(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
CEC पर SC के फैसले को विपक्ष ने बताई अपनी जीत, 2012 में आडवाणी पहले ही कर चुके हैं ऐसी मांग
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सीईसी और ईसी की पुरानी नियुक्ति प्रक्रिया को रद्द करते हुए नई नियुक्ति प्रक्रिया बनाने को कहा. उन्होंने आदेश जारी कर नई नियुक्ति प्रक्रिया बनाने को कहा है.
Supreme Court On ECI: बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (2 मार्च) को ऐतिहासिक फैसला दिया था. अपने फैसले में उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (EC) की मौजूदा प्रणाली को रद्द करते हुए नई प्रणाली की घोषणा की थी. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को विपक्ष ने अपनी जीत बताया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, चुनाव आयोग की नियुक्ति अब नये तरीके से होगी. उनके मुताबिक अब चुनाव आयोग के चीफ को तीन सदस्यीय समिति ही तैनात करेगी. इस समिति में देश के प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और शीर्ष अदालत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे.
'लालकृष्ण आडवाणी ने की थी मांग'
वीरप्पा मोइली आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 2012 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए एक पैनल बनाने की मांग की थी.
आडवाणी ने अपने पत्र में कहा था, जिस प्रणाली में राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग के शीर्ष सदस्यों को नियुक्त किया, वह लोगों के बीच विश्वास नहीं जगा पाया. आडवाणी उस समय बीजेपी संसदीय दल के अध्यक्ष थे, ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन करने के लिए प्रधान मंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश, कानून मंत्री और दोनों सदनों में विपक्ष के नेताओं को शामिल करते हुए एक पैनल को बनाने की मांग की थी.
नई व्यवस्था को लेकर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की यह प्रक्रिया तब तक लागू रहेगी जब तक संसद इस संबंध में कानून नहीं बना देती है. DMK सुप्रीमो और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की और कहा कि भारत के चुनाव आयोग की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सही समय पर उनका हस्त हस्तक्षेप जरूरी है.
क्या बोले कानूनी विशेषज्ञ?
सीईसी और ईसी की नियुक्ति की प्रक्रिया के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले पर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. पूर्व केंद्रीय कानून सचिव पी. के. मल्होत्रा का मानना है कि फैसले से ऐसा लग रहा है कि शीर्ष अदालत कानून बना रही है, जो उसका नहीं बल्कि संसद का अधिकार क्षेत्र है.
उन्होंने कहा, आप मूल रूप से एक ऐसे क्षेत्र में कानून बना रहे हैं जहां आपके पास कोई अधिकार नहीं है. आप कानून की व्याख्या कर सकते हैं, आप संविधान की व्याख्या कर सकते हैं... यहां तक तो ठीक है लेकिन आपको कानून बनाने का अधिकार किसने और कब दे दिया. उन्होंने सवाल पूछा, अगर पीठ ने अधिक पारदर्शिता के लिए कहा है तो फिर जजों की नियुक्ति के लिए पारदर्शिता क्यों नहीं लागू की जा रही है?