Jammu Kashmir News: पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी और आतंकी समूह डिजिटल मंचों के जरिए जम्मू-कश्मीर में भर्ती के प्रयास तेज करने की कोशिश कर रहे हैं. कड़े सुरक्षा प्रबंधों के चलते प्रत्यक्ष संवाद करना मुश्किल होता जा रहा है, जिसके कारण अब पाक खुफिया एजेंसियां डिजिटल मंचों के जरिए भर्ती कर रही हैं. 


इस मामले की जानकारी देते हुए एक अधिकारी ने बताया कि ये समूह सोशल मीडिया मंचों और ‘एक्स’, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे मैसेजिंग ऐप के जरिए कम उम्र के युवाओं को बहकाने का प्रयास कर रहे हैं. पकड़े जाने से बचने के लिए वे फर्जी प्रोफाइल और वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) का इस्तेमाल कर रहे हैं. 


भर्ती करने के लिए कैसे बनाते हैं महौल?


अधिकारियों ने बताया कि एक बार पहचान हो जाने के बाद इन युवकों को निजी समूहों में शामिल कर लिया जाता है, जहां उन्हें सुरक्षा बलों की ओर से कथित रूप से किए गए अत्याचारों से जुड़े वीडियो समेत बरगलाने वाली चीजें दिखाई जाती हैं. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) से जुड़े हैंडलर नफरत भड़काने और भर्ती के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए यह रणनीति अपनाते हैं. 


चरमपंथी से जुड़ा साहित्य पढ़ाया जा रहा?


इतना ही नहीं अफसरों ने ये भी बताया कि एक नई चिंता ये पैदा हुई है कि इन समूहों में भर्ती होने वाले संभावित लोगों को अब सैय्यद कुतुब नामक मिस्र के चरमपंथी से जुड़ा साहित्य पढ़ाया जा रहा है, जिसकी विचारधारा ने अल-कायदा समेत विभिन्न कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों को काफी प्रभावित किया है. साल 1966 में फांसी पर लटकाए गए कुतुब ने धर्मनिरपेक्ष सरकारों और पश्चिमी देशों के प्रभाव के खिलाफ जिहाद की वकालत की थी.


विभिन्न डिजिटल माध्यमों से दिया जा रहा प्रशिक्षण 


अधिकारियों के मुताबिक पहले आतंकवाद समर्थक नए लोगों की भर्ती के लिए प्रत्यक्ष संपर्क पर निर्भर रहते थे, लेकिन जैसे-जैसे सुरक्षा एजेंसियों ने ऐसे नेटवर्कों को ध्वस्त करने के प्रयास तेज किए हैं, उनके तरीके भी बदल गए हैं. इन समूहों में नए भर्ती हुए लोगों को क्षेत्र में काम सौंपे जाने से पहले यूट्यूब समेत विभिन्न डिजिटल माध्यमों से प्रशिक्षण दिया जाता है. अधिकारियों ने विशेष रूप से दक्षिण कश्मीर में सोशल मीडिया के माध्यम से भर्ती और विचारधारा को बढ़ावा देने संबंधी गतिविधियों में वृद्धि देखी है. इन खतरों का मुकाबला करने के लिए सुरक्षा एजेंसियों ने सोशल मीडिया निगरानी इकाइयां स्थापित की हैं, जो संदिग्ध लोगों पर नजर रखकर कार्रवाई करती हैं. 


मास्टोडॉन जैसे एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग भेजने वाले प्लेटफार्म का करते यूज


उन्होंने कहा कि इंटरनेट के प्रसार ने सोशल मीडिया को संचार और सूचना साझा करने का एक आकर्षक साधन बना दिया है, जिससे आतंकवादी संगठनों को अपना नेटवर्क बढ़ाने में मदद मिलती है. उन्होंने बताया कि खुद को चरम राष्ट्रवादी बताने वाले कुछ व्यक्तियों की पहचान प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी सहित कट्टरपंथी समूहों से जुड़े होने के रूप में की गई है. इसके अलावा आतंकवादी गुप्त संचार और परिचालन समन्वय के लिए टेलीग्राम और मास्टोडॉन जैसे एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग भेजने वाले प्लेटफार्म और ऐप का तेजी से इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे ऐप राजौरी और पुंछ जैसे कुछ जिलों में पहले से ही प्रतिबंधित हैं.


यह भी पढ़ें- Bahraich Violence: बहराइच में बुलडोजर एक्शन का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, आरोपियों ने बताया सरकार का मकसद