नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष बड़ी प्लानिंग कर रहा है. चंद्रबाबू नायडू ने जिस दिन से कांग्रेस से हाथ मिलाया है उसी दिन से वो मोदी के खिलाफ मोर्चा बनाने में जुटे हैं. खास बात ये है कि नायडू ये मोर्चा कांग्रेस के नेतृत्व में बनाने की तैयारी कर रहे हैं और बड़ी बात ये कि विपक्ष के इस मोर्चे से बीजेपी का नया याराना देश में देखने को मिल सकता है.


एक नवंबर से लेकर आज नौ नवंबर की तारीख तक आधा दर्जन से ज्यादा विपक्षी नेताओं के साथ चंद्रबाबू नायडू दिख चुके हैं. आज चेन्नई में डीएमके प्रमुख स्टालिन के साथ उनकी मुलाकात हुई तो कल वो बेंग्लूरु में जेडीएस के कुमारस्वामी और देवेगौड़ा से मिले थे. नौ दिनों से नायडू देश में मोदी के खिलाफ आमने सामने की सीधी लड़ाई का माहौल बना रहे हैं. और इसीलिए क्षेत्रीय क्षत्रपों से उनकी मुलाकात हो रही है.


नायडू की इन मुलाकातों से बीजेपी की चिंता बढ़ सकती है क्योंकि
नायडू एनडीए में रह चुके हैं इसलिए यहां की रणनीति से वाकिफ हैं और इसी का फायदा उठाते हुए विपक्ष को गोलबंद करने में जुटे हैं. हर राज्य में एक तीसरी ताकत है जिसे नायडू कांग्रेस के साथ लाने की कोशिश में हैं. चंद्रबाबू नायडू की ये कोशिश कामयाब हो गई तो 2019 के चुनाव में बीजेपी को कम से कम दक्षिण के राज्यों में तो कड़ी चुनौती मिलेगी और नए साथी के साथ उसे मैदान में जाना पड़ सकता है.


बीजेपी के ये नए साथी हो सकते हैं-
नायडू की गोलबंदी के आगे बीजेपी भी नए साथी तलाश रही है और इन नए साथियों में तेलंगाना में केसीआर की टीआरएस, आंध्र प्रदेश में जगन मोहन की वाईएसआर कांग्रेस और तमिलनाडु में एआईएडीएमके हो सकते हैं.


दक्षिण में इन जैसी पार्टियां बीजेपी की नई दोस्त बन सकती हैं. वैसे भी तेलंगाना में केसीआर की हालत कांग्रेस-नायडू की दोस्ती के बाद कमजोर हो चुकी है. आंध्र में भी नायडू कांग्रेस की दोस्ती जगनमोहन के लिए मुसीबत बन सकती है. बीजेपी हो या विपक्ष, गठबंधन की जरूरत दोनों तरफ की है. लिहाजा नायडू के चक्रव्यूह से निपटने के लिए दक्षिण में बीजेपी नए साथियों के साथ चुनाव मैदान में जाने की तैयारी कर सकती है .


उत्तर भारत की परिस्थिति देखें तो
यूपी में महागठबंधन का बन पाना आसान नहीं दिख रहा है क्योंकि एसपी-बीएसपी में सीटों को लेकर सहमति नहीं दिख रही है. वहीं पश्चिम बंगाल में ममता और लेफ्ट को साथ लाना आसान नहीं होगा तो महागठबंधन की सूरत फिलहाल तो कामयाब होती नहीं दिख रही है.


कुल मिलाकर देखें तो 2019 के चुनाव से पहले देश के नक्शे पर सियासी तस्वीर काफी कुछ बदलती हुई दिखेगी. अभी तमाम नेता विधानसभा चुनाव में व्य़स्त हैं और इस चुनाव के खत्म होने के बाद 2019 के लिए रणनीति बनने लगेगी.