नई दिल्ली: किसान आंदोलन के नाम पर किस तरह से अब राजनीतिक दलों को भी मौका मिल गया है इसकी तस्वीर शुक्रवार को गाजीपुर बॉर्डर से लेकर सिंघु बॉर्डर तक देखने को मिली. विपक्षी राजनीतिक दल के नेता किसान आंदोलन में पहुंचे और वहां पहुंचकर आंदोलन को अपना समर्थन दिया. शुक्रवार को जितने नेता 1 दिन में दिल्ली की सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन में शरीक होने के लिए पहुंचे उतने तो पिछले दो महीनों के दौरान कभी नहीं पहुंचे थे.
किसान आंदोलन का समर्थन करने की बात तो विपक्षी राजनीतिक दल पिछले काफी समय से कर रहे हैं लेकिन अभी तक उनको यह मौका नहीं मिल रहा था. लेकिन गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत के आंसुओं के बाद राजनीतिक दलों की मन मांगी मुराद पूरी हो गई. इसी के चलते गाजीपुर बॉर्डर से लेकर सिंघु बॉर्डर तक कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल तक के नेता किसान आंदोलन का समर्थन करने के लिए पहुंच गए.
आम आदमी पार्टी से लेकर कांग्रेस नेता तक...
आम आदमी पार्टी सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जहां राकेश टिकैत के पास गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे, तो दिल्ली सरकार में मंत्री सत्येंद्र जैन और दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा ने सिंघु बॉर्डर पहुंचकर यह जाहिर किया कि वह किसान आंदोलन के समर्थन में खड़े हैं. इन नेताओं ने इस दौरान बार बार सीएम अरविंद केजरीवाल का भी नाम लेकर यह बताने का प्रयास किया गया कि सीएम अरविंद केजरीवाल किस तरह से किसानों के हितैषी हैं और वह किसानों के साथ इस आंदोलन में लगातार खड़े हुए हैं.
कांग्रेस के भी कई नेता किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए गाजीपुर बॉर्डर पहुंच गए. फिर चाहें वो कांग्रेसी सांसद दीपेंद्र हुड्डा या प्रताप सिंह बाजवा हों या फिर उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी लल्लू सिंह या फिर कांग्रेस की नेता अलका लांबा. सभी एक-एक कर सुबह से लेकर शाम तक गाजीपुर बॉर्डर पहुंचते रहे और वहां पहुंचकर राकेश टिकैत का समर्थन करते हुए यह बताने की कोशिश की कि कांग्रेस किसान आंदोलन में किसानों के साथ खड़ी है.
हालांकि इसी दौरान जहां राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस कर किसान आंदोलन का समर्थन किया और मोदी सरकार से तीनों कृषि कानून रद्द करने की मांग की. तो प्रियंका गांधी ने राकेश टिकैत के आंसुओं को देखने के बाद उनको फोन कर किसान आंदोलन में कांग्रेस का हाथ किसानों के साथ होने का भरोसा भी दिलाया.
इसी तरह से आरएलडी यानी कि राष्ट्रीय लोक दल के नेता चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी भी राकेश टिकैत के पास शुक्रवार सुबह से ही पहुंच गए और राकेश टिकैत के बहते आंसुओं को पोछने का प्रयास भी किया. जयंत इसके बाद सिंघु बॉर्डर भी गए और मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत में भी शरीक हुए. यानी पूरा दिन जयंत चौधरी ने किसानों से जुड़े हुए कार्यक्रमों में शरीक होते रहे.
तीन अलग-अलग राजनीतिक दलों में एक समानता
वैसे तो यह तीन अलग अलग राजनीतिक दलों की बात हो रही है लेकिन इन तीनों में एक समानता भी है. ये समानता है कि यह तीनों ही विपक्षी दल उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन को भी तलाशने में जुटे हैं. इनमें से भी कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस एक तरह से किसान आंदोलन को आधार बनाते हुए उत्तर प्रदेश में सियासी जमीन तलाशने की कोशिश में भी जुटी हुई है क्योंकि कांग्रेस को बखूबी पता है कि फिलहाल उत्तर प्रदेश में उसकी सियासी जमीन खिसक चुकी है और अगर उसको वापस पाना है तो जमीनी स्तर पर समर्थन जुटाना होगा. कांग्रेस के नेता जिस तरह से किसान आंदोलन के समर्थन में खड़े हुए हैं और अब आंदोलन के मंच तक पहुंचने की कोशिश में जुटे हैं वह साफ इशारा कर रहा है कि कांग्रेस की रणनीति यही है कि किसान आंदोलन के सहारे उत्तर प्रदेश में अपनी खोई सियासी जमीन को भी मजबूत किया जाए.
इस सब के बीच यह साफ कर देना भी जरूरी है कि वैसे तो किसान आंदोलन पिछले 2 महीने से ज्यादा वक्त से चल रहा है लेकिन किसान नेताओं ने किसी भी राजनीतिक दल को मंच देने से मना कर दिया था. लेकिन जिस तरह से राकेश टिकैत के आंसू मीडिया के कैमरों के सामने आते ही गुरुवार से लेकर शुक्रवार तक कई बार छलक गए उसके बाद विपक्षी दलों को भी लगने लगा है कि यह एक ऐसा मौका है जिसका वह पिछले काफी वक्त से इंतजार कर रहे थे. ऐसे में अब जब यह मौका मिला है तो धीरे-धीरे ही सही इन विपक्षी दलों को किसान आंदोलन के सहारे अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने का एक सुनहरा विकल्प नजर आने लगा है.
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