राज्यसभा में बुधवार से राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा शुरू हुई. शुरुआत में इस चर्चा के लिए 10 घंटे का वक्त किया गया था लेकिन विपक्षी सांसदों की मांग पर चर्चा का वक्त बढ़ाकर 14 घंटे का दिया गया. विपक्षी सांसदों ने मांग की थी कि वह कृषि कानून और किसान आंदोलन के मुद्दे पर संसद में चर्चा करना चाहते हैं. और अगर नियमों के साथ में राष्ट्रपति के अभिभाषण  पर चर्चा से पहले अगर कोई और चर्चा नहीं हो सकती तो राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान ही किसानों के मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार हैं.


लेकिन उसके लिए वक्त ज्यादा होना चाहिए. इसके बाद यह तय किया गया कि राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के लिए 10 घंटे की जगह साढे 14 घंटे का वक्त रखा जाएगा. अभिभाषण पर चर्चा के दौरान अलग-अलग दलों के विपक्षी सांसदों ने कृषि कानूनों का विरोध करने से लेकर किसान आंदोलन का समर्थन करने तक की बातें कहीं.


लोकसभा में जहां राष्ट्रपति के भाषण पर चर्चा की शुरुआत बंगाल से आने वाली सांसद लॉकेट चटर्जी ने की तो वहीं राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा की शुरुआत बीजेपी की तरफ से असाम से आने वाले सांसद भुवनेश्वर कलिता ने की.


भुवनेश्वर कलिता ने कहा कि तीनों कृषि कानूनों का फायदा सीधे तौर पर 8 करोड़ छोटे किसानों को मिलेगा. इससे उनकी आय भी बढ़ेगी और उनको मिलने वाली सुविधाएं भी बेहतर होंगी. उन्होंने कहा कि किसानों के साथ जो गतिरोध है उसको दूर करने के लिए नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल लगातार उनके साथ बातचीत कर रहे हैं. भुवनेश्वर कलिता ने कहा कि मैं विपक्षी सांसदों से अपील करता हूं कि वह इसको एक बार फिर से दूसरा शाहिनबाग ना बनाएं.


भुवनेश्वर कलिता के बाद बीजेपी के ही एक और सांसद विजय पाल सिंह तोमर ने भी चर्चा में हिस्सा लिया. इस दौरान तोमर  ने कहा कि अनाज जितना ऑस्ट्रेलिया में  उपजाया और  इस्तेमाल किया जाता है उतना अनाज हमारे देश में सड़ जाता है. इस वजह से इसका भंडारण और उपयोग में लाना भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की तरफ से लाए गए इन तीनों कृषि कानूनों के जरिए इस समस्या को दूर करने पर भी पर जोर दिया जा रहा है.


बीजेपी सांसद ने कहा कि हमारे देश की आबादी दुनिया की कुल आबादी की करीब 18%, भूमि करीबन 2.4% और पानी करीब 4.2% है.  इसी वजह से ज़रूरत ये है कि हम कृषि उपज को बढ़ाएं और तीनों कृषि कानूनों के चलते किसानों की आय भी बढ़ेगी और उनका स्तर भी सुधरेगा. क्योंकि ये कृषि कानून उनका व्यापार बढ़ाने में सहायक होगा. रही बात जल्दबाज़ी में कानून लाने की तो इन कृषि कानूनों को लेकर पिछले 15-20 साल से लगातार चर्चा चल रही है और इसी के चलते 10 से 12 कमेटी भी बनाई गई थी. इतनी सब चर्चा होने के बाद ही आखिरकार इन तीनों कृषि कानूनों को लाया गया है. लिहाजा यह कहना ग़लत है कि कृषि कानून लाने से पहले चर्चा नहीं हुई और तैयारी नहीं की गई.


वही नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने तीनों कृषि कानूनों को किसान विरोधी बताते हुए रद्द करने की मांग की. गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि ये जो गतिरोध बना हुआ है ये पहली बार नहीं हुआ सैंकड़ों सालों से ये लड़ाई जारी है. गुलाम नबी आजाद ने इस दौरान इससे पहले लाए गए उन कानूनों का ज़िक्र किया जो किसानों के जुड़े हुए थे. इसके जरिये आज़ाद ने यह बताने की कोशिश की कि अगर किसानों ने कानून नहीं चाहा है तो कई बार उन कानूनों को वापस लिया गया है. गुलाम नबी आजाद ने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा कि आखिर अन्नदाताओं से कैसी लड़ाई. हमको चीन और पाकिस्तान से लड़ाई लड़नी चाहिए पूरा देश और सारी पार्टियां साथ हैं, हम अब चाहते हैं कि किसानों का फायदा हो. कुछ लोग 26 जनवरी के बाद से गुम हैं उनको ढूंढा जाए.


आज़ाद ने 26 जनवरी की घटना का ज़िक्र करते हुए कहा की जो लाल किले पर हुआ वो बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. जो भी उस घटना में शामिल थे उनको कड़ी से कड़ी सजा मिले. लेकिन इनकी आड़ में बेगुनाह लोगों को न फंसाया जाए. उन्होंने कहा कि थरूर के खिलाफ देश द्रोह का केस दर्ज किया गया. ये वो नेता हैं जो कई अहम पदों पर रहे हैं. कई वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ मामले दर्ज़ हुए किसी को परेशान करने के लिए मामले नहीं दर्ज़ होने चाहिए.


इसके बाद समाजवादी पार्टी के सांसद प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने किसान अंदोलन का समर्थन करते हुए कहा कि देश भर में किसान आंदोलन कर रहे हैं. कई किसानों की जान जा चुकी है लेकिन सरकार निर्दयी हो गई है और उसके ऊपर कोई असर नहीं हो रहा. अगर डेढ़ साल तक कानून पर रोक लगाने को तैयार हैं तो रदद् क्यों नहीं करते और नया बिल ले आइये.


सपा सांसद ने कहा कि किसान आंदोलन की जगह पर सड़क पर कंक्रीट की दीवार बना दी गयी. हालत ये है कि संसद से ज़्यादा सुरक्षा वहां बढ़ा दी गयी. पाकिस्तान सीमा पर भी ऐसा नहीं है. क्या ये किसान हमला करने आ रहे थे. किसान अपने मन की बात सुनाने आया है क्योंकि उसकी बात टीवी और रेडियो पर नहीं सुनाई पड़ती। जिसके लिए कानून आया उसको ही नहीं चाहिए तो क्यों जबरन थोप रहे हैं.


विपक्षी सांसदों का जवाब देते हुए जेडीयू सांसद रामचंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि विपक्षी सांसद बिहार में मंडी न होने की बात को लेकर गुमराह कर रहे हैं. आईसीपी सिंह ने कहा की विपक्षी नेता कह रहे हैं कि मंडी न होने के चलते किसानों को नुकसान हो रहा है. जबकि मंडियों में कितना भ्रष्टाचार है ये बताने की ज़रूरत नहीं है, मंडियां भ्रष्टाचार का अड्डा थीं. 2006 में जबसे मंडियां खत्म हुईं उसके बाद से किसानों को कितना फायदा हुआ ये किसानों को बखूबी पता है. इतना ही नहीं उपज भी बढ़ी, और प्रोक्योरमेंट भी बेहतर हुआ. ये तब हुआ जब भ्रष्टाचार को खत्म किया गया. लिहाज़ा राजनैतिक दल के  लोग लोगों को गुमराह करना बंद करें.


उन्होंने आगे कहा कि इस कानून में तो किसानों और विकल्प दिए गए हैं पर रोक कहीं नहीं है. अभी तक किसान अनाधिकारिक तरीके से कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग कर ही रहे थे. लेकिन इन कृषि कानूनों के बाद अगर किसान की इच्छा होगी तो वह कॉन्ट्रैक्ट करेगा नहीं होगी तो नहीं करेगा, पर उस पर कोई दबाव नहीं होगा. आरसीपी सिंह ने विपक्षी सांसदों को जवाब देते हुए कहा कि इस तीनों कानूनों में कुछ भी किसान विरोधी नहीं है. राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर यह चर्चा अगले 2 दिन तक जारी रहेगी. चर्चा के आखिरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदन के सामने अपना बयान देंगे.