पेंशन फॉर्मूले पर विवाद के बीच रक्षा मंत्रालय ने कहा- OROP के तहत पूर्व फौजियों को 42 हजार करोड़ की पेंशन दी गई
आज रक्षा मंत्रालय ने कहा कि OROP योजना के तहत 20.6 लाख सेवानिवृत्त रक्षा कर्मियों को 42,700 करोड़ रुपये से अधिक की राशि दी जा चुकी है.
नई दिल्ली: पूर्व सैनिकों के नए पेंशन फॉर्मूले पर उठे विवाद के बीच रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि पिछले पांच साल में वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) के तहत अब तक 20 लाख पूर्व फौजियों को करीब 42 हजार करोड़ की पेंशन दी जा चुकी है. ध्यान रहे कि ठीक पांच साल पहले यानि 7 नबम्बर 2016 को ओआरओपी को लागू करने का निर्णय लिया गया था.
दरअसल, कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने मोदी सरकार पर ‘फर्जी राष्ट्रवाद’ पर अमल करने का आरोप लगाया है. कांग्रेस ने दावा किया कि सैन्य अधिकारियों की पेंशन में ‘कटौती कर’ सशस्त्र बलों का मनोबल गिराने का प्रयास किया जा रहा है.
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ‘‘शहीद सैनिकों की वीरता और राष्ट्रवाद के नाम पर वोट बटोरने वाली मोदी सरकार सैन्य अफसरों की पेंशन काटने और ‘सक्रिय सेवा’ के बाद उनके दूसरे करियर विकल्प पर डाका डालने की तैयारी में है. इस बारे में सरकार की तरफ से बाकायदा 29 अक्टूबर, 2020 के पत्र से प्रस्ताव मांगा गया है.’’
दरअस, सेना का पेंशन-बजट कम करने और सुपर-स्पैशेलिस्ट सैनिकों द्वारा बीच में ही अपनी सेवाएं खत्म कर प्राइवेट सेक्टर में अपना करियर बनाने से परेशान सेना ने इससे निबटने का फॉर्मूला तैयार किया है. सीडीएस के नेतृत्व वाले डीएमए विभाग ने कर्नल और उससे ऊपर रैंक के अधिकारियों की रिटायरमेंट उम्र को बढ़ाने का फैसला लिया है. लेकिन अब बीच में ही नौकरी छोड़ने वाले सैनिकों को पूरी पेंशन नहीं मिलेगी. 35 साल नौकरी करने के बाद ही किसी सैनिक को पूरी पेंशन मिलेगी.
डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री एफेयर्स (डीएमए) ने एक प्रपोज़ल-नोट तैयार किया है जिसके तहत अब उन सैनिकों और सैन्य अफसरों को ही पूरी पेंशन मिलेगी जो 35 साल तक सेना में अपनी सेवाएं पूरी करेंगे. एबीपी न्यूज के पास इस नोट की कॉपी है. नोट के मुताबिक, वे सैनिक जो 21-25 साल तक की नौकरी करते हैं उन्हें 50 प्रतिशन पेंशन ही मिलेगी. जबकि 26-30 साल तक सेवाएं देने वालों को 60 प्रतिशत और 31-35 साल वालों को 75 प्रतिशत पेंशन मिलेगी.
सेना मुख्यालय के एक वरिष्ट अधिकारी के मुताबिक इस प्रस्ताव का मकसद मुख्यत: पेंशन-बजट को कम करना है. इसके अलावा उन सैनिकों (और अफसरों) को प्रोत्साहन देना है जो कम सेना में कम रिक्तियों के चलते प्रमोशन नहीं पाते हैं. इसके अलावा, उन स्पेशलिस्ट और सुपर-स्पेशिलिस्ट सैनिकों को लंबे समय तक अपनी सेवाएं देना है जो सेना से ट्रेनिंग मिलने के बावजूद जल्द नौकरी छोड़ देते है. ऐसा देखने में आया है कि स्पेशिलस्ट-सैनिक जल्द ही सेना में सेवाएं खत्म कर प्राईवेट और कॉरपोरेट सेक्टर में अपनी सेवाएं देना शुरू कर देते हैं. इससे सेना को बड़ा नुकसान होता है.
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