Bone Marrow Transplant: इंफेनटाइल ऑस्टियोपेट्रोसिस से जूझ रही 11 महीने की एक पाकिस्तानी लड़की समाविया का कर्नाटक के बेंगलुरु स्थित एक प्राइवेट अस्पताल में सफलतापूर्वक मैरो ट्रांसप्लांट किया गया. समाविया जब पांच महीने की थी तब उसे इलाज के लिए नारायण हेल्थ सिटी में लाया गया था. अस्पताल में जांच के दौरान पता चला वह दुर्लभ जोनेटिक डिसओर्डर इंफेनटाइल ऑस्टियोपेट्रोसिस से ग्रहस्त है, जो एक जानलेवा बीमारी है.


नारायण हेल्थ सिटी के अनुसार, दुर्लभ जेनेटिर डिसऑर्डर को मार्बल हड्डी रोग भी कहा जाता है. इस कारण मरीज को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इससे हड्डियों अकड़ जाती हैं और सुनने और देखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है. इसके अलावा इससे बोन मैरो फेलियर भी हो सकता, जिससे कुछ ही साल में मरीज की मौत भी हो सकती है.


बच्ची का क्रेनीअल डीकम्प्रेशन  
इंफेनटाइल ऑस्टियोपेट्रोसिस का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए किया जा सकता है, लेकिन इसमें रेजेक्शन के साथ कई जटिलताएं हैं. अस्पताल ने कहा, सामविया का मार्च में मूल्यांकन किया गया था. उस समय वह सिर्फ पांच महीने की थी. उसकी आंखों की रोशनी कम हो सकती थी. उसकी आंखों की रोशनी बचाने के लिए तत्काल उसका क्रेनीअल डीकम्प्रेशन प्रोसिजर करना पड़ा.


इसके बाद सावधानीपूर्वक उसकी प्री-ट्रांसप्लांट की तैयारी की गई और 16 मई को उसके पिता की स्टेम सेल का इस्तेमाल करके डोनर का हाफ-मैच ट्रांसप्लांट लिया गया.


अत्याधुनिक मैथड से किया ट्रांसप्लांट 
अस्पताल ने बताया, समाविया के मामले को जो बात अलग करती है वह है ट्रांसप्लांट के दौरान अपनाई गई इनोवेटिव टीसीआर अल्फा बीटा और सीडी 45 आरए डिप्लेशन तकनीक. कटिंग-ऐज मैथड फुल-मैच डोनर के बिना मरीजों के लिए तैयार की गई इसकी अत्याधुनिक पद्धति ने बड़ी सफलता दिखाई है.


ऑस्टियोपेट्रोसिस से मुक्त हुई बच्ची
अस्पताल के मुताबिक, "आज ट्रांसप्लांट के चार महीने बाद सामाविया को इंफेनटाइल ऑस्टियोपेट्रोसिस से मुक्त घोषित कर दिया गया है. उसके खून में 100% डोनर सेल्स हैं. उसके ठीक होने की प्रक्रिया चल रही है और उसकी हड्डी की रीमॉडलिंग सकारात्मक रूप से आगे बढ़ रही है."


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