोगों का और उनकी आवाज का सम्मान करना होगा. उन्होंने कहा कि वह दुनिया के सबसे बड़े लोकंतत्र के लिए दुखी हैं. लोकतंत्र में सरकार को इतना निर्दयी नहीं होना चाहिए, खासकर तब जब बात सीमावर्ती क्षेत्र से आए लोगों की हो. हमने वर्षों तक पांच से छह युद्ध में सीमाओं की रक्षा की है. इस तरह के व्यवहार से लोगों का मनोबल और उनकी देशभक्ति प्रभावित हो सकती है. 


फिर से बातचीत शुरू करने का आग्रह कर रहे हैं सोनम वांगचुक


सोनम वांगचुक ने यह भी बताया, ‘‘अभी तक किसी ने हमसे संपर्क नहीं किया है. हम यहीं बैठे रहेंगे. हमें कोई जल्दी नहीं है. विरोध जारी रहने से शायद सरकार हमारी बात सुन ले. हम यह नहीं कह रहे हैं कि हमें आज अंतिम फैसला सुना दें, हम बस उनसे बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह कर रहे हैं.’’


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