What is the Process to Remove Vice President: उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को पद से हटाने के लिए विपक्षी दलों ने मंगलवार (10 दिसंबर 2024) को अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया. इस अविश्वास प्रस्ताव पर 70 सांसद साइन कर चुके हैं. बता दें कि राज्यसभा के सभापति पर विपक्षी दल लगातार पक्षपात का आरोप लगाते आ रहे हैं.
अब बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या विपक्ष के इस प्रस्ताव के बाद उपराष्ट्रपति को पद से हटाया जा सकेगा. यहां हम बता दें कि बेशक कांग्रेस और अन्य दल अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए हों, लेकिन उन्हें पद से हटाना इतना आसान नहीं होगा.
पहले जरूरी है बहुमत
दरअसल, उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं. उन्हें हटाने के लिए राज्यसभा में बहुमत से प्रस्ताव पारित कराना होगा. इस प्रस्ताव कोलोकसभा में भी पारित कराना होगा, लेकिन ये सब इतना आसान नहीं है. लोकसभा में NDA के 293 और I.N.D.I.A के 236 सदस्य हैं. बहुमत 272 पर है. इंडिया गठबंधन अपने साथ 14 दूसरे सदस्यों को भी लाए तब भी इस प्रस्ताव को पास करा पाना मुश्किल होगा.
उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए ये हैं नियम
उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के सभापति पद से तभी हटाया जा सकता है, जब उन्हें भारत के उपराष्ट्रपति के पद से हटाया जाए. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67 में उपराष्ट्रपति की नियुक्ति और उन्हें पद से हटाने से जुड़े नियम विस्तार से बताए गए हैं. इसके तहत उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित और लोकसभा की ओर से सहमत एक प्रस्ताव के माध्यम से उनके पद से हटाया जा सकता है. हालांकि प्रस्ताव पेश करने के बारे में 14 दिन पहले नोटिस भी देना होता है.
क्या कहता है अनुच्छेद 67(बी)?
संविधान के अनुच्छेद 67(बी) में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव, जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा की सहमति से दिया गया हो, के जरिये उसके पद से हटा सकते हैं, लेकिन ऐसा कोई भी प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाएगा, जब तक कि कम से कम 14 दिनों का नोटिस नहीं दिया गया हो. यही नहीं, इस नोटिस में ये भी बताना होगा कि ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है”.
जरूरी हैं ये नियम
- उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही पेश किया जा सकता है. इसे लोकसभा में पेश नहीं कर सकते हैं.
- 14 दिन पहले नोटिस देने के बाद ही प्रस्ताव पेश किया जा सकता है.
- प्रस्ताव को राज्य सभा में ‘प्रभावी बहुमत’ (रिक्त सीटों को छोड़कर राज्य सभा के तत्कालीन सदस्यों का बहुमत) के जरिये पारित किया जाना चाहिए, जबकि लोकसभा में इसके लिए ‘साधारण बहुमत’ से सहमति आवश्यक है.
- जब प्रस्ताव विचाराधीन हो तो सभापति सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते.
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