Opretaion Dost In Tirkiye: तुर्किए में भारतीय सेना का ऑपरेशन दोस्त पूरा हो गया है. तुर्किए-सीरिया में भूकंप के चलते मानव त्रासदी में पीड़ितों की मदद के लिए चलाए गए इस अभियान के तहत भारतीय सेना ने पीड़ितों के लिए राहत और बचाव में हिस्सा लिया था. इस ऑपरेशन के लिए रातों-रात 140 से ज्यादा पासपोर्ट तैयार किए गए थे. यही नहीं, बचाव दल की टीम करीब 10 दिनों तक वहां रही. संकट के इस काल में वहां नहाने तक की दिक्कत थी. ऐसे में 10 दिनों तक भारतीय सेना के जवान अपनी परवाह किए देवदूत बनकर तुर्की लोगों की मदद में जुटे रहे.


बचाव दल के साथ सदस्यों में गए जवानों में एक महिला जवान तो अपने डेढ़ साल के जुड़वां बच्चों को छोड़कर गई थी. कठिन मिशन को पूरा करके लौट आए जवानों के दिलों में अभी भी तबाही से सिसक रही तुर्किए की तस्वीर बसी है और एक ख्याल भी कि क्या हम कुछ और जानें भी बचा सकते थे.


जवानों को आज भी है याद
उनके दिल में तुर्की लोगों से मिले प्यार का ख्याल भी है कि कैसे जब जवानों को शाकाहारी खाने की जरूरत थी तो ऐसे मुश्किल समय में भी वहां के लोगों उन्हें उपलब्ध कराया. डिप्टी कमांडेंट दीपक के जेहन में ऐसे ही एक शख्स अहमद की याद है जिसकी बीवी और तीन बच्चों भूकंप के चलते मारे गए थे, बावजूद उसने दीपक के लिए शाकाहारी खाने का इंतजाम किया. अहमद के पास शाकाहारी के रूप में सेब या टमाटर जो भी था, उसे लेकर दीपक को लाकर देते थे.


तुर्किए के लोग बोले- थैंक यू इंडिया
ये ऑपरेशन भले ही थोड़े दिनों का रहा हो, उसकी याद लंबे समय तक दोनों तरफ रहने वाली है. जब भारतीय जवान लौट रहे थे, तो उन्हें विदा करते समय तुर्किए के कई नागरिक भावुक हो गए. अपने हिंदुस्तानी दोस्तों के लिए उन्हें शुक्रिया कहते वक्त उनकी आंखें छलक आईं.


भूंकप पीड़ितों की मदद के लिए ऑपरेशन दोस्त के तहत भारत से भेजी गई टीम ने 7 फरवरी को अपना ऑपरेशन शुरू किया था. पिछले हफ्ते जब भारतीय दल वापस स्वदेश लौटा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सरकारी आवास 7, लोक कल्याण मार्ग पर उनका स्वागत किया.


रात भर विदेश मंत्रालय की टीम ने किया काम
तुर्किए और उसके पड़ोसी देश सीरिया में 6 फरवरी को 7.8 तीव्रता के भूकंप ने भीषण तबाही मचाई है. अब तक 44,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. हजारों इमारतें और घर तबाह हो गए हैं. भूकंप की विभीषिका को देखते हुए भारत ने तुरंद राहत और बचाव टीम भेजने का फैसला किया था. लेकिन यह देश के किसी हिस्से में मदद दल भेजने जैसा नहीं था. पासपोर्ट और वीजा की जरूरत थी. इसके लिए विदेश मंत्रालय आगे आया. एनडीआरएफ के आईजी एनएस बुंदेला ने बताया कि विदेश मंत्रालय के कांसुलर पासपोर्ट और वीजा विभाग ने रातों-रात पासपोर्ट तैयार किए. कुछ घंटे के अंदर सैकड़ों दस्तावेज पूरे किए गए। 


152 सदस्यों के दल के लिए कुछ समय के लिए विदेश यात्रा के लिए राजनयिक पासपोर्ट तैयार था. तुर्किए पहुंचने पर इसकी टीम को आगमन (अराइवल) वीजा दिया गया. इसके बाद टीम को नूरदगी और हटे में तैनात किया गया.


पांच महिला बचावकर्मी थी, जिसमें कांस्टेबल सुषमा यादव (32) भी थीं. वह पहली बार किसी आपदा अभियान में विदेश गई थीं. इस दौरान उन्हें अपने 18 महीने के जुड़वा बच्चों को पीछे छोड़ना पड़ा लेकिन कोई दूसरा विकल्प नहीं था. वे कहती हैं कि मैंने सोचा कि हम नहीं करेंगे, तो कौन करेगा? मैंने अपने जुड़वा बच्चों को ससुराल वालों के पास छोड़ दिया. ये पहली बार था, जब बच्चे इतने लंबे समय के लिए दूर हो रहे थे.


यह भी पढ़ें


तुर्किए से लौटी रेस्क्यू टीम की जब पीएम मोदी ने थपथपाई पीठ, कहा- आपने मानवता की महान सेवा की है