ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन का लंबे समय से दुनिया को इंतजार है. इस वैक्सीन के बारे में यह कहा जा रहा है कि यह विकसित देशों में अमेरिकी वैक्सीन फाइजर और मॉडर्ना की तुलना में रख-रखाव में ना सिर्फ ज्यादा आसान होगा क्योंकि उतने कम तापमान पर इसे रखने की आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि इसकी कीमत भी उसके मुकाबले गई गुणा कम होगी. ऑक्सफोर्ड ने वैक्सीन के तीसरे चरण के नतीजे भी बताए, जिसमें इसे 90 फीसदी तक कारगर बताया गया. लेकिन, अब यह वैक्सीन सवालों के घेरे में आ गया है. इस पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.


एस्ट्रेजेनिका ने कहा- दोबारा होगा ग्लोबल ट्रायल


एक्सपर्ट इस वैक्सीन पर सवाल उठा रहे हैं क्योंकि ट्रायल के दौरान इसके दो नतीजे आए. बड़े पैमाने पर ट्रायल के बाद एक नतीजा में इसे 70 फीसदी का प्रभावी जबकि दूसरे में इसे 90 फीसदी कारगर बताया गया. इसके बाद एस्ट्रेजेनिका की तरफ से गुरुवार को यह कहा गया है कि वे दोबारा ग्लोबल ट्रायल करेंगे.


गुरुवार को एस्ट्रेजेनिका ने कहा कि वह कम खुराक का इस्तेमाल कर दोबारा वैक्सीन का ग्लोबल ट्रायल करेंगे. ब्रिटेन और यूरोप में वैक्सीन के रेगुलेटरी अप्रुवल में की समय-सीमा इससे प्रभावित नहीं होनी चाहिए.


क्या है पूरा मामला?


दरअसल, सोमवार को ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ताओं की तरफ से प्रेस ब्रीफिंग में कोरोना वैक्सीन के ग्लोबल ट्रायल के नतीजे पहले 70 फीसदी बताए गए. लेकिन, यह बताया गया कि गलती से यूके में 3 हजार लोगों में पहले वैक्सीन की आधी खुराक दी गई और उसके बाद उसकी पूरी खुराक दी गई तो इसके नतीजे 90 फीसदी थे.


एस्ट्राजेनेका के बायोफार्मास्यूटिकल्स आरएंडडी के प्रमुख, सर मेने पंगलोस ने इसकी पुष्टि की कहा कि कम खुराक वाले परीक्षण में 55 वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी शामिल नहीं था।  इससे यह चिंता पैदा हुई कि कम उम्र एक कारक हो सकता है - विशेष रूप से प्रासंगिक यह देखते हुए कि कमजोर बुजुर्गों को कोविड-19 से सबसे अधिक खतरा है। शोधकर्ताओं के पास 90 फीसदी आए नतीजों का कोई जवाब नहीं था, जिसमें पहले आधी खुराक और फिर पूरी खुराक दी गई थी.


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