नई दिल्ली: बरसों तक अपने आंगन में आतंकवाद की बेल को पालते, पोसते और सींचते रहे पाकिस्तान को अब इसके लिए दुनिया के आगे सवाल झेलने पड़ रहे हैं. आतंकवाद का आर्थिक रसद मुहैया करवाने के सवाल पर अंतरराष्ट्रीय कठघरे में बीते एक साल से खड़े पाकिस्तान की एफएटीएफ परीक्षा का 18 अक्टूबर को दोपहर बाद नतीजा आएगा.
मौजूदा संकेत यही हैं कि आतंक के खिलाफ कार्रवाई को लेकर पाक पर लगी नाकामी की कालिख का रंग और गहरा भी हो सकता है. ऐसे में पाक अगर काली-सूची में जाने से बच भी गया तो और उसे अधिक सख्त पाबंदियों के साथ नई परीक्षा और समीक्षा से ज़रूर गुज़रना होगा.
इस कोशिश में लगे हैं पाक के हिमायती देश
हालांकि बीते पांच दिनों से पेरिस में चल रहे फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ की वार्षिक बैठक में चीन, मलेशिया और तुर्की जैसे पाकिस्तान के हिमायती मुल्क इस कोशिश में लगे हैं कि उसे यदि ग्रे-लिस्ट से निकालना मुमकीन न हो तो कम से कम यथास्थिती बनाए रखी जाए. इसके लिए पाकिस्तान की तरफ से उठाए जा रहे कदमों का हवाला भी दिया जा रहा है. मगर अगस्त में हुई एशिया पेसिफिक समूह की समीक्षा रिपोर्ट ने पाकिस्तान और उसके पैरोकारों की कोशिशों को काफी हद तक कुंद तो पहले ही कर दिया था.
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क्या कहते हैं जानकार
थिंकटैंक आईडीएसए में पाकिस्तान मामलों के जानकार डॉ अशोक कुमार बहुरिया कहते हैं कि एफएटीएफ के वित्तीय आचरण पैमानों पर पाकिस्तान अभी तक पास नहीं हो पाया है. आतंकवाद के आर्थिक पोषण और मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था FATF में शामिल एशिया-पैसिफ़िक समूह की ताजा आकलन रिपोर्ट में साफ है कि पाकिस्तान अधिकतर पैमानों पर तय मानक हासिल नहीं कर पाया है.
इस रिपोर्ट में ही दर्ज है कि बीते दो सालों में पाकिस्तान में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच के 2420 केस दज हुए जिनमें से 300 से ज़्यादा मामलों में सज़ा भी हुई. इसी लेकर आतंकवाद को धन पहुंचने के कई मामलों में भी पाक को कार्रवाई करनी पड़ी. साफ है कि पाक को यह कदम FATF की परीक्षा के मद्देनजर ही लेना पड़ा. उसमें भी पाक ने उन आतंकियों और तंजीमों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की है जो भारत के खिलाफ आतंकी हमलों के लिए ज़िम्मेदार हैं.
फाइल फोटो
FATF मानकों को प्रभावी बनाने के 11 पैमानों में से अधिकतर पर पाक फेल
एपीजी की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान FATF मानकों को प्रभावी बनाने के 11 पैमानों में से अधिकतर पर फेल ही साबित हुआ है. ऐसे में पाकिस्तान के महज़ तीन महीनों के दौरान अपने रिकॉर्ड को बेदाग बना पाना लगभग नामुमकिन है. ऐसे में जानकारों के मुताबिक संभव है कि पाकिस्तान अगर प्रगति दिखाए तो उसे अधिक सुधार का और मौका दिया जा सकता है. निर्धारित प्रक्रिया के मुताबिक किसी भी देश को काली सूची में जाने से बचने के लिए कम से कम तीन देशों के समर्थन की ज़रूरत होती है.
जानकारों के मुताबिक इस बात की संभावना ज्यादा है कि FATF में पूर्ण सहमति के अभाव और इसकी अगुवाई कर रहे चीन और अन्य कुछ मुल्कों की मदद से पाक काली सूची में जाने से बच जाए. हालांकि उसे ग्रे लिस्ट में रहते हुए फरवरी 2020 में एक बार फिर FATF की बैठक में परीक्षा देनी होगी. सूत्रों के मानें तो FATF में कई देश इस बात के हिमायती हैं कि पाक को अधिक सुधार के लिए दबाव में रखना चाहिए. ताकि वो और आतंकियों के खिलाफ और अधिक कार्रवाई करने पर मजबूर हो.
FATF के अध्यक्ष के तौर पर चीन के शियांगमिन लियू और संगठन के प्रवक्ता भारतीय समयानुसार दोपहर बाद करीब 3:30 पर प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करेंगे. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में 13-18 अक्टूबर तक चली बैठक में हुए मंथन और फैसलों के बारे में बताया जाएगा.
बैठक के एजेंडे में पाकिस्तान पर हुई चर्चा के दौरान भारत ने इस तथ्य को भी उठाया कि हाफिज सईद जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी के लिए भी पाक ने आर्थिक सहायता मुहैया कराई. इसके अलावा भारत की तरफ से FATF के निर्धारित पैमानों और पाकिस्तान के दावों पर अपने आकलन भी बैठक में शामिल सदस्यों से साझा किए. पेरिस में चल रही FATF की बैठक में 39 सदस्य देशों और इससे सम्बद्ध सगठनों समेत 205 क्षेत्राधिकार के 800 अधिकारी प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं.
पाकिस्तान ही नहीं ईरान, रूस, तुर्की का भी होगा आकलन
पेरिस में हो रही FATF की तीसरी प्लेनेरि बैठक में केवल पाकिस्तान ही नहीं, ईरान, तुर्की और रूस के वित्तीय रेकॉर्ड का भी आकलन भी एजेन्डा में था. पाकिस्तान और ईरान दोनों का ही आकलन इस बात के लिए किया गया है कि क्या ये मुल्क वित्तीय सिस्टम के लिए खतरा बन रहे हैं? वहीं तुर्की और रूस का म्यूचुअल एवेलुएशन किया गया. हालांकि बन्द कमरे में चली गहन प्रक्रिया के बाद इस कवायद के नतीजों का एलान शुक्रवार को होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस में होगा.
डॉ बेहुरिया के मुताबिक इस बात से तत्काल कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि पाकिस्तान FATF की ग्रे-लिस्ट में बना रहता है या उसे काली सूची में डाल दिया जाता है. लेकिन दोनों ही स्थिति में पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास हासिल करने और अपनी आर्थिक लाज बचने और अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारने के लिए खासी मशक्कत करनी होगी. अपनी खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के साथ जूझ रहे पाकिस्तान के लिए यह अंतरराष्ट्रीय दवाब काम करता नजर आ रहा है जहां उसे अटकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने पड़ रही है. पाकिस्तान आतंकवाद की आर्थिक रसद रोकने के लिए काम करता है तो इसका असर पूरी दुनिया पर होगा क्योंकि आतंकी गुट भी एक नेटवर्क की तरह काम करते हैं.
क्या है FATF
वित्तीय कार्रवाई कार्यबल या फ़ैन्सनशियल एक्शन टास्क फोर्स एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय नियामक संस्था है जो मनि लॉन्ड्रिंग और टेरर फाइनेंसिंग के रोकथाक के लिए काम करती है. भारत समेत 39 मुल्क इसके सदस्य हैं और इसके साथ ही आईएमएफ और विश्व बैंक जैसी कई अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं भी FATF से जुड़ी हैं. बीते तीस सालों से काम कर रहे FATF ने आतंक की आर्थिक रसद रोकने और कालेधन पर लगाम लगाने के लिए कई पैमाने बनाए हैं, जिनके आधार पर मुल्कों के वित्तीय वातावरण और संस्थाओं के कामकाज का आकलन होता है.
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