नई दिल्ली: सरकारी उपक्रम ओएफबी ने थलसेना के उन आरोपों को एक सिरे से खारिज कर दिए हैं जिसमें कहा गया था कि ओएफबी के खराब गोला-बारूद के चलते 27 सैनिकों की जान चली गई है और 960 करोड़ रूपये का नुकसान हो गया है.
ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) ने साफ तौर से कहा है कि सिर्फ 19 प्रतिशत घटनाएं ही ओएफबी की वजह से हुई हैं बाकी तोप और दूसरी गन्स की खराब रख-रखाव, गलत फायरिंग-ड्रिल और गन्स में अपने मनमाने ढंग से फेरबदल के चलते हुई है.
ओएफबी के मुताबिक, जिन 27 सैनिकों की पिछले छह सालों (2014-2020) में खराब गोला-बारूद के चलते हुई है, उनमें से 19 सैनिकों की मौत तो एक ही घटना में हुई थी (वर्ष 2016 में महाराष्ट्र के पुलगांव में गोला-बारूद में लगी आग के कारण). ओएफबी ने बुधवार को एक बयान जारी कर सिलसिलेवार तरीके से थलसेना की उस रिपोर्ट को खारिज किया जिसमें ओएफबी के खराब म्युनिशेन को जिम्मेदार ठहराया गया था.
ओएफबी ने अपने बयान में कहा कि सैनिकों की मौत के लिए ओएफबी सिर्फ दो प्रतिशत जिम्मेदार है. यहां तक की जिन 403 घटनाओं का थलसेना ने अपनी आंतरिक रिपोर्ट में जिक्र किया है उसमें से 125 नॉन-ओएफबी के खराब गोला-बारूद के चलते हुई है (जिसके बारे में थलेसना ने कुछ नहीं कहा है).
ओएफबी ने साफ तौर से कहा कि जितनी भी घटनाएं अभी तक सामने आई हैं उनसे से अधिकतर ‘विंटेज-एम्युनिशेन’ यानि पुराने गोला-बारूद के चलती हुई हैं जो वर्ष 2006 से पुराना है.
ओएफबी ने कहा कि जिन टी-72 और टी-90 टैंक के दुर्घटनाओं के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है उनके गोला-बारूद बनाने की जिम्मेदारी ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड को वर्ष 2016-17 में मिली है और वो भी रूस से जो तकनीक मिली है उसके अनुरूप की गई है. ओएफबी ने कहा कि 23 एमएम गन्स की दुर्घटनाएं विदेशी गोला-बारूद के चलते हुई है.
ओएफबी ने कहा कि करगिल युद्ध के दौरान थलसेना ने विदेश से 522.44 करोड़ का जो खराब गोला-बारूद खरीदा था उससे 55 तोपें खरीदी जा सकती थी. ओएफबी का ये जवाब सेना के उस तर्क पर आया है जिसमें कहा गया था कि पिछले छह साल में थलसेना ने 960 करोड़ का खराब गोला-बारूद ओएफबी से खरीदा है. इतनी रकम में 100 मीडियम गन्स यानि (छोटी) तोप खरीदी जा सकती थी.