प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को विपक्ष की ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर अपना भाषण दिया. पीएम मोदी के भाषण के बीच में ही विपक्ष ने संसद से वॉकआउट किया. अविश्वास प्रस्ताव के पीछे का कारण मणिपुर बताया गया. मणिपुर में जारी जातीय हिंसा को संबोधित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इनकार कर दिया. इसके विरोध में विपक्षी दलों ने संसद से वॉकआउट कर दिया.


विपक्ष का कहना है कि मोदी सरकार के खिलाफ इसलिए अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था ताकि उन्हें तीन महीने लंबे संकट के बारे में बोलने के लिए मजबूर किया जा सके. 


पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें शांति की दिशा में काम कर रही हैं. मैं मणिपुर के लोगों को आश्वस्त करता हूं कि जल्द ही शांति बहाल होगी. उन्होंने कहा, 'देश आपके साथ है. हम एक साथ बैठेंगे और शांति बहाल करने और मणिपुर को विकास के रास्ते पर लाने के लिए मौजूदा चुनौती का समाधान निकालेंगे.


मोदी के भाषण के लगभग एक घंटे बाद विपक्षी सांसदों ने विरोध करना शुरू कर दिया कि पीएम मोदी ने अभी तक अपनी पार्टी द्वारा शासित उत्तर-पूर्वी राज्य में जातीय हिंसा का जिक्र नहीं किया है, और "मणिपुर, मणिपुर, मणिपुर" के नारे लगाने लगे.


पीएम मोदी ने इन नारों को नजरअंदाज कर दिया और इसके बजाय विपक्ष खासकर राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी पर अपना हमला जारी रखा.


उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि उसे भारत पर भरोसा नहीं है. वह देश का उपहास उड़ाने वालों पर विश्वास कर रहा है और अहंकार और अक्षमता का शिकार है.  "जितना ज्यादा वे मुझ पर हमला करते हैं, उतना ही मैं कामयाब होता हूं."  विपक्ष के वॉकआउट के बाद ही मोदी ने मणिपुर के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी की थी.


विपक्ष पर सुनने का 'धैर्य' नहीं रखने का आरोप लगाने के बाद उन्होंने कहा, "मैं मणिपुर की माताओं और बहनों से कहना चाहता हूं कि देश और संसद आपके साथ है.


अपने भाषण में पीएम मोदी ने कहा कि मणिपुर में हिंसा दुखद है. उन्होंने कहा, "महिलाओं के खिलाफ अपराध अस्वीकार्य हैं और केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए काम करेगी कि दोषियों को दंडित किया जाए.


अविश्वास प्रस्ताव पर बहस मंगलवार को शुरू हुई और इस दौरान तीखी नोकझोंक, हिंसक इशारे और उंगली उठाने का दौर शुरू हो गया. 


संसद में बहस के दौरान कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने सदन को बताया, "मैंने कई संसदों को देखा है लेकिन मैंने उनके जैसा आदमी कभी नहीं देखा, जो प्रधानमंत्री के रूप में एक भी सवाल का जवाब नहीं देता है. वह संसदीय लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते.


राहुल गांधी ने बुधवार को मोदी के मौजूद नहीं होने पर प्रधानमंत्री पर भारतीयों को बांटने का आरोप लगाया और उन्हें 'रावण' कहा, जो हिंदू महाकाव्य रामायण का मुख्य खलनायक है.


उन्होंने कहा, 'आपने मणिपुर को विभाजित किया है, आपने इसे तोड़ दिया है. आपने पूरे देश में मिट्टी का तेल छिड़का है. आपने मणिपुर पर मिट्टी का तेल छिड़का और फिर चिंगारी जलाई.  


गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब में अपने दो घंटे के भाषण के दौरान गुस्से में जवाब दिया. उन्होंने कहा, 'मणिपुर में हिंसा शर्मनाक है. लेकिन इससे भी ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि इस पर राजनीति की जा रही है.


शाह ने विस्तार से बताया कि संकट कैसे पैदा हुआ और स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए सरकार ने क्या उपाय किए. उन्होंने कहा कि हिंसा की घटनाओं में कमी आ रही है.


राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी ने कहा कि विपक्ष सरकार पर मौके पर हमला करने में नाकाम रहा है. उन्होंने एनडीटीवी समाचार चैनल से कहा, 'इसके बजाय यह प्रधानमंत्री के लिए अपनी उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए विपक्ष पर निशाना साधने और उस पर हमला करने का मौका बन गया.


हालांकि संसद में कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीन सवाल पूछे और जानना चाहा कि राज्य में जातीय हिंसा शुरू होने के बाद से तीन महीने से अधिक समय से वह मणिपुर का दौरा क्यों नहीं कर रहे हैं. 


लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने केंद्र पर निशाना साधा और कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री से तीन सवाल पूछने हैं. 


उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री ने मणिपुर का दौरा क्यों नहीं किया? राहुल गांधी गए, इंडिया गठबंधन के सांसद गए और यहां तक कि गृह मंत्री और गृह राज्य मंत्री (नित्यानंद राय) ने भी राज्य का दौरा किया.


देश का मुखिया होने के नाते पीएम मोदी वहां क्यों नहीं गए. लोकसभा में कांग्रेस के सांसद का दूसरा सवाल था कि मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर कुछ भी कहने में प्रधानमंत्री को करीब 80 दिन क्यों लग गए.


तीसरा सवाल मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से था. गोगोई ने पूछा कि पीएम मोदी ने अब तक मुख्यमंत्री को बर्खास्त क्यों नहीं किया. 


20 जुलाई से शुरू हुए संसद के मौजूदा सत्र में मणिपुर में हुई हिंसा के बारे में बात करने से मोदी के इनकार पर विपक्ष का गुस्सा छाया हुआ है. देश के पूर्व में स्थित एक छोटा सा राज्य मणिपुर मैतई और कुकी समुदायों के बीच हिंसक झड़पों से प्रभावित है.


मई में हिंसा भड़कने के बाद से अब तक 180 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, सैकड़ों लोग घायल हुए हैं और हजारों लोग शिविरों में रह रहे हैं.


पिछले महीने राज्य में दो महिलाओं पर हमले का वीडियो सामने आने के बाद मोदी ने घटना की निंदा की थी, लेकिन इस पूरे संघर्ष को संबोधित करने से उन्होंने दूरी बरती.


मामले पर बोलने और सवालों के जवाब पाने के लिए विपक्ष ने आविश्वास प्रस्ताव लाया था, लेकिन वो सदन से वॉकआउट कर गई और कई सवाल के जवाब पहले की तरह शून्य रह गए.


संसद में विपक्ष केन्द्र सरकार से कई बड़े सवालों के जवाब मांग सकती थी. जिसका जिक्र मणिपुर हिंसा के बाद से बार-बार होता आया है. 


सवाल 1- मणिपुर पर बोलने के लिए मोदी को 80 दिन क्यों लगे


मणिपुर में मुख्य रूप से मैतेई  और कुकी जनजातियों के बीच अशांति है. मणिपुर 1949 में भारत में शामिल हो गया. तब से इसने अलगाव आंदोलनों, जातीय प्रतिद्वंद्विता जारी है.  कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव संख्या बल के लिए नहीं, बल्कि मणिपुर को न्याय दिलाने के लिए दिया था.  उन्होंने कहा, 'अगर मणिपुर जल रहा है तो पूरा भारत जल रहा है, अगर मणिपुर का विभाजन होता है तो देश बंट जाता है. हमारी मांग थी कि देश के नेता के रूप में प्रधानमंत्री मोदी को सदन में आना चाहिए और मणिपुर के बारे में बोलना चाहिए. हालांकि, उन्होंने मौन व्रत रखा कि वह न तो लोकसभा में बोलेंगे और न ही राज्यसभा में.


गोगोई  ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि 'एक भारत' की बात करने वाली सरकार ने 'दो मणिपुर' पैदा किए हैं- एक पहाड़ी क्षेत्र में और दूसरा घाटी में. उन्होंने याद दिलाया कि 2002 के दंगों के बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात का दौरा किया था.


सवाल नंबर-2 :पीएम मोदी ने मणिपुर के सीएम को बर्खास्त क्यों नहीं किया 


मई से अब तक राज्य में हिंसा में 180 से ज्यादा लोगों की मौत के बाद भी बीरेन सिंह सीएम पद पर बने हुए हैं. 20 जुलाई को जब उन्होंने मणिपुर में दो महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार का वीडियो आया तो पीएम मोदी वो गुस्से में जरूर दिखाई दिए. उन्होंने इससे देश के शर्मसार होने की बात कही, लेकिन उनके बयान में बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के बारे में कुछ भी नहीं था .   


द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मणिपुर पुलिस ने ही महिलाओं को भीड़ को सौंप दिया था, लेकिन बीजेपी नेताओं के बयानों में कहीं पर भी बीरेन सिंह का जिक्र नहीं था. ऐसे में सवाल आता है कि कि आखिर क्यों पीएम मोदी सीएम बीरेन सिंह का बचाव इतनी दृढ़ता से कर रहे हैं.


सवाल नंबर-3: पीएम मोदी बीरेन सिंह को बर्खास्त क्यों नहीं करेंगे?


जानकारों का मानना है कि पीएम मोदी को कुछ भी करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. हालांकि विपक्ष इसकी मांग शुरू से कर रहा है. ओडिशा ट्रेन त्रासदी के बाद विपक्ष ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का इस्तीफा मांग की थी, लेकिन इस्तीफा न तो लिया गया न ही बात की गई.  जानकारों का कहना है कि मणिपुर में अगला विधानसभा चुनाव चार साल दूर है. चुनाव आने तक बीजेपी पूरा एजेंडा बदल देगी. 


बीरेन सिंह ने बीजेपी को 2022 में राज्य विधानसभा में पहली बार अपने दम पर बहुमत दिलाया. उन्हें बीजेपी के मुख्य वोटबैंक हिंदू मैतेई का समर्थन प्राप्त है, जो आबादी का 53 प्रतिशत है, इसलिए बीजेपी पूरे मामले पर चुप्पी बरतना ही बेहतर समझ रही है. 


बता दें कि आदिवासी भारत की आबादी का 8.9 प्रतिशत हिस्सा हैं और  राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में इनकी मजबूत उपस्थिति है. इसका असर आने वाले चुनावों में पड़ सकता है.


सवाल नंबर-4: हिंसा अब तक शांत क्यों नहीं हुई
संघर्ष शुरू होने पर केन्द्र सरकार द्वारा अन्य हिस्सों से सैनिकों को भेजने के साथ-साथ कर्फ्यू और इंटरनेट शटडाउन लागू करने के बावजूद छिटपुट हिंसा जारी है. भारतीय गृह मंत्री अमित शाह ने जून में मणिपुर की राजधानी का दौरा किया और अशांति के दौरान पुलिस स्टेशनों से लूटे गए हथियारों को वापस करने की मांग की.


उन्होंने हिंसा की 'निष्पक्ष जांच' का भी वादा किया है. संघर्ष शुरू होने के दो महीने से अधिक समय तक संघर्ष के बारे में नहीं बोलने के लिए विपक्ष ने मोदी की आलोचना की.


ह्यूमन राइट्स वॉच ने मोदी की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व में मणिपुर में राज्य के अधिकारियों पर "हिंदू बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देने वाली विभाजनकारी नीतियों" के साथ संघर्ष को सुविधाजनक बनाने का आरोप लगाया है.


देश की संसद में इस सप्ताह मोदी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर बहस हुई है. जिसमें उनकी सरकार संघर्ष पर लगाम लगाने में विफल रही है लेकिन विपक्ष भी सवालों के जवाब नहीं मांग पाया है.