लखनऊ: साल 2011 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित अयोध्या विवाद में आज नया मोड़ आया. सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी कि मामले से जुड़े पक्ष आपसी सहमति से मसले का हल निकालने की कोशिश करें. इससे आगे बढ़ते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर सभी पक्ष इसके लिए तैयार हों तो किसी जज को मध्यस्थता के लिए नियुक्त किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने किसी बातचीत से इनकार किया है. उनका कहना है कि आपसी बातचीत से सुलह नहीं हो सकती.
हालांकि, जफरयाब जिलानी का कहना है उन्हें सुप्रीम कोर्ट के जज या चीफ जस्टिस पर भरोसा है. यानि जफरयाब जिलानी सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्था के साथ बातचीत पर राजी हैं. लेकिन उनका कहना है कि ऐसा कुछ करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को ऑर्डर पास करना होगा.
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बातचीत से सुलह क्यों नहीं मुमकिन?
जफरयाब जिलानी का कहना है कि इससे पहले भी इस मसले के हल के लिए बातचीत हो चुकी है. बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक ने कहा कि उनके 31 साल का उनका तजुर्बा बता रहा है कि आपसी बातचीत से विवाद का हल नहीं निकलेगा.
उन्होंने कहा कि सबसे पहले 1986 में कांचि कामकोटि के तत्कालीन शंकराचार्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष अली मियां नदवी के नेतृत्व में इसे लेकर बातचीत हुई और बेनतीजा रही.
जफरयाब जिलानी ने कहा कि इसी तरह 1990 में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, यूपी के सीएम मुलायम सिंह यादव और भैरोव सिंह शेखावत के सहयोग से बातचीत हुई और नाकाम साबित हुई.
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उन्होंने बताया कि पीवी नरसिंह राव ने कमेटी गठित की. सुबोध कांत सहाय के जरिए बातचीत की कोशिश की, लेकिन 1992 में मस्जिद तोड़ दी गई.
जफरयाब जिलानी का कहना है कि इसके बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मौजूदा अध्यक्ष मौलाना राबे हसनी नदवी और कांचि कामकोटि के तत्कालीन शंकराचार्य में बातचीत हुई. मौलाना राबे हसनी ने उनसे लिखित प्रस्ताव मांगा जिसमें कांचि कामकोटि के तत्कालीन शंकराचार्य ने कहा कि आप तीन मस्जिदों को सरेंडर कर दें, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.