(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Disinvestment: 'मोदी सरकार बेच रही देश', विपक्ष का आरोप, जानिए 'डिसइन्वेस्टमेंट' से सरकार ने अब तक कितने कमाए
Disinvestment: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निजीकरण पर आयोजित वेबिनार में कहा था कि देश में व्यापार को सहारा देना सरकार का काम है, लेकिन उसे खुद व्यापार करने की जरूरत नहीं है.
Disinvestment In Modi Government: विपक्षी दल हमेशा आरोप लगाते रहे हैं कि मोदी सरकार देश बेच रही है. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार कई सावर्जनिक क्षेत्र की कंपनियो यानी पीएसयू में अपनी हिस्सेदारी बेच चुकी है. वहीं, आगे भी कई कंपनियों में सरकार ने अपनी हिस्सेदारी बेचने यानी विनिवेश का फैसला लिया है.
इसी को लेकर मोदी सरकार लगातार विपक्षी दलों के निशाने पर बनी रहती है. बीते कुछ वर्षों में एलआईसी, एयर इंडिया जैसी कई सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में मोदी सरकार ने विनिवेश की प्रक्रिया को मंजूरी दी है. आइए जानते हैं क्या है डिसइन्वेस्टमेंट और अब तक सरकार ने इससे कितने करोड़ रुपये कमाए हैं?
क्या होता है डिसइन्वेस्टमेंट?
जब केंद्र सरकार अपनी साझीदारी वाली किसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी में अपनी हिस्सेदारी का कम करती है या अपने शेयर बेच देती है. इस प्रक्रिया को विनिवेश यानी डिसइन्वेस्टमेंट कहा जाता है. आमतौर पर इस तरह का विनिवेश घाटे में चल रहीं कंपनियों में ही डिसइन्वेस्टमेंट किया जाता है. हालांकि, विनिवेश के लिए ये कोई तय नियम नहीं है. केंद्र सरकार चाहे, तो किसी भी कंपनी में अपनी हिस्सेदारी को बेच सकती है. डिसइन्वेस्टमेंट की शुरुआत भारत की आर्थिक आजादी का साल कहे जाने वाले 1991 में हुई थी.
पीएम नरसिम्हाराव के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पहली बार सरकारी निवेश कम करने, खुले मार्केट को बढ़ावा देने, निजी कंपनियों को बढ़ावा देने जैसे कई फैसले लिए थे. दरअसल, आजादी के बाद से ही केंद्र सरकार ने प्रमुख रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना की गई थी. आसान शब्दों में कहें, तो लोगों को रोजगार देने के साथ ही विदेशों पर भारत की निर्भरता को कम करने के लिए इन उपक्रमों में पहले की केंद्र सरकारों ने निवेश किया. जिसे अब मोदी सरकार धीरे-धीरे कम कर रही है.
बिजनेस करना सरकार का काम नहीं- पीएम नरेंद्र मोदी
2021-22 का बजट पेश होने के कुछ समय बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निजीकरण पर आयोजित वेबिनार में कहा था कि देश में व्यापार को सहारा देना सरकार का काम है, लेकिन उसे खुद व्यापार करने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा था कि बिजनेस करना सरकार का काम नहीं है और उनकी सरकार रणनीतिक क्षेत्र में कुछ सीमित संख्या में सरकारी उपक्रमों को छोड़कर बाकी क्षेत्रों के सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण को प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा था कि सरकारी कंपनियों को केवल इसलिए नहीं चलाया जाना चाहिए कि वे विरासत में मिली हैं. रुग्ण सार्वजनिक उपक्रमों को वित्तीय समर्थन देते रहने से अर्थव्यवस्था पर बोझ पड़ता है.
यूपीए सरकार में भी किया गया विनिवेश
द प्रिंट के एक रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार के कार्यकाल में विनिवेश यानी डिसइन्वेस्टमेंट में बहुत ज्यादा तेजी आई है. हालांकि, इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में विनिवेश की प्रक्रिया यूपीए सरकार के 10 सालों के कार्यकाल के दौरान भी जारी थी. आसान शब्दों में कहें, तो केंद्र सरकार समय-समय पर विनिवेश करती रही है. यूपी सरकार के दौरान 1.32 लाख करोड़ का डिसइन्वेस्टमेंट किया गया था, जो आज के आर्थिक आंकड़ों के हिसाब से 2.74 लाख करोड़ के आस-पास पहुंचता है.
मोदी सरकार ने विनिवेश से की इतने लाख करोड़ की कमाई?
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने विनिवेश और पब्लिक सेक्टर यूनिट में हिस्सेदारी बेचकर 4.04 लाख करोड़ से ज्यादा रुपये की कमाई की है. वर्तमान वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर केंद्र सरकार ने 28 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा कमाए हैं. जिसमें से सर्वाधिक एलआईसी के 3.5 फीसदी शेयर बेचकर कमाए गए हैं. सरकार को एलआईसी के शेयर बेचकर 20 हजार करोड़ से ज्यादा रुपये कमाए थे. इसी तरह मोदी सरकार ने एयर इंडिया, टाटा कम्युनिकेशन, एक्सिस बैंक, आईपीसीएल जैसी कई कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेची है. वहीं, मोदी सरकार ने एचएएल लाइकेयर लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम जैसी कई कंपनियों में विनिवेश के लिए बोलियां आमंत्रित की हैं.
ये भी पढ़ें: