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भारत के इस राज्‍य में लोगों के ADHAAR पर लिखा था पता- पाकिस्‍तान कॉलोनी, अब मिला ये नाम

स्थानीय लोगों ने बताया कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तान से आए लोगों को शरण दी गई थी और उनके लिए कई कॉलोनी बनाई गईं. पाकिस्तान कॉलोनी भी उसी का हिस्सा है.

आंध्र प्रदेश की 'पाकिस्तान कॉलोनी' अब 'भागीरथ कॉलोनी' बन गई है. जिला प्रशासन की इस घोषणा से यहां रहने वाले लोगों को बड़ी राहत मिली है. अब इन्हें न तो पासपोर्ट बनवाने में दिक्कत आएगी और न ही नौकरी के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी क्योंकि अब ये पाकिस्तान कॉलोनी नहीं भागीरथ कॉलोनी के निवासी हैं. जिला प्रशासन के इस फैसले ये लोग बेहद खुश हैं.

यह कॉलोनी विजयवाड़ा के पायकपुरम में है. एनटीआर के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट जी. लक्ष्मीशा ने 28 जनवरी को आधिकारिक तौर पर घोषणा की कि पाकिस्तान कॉलोनी का नाम बदलकर भागीरथ कॉलोनी कर दिया गया है. डीएम लक्ष्मीशा ने कहा कि तीन आधार सेंटर भी बनाए जा रहे हैं, जहां पर लोग अपने आधार कार्ड में एड्रेस बदलवा सकते हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि कॉलोनी के नाम की वजह से आ रही समस्या के चलते उन्होंने कॉलोनी का नाम बदलने का प्रस्ताव दिया था और आठ साल बाद उन्हें इसमें सफलता मिली है. विजयवाड़ा म्यूनिसिपल कोर्पोरेशन ने प्रस्ताव को मंजूरी दी और 28 जनवरी को नाम बदलने की ऑफिशियल घोषणा की गई.

स्थानीय लोगों के अनुसार यह कॉलोनी 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से संबंधित है. युद्ध के दौरान पाकिस्तान से आए लोगों को शरण दी गई थी और पायकपुरम में उनके लिए एक कॉलोनी बनाई गई. यहां रहने वाले एम. राजू ने बताया कि सरकार ने शरणार्थियों के लिए शहर में कई कॉलोनी बनाई थीं और ये कॉलोनी भी उसी का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से आए रिफ्यूजी तो ये जगह छोड़कर चले गए, लेकिन कॉलोनी का नाम नहीं बदला और फिर एम. राजू का परिवार यहां आकर रहने लगा. वे बताते हैं कि उनको घर तो मिला, लेकिन सालों तक पाकिस्तान कॉलोनी में रहने के लिए उन्हें भारी खामियाजा भी भुगतना पड़ा.

एम राजू ने बताया कि 1980 के दशक में उनका परिवार श्री वेलिदंडाला हनुमंतराय ग्रांडालयम में तीन झोपड़ियों में रहता था, लेकिन नगर निगम ने उन्हें वह एरिया खाली करके पायकपुरम में प्लॉट दिया, जहां ये लोग झोपड़ी बनाकर रह सकते थे, लेकिन जब उन्होंने यहां अपना आशियाना बसाने की शुरुआत की तो बाढ़ आ गई. इसके बाद एम राजू और ऐसे ही दूसरे परिवारों की नजर इस रिफ्यूजी कॉलोनी पर पड़ी जहां पर खाली घर पड़े थे तो ये लोग यहां शिफ्ट हो गए.

एम राजू ने आगे बताया कि उनको घर तो मिल गया, लेकिन कॉलोनी के नाम ने उनके सामने नई परेशानियां खड़ी कर दीं. नौकरी हो या पासपोर्स बनवाना हो, हर चीज के लिए उन्हें सालों तक मशक्कत करनी पड़ती थी. उन्होंने कहा कि उनके भाई, उन्हें और आठ लोगों को नवाता रोड ट्रांसपोर्ट में नौकरी लगी, लेकिन एड्रेस की वजह से उनकी पोस्टिंग अटक गई, जबकि बाकी 6 लोगों को पोस्टिंग मिल गई. उन्हें बाद में ये बात समझ आई कि क्यों उनके हाथ से ये मौका चला गया. 

यहां रहने वाले सीतारमैया भी बताते हैं उन्हें रिश्तेदारों, सरकारी अधिकारियों से लेकर ऑटो रिक्शा वालों तक हर किसी को ये बताना पड़ता था कि क्यों कॉलोनी का नाम पाकिस्तान के नाम पर पड़ा क्योंकि ये नाम सुनकर लोग उन्हें अलग तरह से देखते थे. उन्होंने बताया कि पासपोर्ट के लिए आवेदन करने में भी यहां के रहने वाले बच्चों को परेशानी आती थी. इन सब परेशानियों को देखते हुए स्थानीय लोगों ने फैसला किया कि वह कॉलोनी का नाम बदलने के लिए प्रस्ताव देंगे. 

 

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