पूर्वी लद्दाख से सटी LAC पर वॉर-टूरिज्म़ बढ़ाने के इरादे से सेना ‘आर्मेक्स’ कार्यक्रम का करेगी आयोजन
एलएसी के विवादित इलाकों में वॉर-टूरिज्म बढ़ाने के इरादे से भारतीय सेना एक खास ‘आर्मेक्स’ कार्यक्रम का आयोजन करने जा रही है.
पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी के विवादित इलाकों में वॉर-टूरिज्म़ बढ़ाने के इरादे से भारतीय सेना एक खास ‘आर्मेक्स’ कार्यक्रम का आयोजन करने जा रही है. पूर्वी लद्दाख के कार्यक्रम दर्रे से लेकर उत्तराखंड के विवादित लिपूलेख दर्रे तक इस कार्यक्रम में स्कीइंग और पर्वतारोहण जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा.
बुधवार को राजधानी दिल्ली से इस कार्यक्रम की ई-फ्लैगिंग की जाएगी. सेना मुख्यालय के सूत्रों के मुताबिक, ‘आर्मेक्स-21’ नाम के कार्यक्रम का उद्देश्य दूर-दराज के सीमावर्ती इलाकों में पर्यटकों का आकर्षित करना है. क्योंकि दूर-दराज के इन वीरान और कम रिहायशी इलाकों में भारतीय पर्यटकों के आने से भारत अपने पड़ोसी देशों के उन दावों को खारिज करना चाहता है जिसके चलते वे इन सुनसान इलाकों पर दावा करते रहे हैं.
सूत्रों के मुताबिक, कई सदियों से ये इलाके भारत का हिस्सा रहे हैं. हालांकि, अब इन इलाकों में सेना की मौजूदगी है फिर भी यहां ‘सिविलियन-पोपुलेशन’ ना आने से दूसरे देश (जैसे चीन) इन इलाकों पर अपना दावा करते रहते हैं. यही वजह है कि पर्यटकों के ज्यादा से ज्यादा ‘फुटफॉल’ यहां होने से चीन और दूसरे पड़ोसी (और प्रतिद्धंदी देशों) के दावों को काउंटर करने में मदद मिलेगी.
जानकारी के मुताबिक, पूर्वी लद्दाख के काराकोरम दर्रे पर होने वाली स्कीइंग-प्रतियोगिता में सेना के ही सैनिक शामिल होंगे. लेकिन हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में होने वाले कार्यक्रमों में आम-नागरिक भी हिस्सा ले सकेंगे. स्कीइंग के अलावा पर्वतारोहण को भी इस विशेष आर्मेक्स आयोजन का हिस्सा बनाया गया है.
आपको बता दें कि करीब दो साल पहले यानि वर्ष 2019 में तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत (अब सीडीएस) ने सियाचिन और अरूणाचल प्रदेश के कुछ खूबसूरत इलाकों को पर्यटकों के खुलने की योजना तैयार की थी. लेकिन पहले कोविड और फिर चीन से टकराव के चलते ये योजना अधर में अटक गई थी. लेकिन चीन से ताजा विवाद के बाद इस योजना को एक बार फिर पटरी पर लाने की कोशिश है. अरूणाचल प्रदेश के किबिथू और तूतिंग को पर्यटकों के लिए खोलने का प्लान है.
सूत्रों के मुताबिक, इन दूर-दराज के इलाकों को वॉक-टूरिज्म के लिए खोलने का एक मकसद ये भी है कि चीन ने भी एलएसी यानि लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल के बेहद करीब वाले इलाकों में अपने नए गांव तक बसा दिए हैं. इन गांव में चीन के पूर्व-सैनिकों के लिए बसाए गए हैं और युद्ध के समय में इन्हें सैनिकों के बैरक में भी तब्दील किया जा सकता है. लेकिन एलएसी की दूसरी तरफ यानि भारतीय-अधिकार वाले क्षेत्र अभी भी पूरी तरह मिलिट्री-एरिया हैं जहां आम-लोगों का आना-जाना पूरी तरह मना है.
ऐसे में चीन इन इलाकों को विवादित बताकर अपना दावा करता रहा है. चीन की इन हरकतों को देखते हुए ही हाल में ही सेना ने पूर्वी लद्दाख की विश्व-प्रसिद्ध पैंगोंग-त्सो झील को पर्यटकों के लिए खोल दिया था. इससे पहले तक चीन से चल रहे विवाद के चलते पर्यटकों और मीडिया तक को करीब नौ महीने तक लेह शहर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी. पैंगोंग-त्सो झील को पर्यटकों के लिए खोले जाने के बाद एबीपी न्यूज की टीम भी सबसे पहले वहां पहुंची थी.
आपको बता दें कि पिछले नौ महीने से भारत और चीन का पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर विवाद चल रहा है. हालांकि, पैंगोंग-त्सो झील के उत्तर (फिंगर एरिया) और दक्षिण (कैलाश हिल रेंज) को लेकर दोनों देशों की सेनाओं में डिसइंगेजमेंट समझौता हो चुका है, लेकिन काराकोरम दर्रे से सटे डेपसांग प्लेन, गोगरा, हॉट-स्प्रिंग और डेमचोक में अभी भी टकराव जारी है.
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