Organ Donation: 'मौत के बाद सभी के लिए अंगदान हो अनिवार्य', नाबालिग की SC में याचिका के बाद डॉक्टर्स ने उठाई मांग
Doctors' Demand: सरकार को ऐसी याचिकाएं को बढ़ावा देने के बजाय मृतक अंगदान को अनिवार्य बनाने के लिए कानून लाना चाहिए.
Organ Donation After Death: देश के कई डॉक्टरों ने मृत्यु के बाद अंगदान को अनिवार्य करने की मांग की है. दरअसल देश में यह बहस तब छिड़ी जब एक नाबालिग ने अपने पिता की जान बचाने के लिए अपना अंगदान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. इस पर देश के कई जाने माने डॉक्टरों ने कहा कि ऐसे मामलों में छूट देने से अच्छा है कि मरने के बाद लोगों के अंग दान को अनिवार्य कर देना चाहिए. इस बहस केंद्र बिंदु में वह 17 साल एक लड़का है, जिसने शुक्रवार को तत्काल सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर लिवर खराब होने की समस्या का सामना कर रहे अपने 43 वर्षीय पिता को अपना लिवर दान करने की अनुमति मांगी है.
डॉक्टरों ने क्या दिए सुझाव
इस याचिका के दायर होने के बाद डॉक्टरों ने अपनी चिंता व्यक्त करने के साथ सलाह भी दिया है.क्योंकि नाबालिग के अंग दान पर मंजूरी देना खतरे की घंटी हो सकती है. डॉक्टरों ने सलाह दी है कि नाबालिगों में जीवित अंग दान की अनुमति देने से देश की बड़ी आबादी इससे प्रभावित हो सकती है. इसके बजाय अनिवार्य रूप से मृत अंग दान पर जोर दिया जाना चाहिए.
मणिपाल अस्पताल के डॉ (कर्नल) अवनीश सेठ ने क्या कहा ?
द्वारका में एचसीएमसीटी मणिपाल अस्पताल के डॉ (कर्नल) अवनीश सेठ ने कहा कि 18 साल के उम्र के बच्चों में इमोशन से साथ जिम्मेदारी भी आ जाती है. इसलिए उनको भी एडल्ट मानकर ट्रीट करना चाहिए.
सेठ ने कहा, "मानव अंगों और ऊतकों के प्रत्यारोपण नियम, 2014 में कहा गया है कि "नाबालिगों द्वारा जीवित अंग या ऊतक दान की अनुमति नहीं दी जाएगी, कुछ विशेष स्थिति में उचित प्राधिकारी और संबंधित राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन के साथ औचित्य के साथ विस्तार से दर्ज किया जाना चाहिए."सेठ ने कहा कि "नाबालिगों में जीवित दान की अनुमति देने के लिए लक्ष्य को बदलना, एक बड़ी आबादी में हेरफेर और जबरदस्ती की संभावना है, शायद यह एक ढलान है." जिससे बचा जा सकता है.
ऐसी याचिका नैतिक मुद्दों को जन्म देगी
वसंत कुंज के फोर्टिस हॉस्पिटल के डॉ विकास जैन ने कहा कि ऐसे मामलों में अनुकूल निर्णय लेने के बाद, भविष्य में ऐसी याचिकाएं और आएंगी जो नैतिक मुद्दों को जन्म देगी.जैन ने कहा कि ऐसे मामलों में “न्यायपालिका को एक लाइन खींचने में मुख्य रूप से भूमिका निभानी होगी. कहाँ और कब रुकना है. मुझे लगता है कि सरकार को इन सब को बढ़ावा देने के बजाय मृतक अंगदान को अनिवार्य बनाने के लिए कानून बनाना चाहिए.
हर एक केस के आधार पर मिलनी चाहिए मंजूरी
प्रो डॉ संजीव गुलाटी( प्रधान निदेशक, नेफ्रोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट) ने कहा कि नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट संस्था को हर एक केस के आधार पर ऐसे अंगदान पर मंजूरी देनी चाहिए, न कि परिवार को बीमारी होने के बाद भी कानून से मदद मांगने के लिए मजबूर करना चाहिए. उन्होंने कहा कि "मुझे लगता है कि इस मामले में नाबालिग को अपने एक अभिभावक की सहमति के साथ दान करने की अनुमति दी जानी चाहिए (जैसा कि अगर लड़के को किसी अन्य चिकित्सा प्रक्रिया के अधीन किया गया होता) क्योंकि उसके पिता का जीवित रहना एक सफल लिवर ट्रांसप्लांट पर ही निर्भर है. ,"
पहले भी आए हैं ऐसे कई मामले
मई में एक और अन्य मामले में, महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित एक समिति ने अपने बीमार पिता को अपने जिगर का एक हिस्सा दान करने के लिए एक 16 वर्षीय लड़की की याचिका को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि यह सुनिश्चित नहीं है कि लड़की अपने मन से सारे मेडिकल प्रोसेस को मानेगी.इसके बाद वह लड़की अपनी मां के साथ हाई कोर्ट में गई. जहां उसने अपने अंगदान करने वाली बात को दोहराया था.
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