Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की सियासत में अब औरंगज़ेब के विवाद के बाद पंडित नेहरू और छत्रपति शिवाजी की एंट्री हो चुकी है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि पंडित नेहरू ने अपनी किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में छत्रपति शिवाजी का अपमान किया और उनकी छवि ख़राब की थी.


हालांकि ऐतिहासिक श्रोत खंगालने के बाद एक अलग तस्वीर सामने आती है. जहां डिस्कवरी ऑफ इंडिया किताब में पंडित नेहरू ने छत्रपति शिवाजी का गुणगान किया था और हीरो की तरह पेश किया था. छत्रपति शिवाजी को लेकर विवादित लेख पंडित नेहरू ने अपनी किताब ‘ग्लिम्प्स ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ वॉल्यूम 1 में लिखा था जो साल 1934 में प्रकाशित हुई थी.


क्या लिखा था किताब में?


किताब के पहले संस्करण के 91 चैप्टर द सिख एंड मराठा के पेज 501 और 502 पर पंडित नेहरू ने छत्रपति शिवाजी पर अपने विचार रखते हुए लिखा था, “अपने दुश्मनों के साथ वो (शिवाजी) किसी भी तरीके को अपनाने के लिए तैयार थे, चाहे अच्छा हो या बुरा, बस अपना लक्ष्य पाने के लिए उन्होंने बीजापुर की ओर से भेजे गए एक सेनापति की धोखे से हत्या कर दी. शिवाजी के कुछ काम, जैसे बीजापुर के सेनापति की छल से हत्या, हमें उनके प्रति कम सम्मानित महसूस कराते हैं.”


इस लेख के बाद हुई पंडित नेहरू की आलोचना


साल 1934 में किताब के छापने के बाद पंडित नेहरू की हर तरफ़ आलोचना शुरू हो गई थी और साल 1936 के मामा साहिब के नाम से मशहूर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और कांग्रेस के नेता टीआर देओगिरकर ने पंडित नेहरू को पत्र लिख कर उन्हें चेताया था और उन्हें छत्रपति शिवाजी पर मराठी लेखकों के लेख भेजे थे. जिसके बाद पंडित नेहरू ने 26 मार्च 1936 को आर देओगिरकर को पत्र लिख कर सफाई  दी कि उनके संज्ञान में आया कि छत्रपति शिवाजी पर लिखे गए लेख पर बॉम्बे की प्रेस उनका विरोध कर रही है साथ ही वो मानते हैं कि उनका लेख ग़लत था.


सफाई में क्या बोले जवाहर लाल नेहरू?


अपनी सफ़ाई में पंडित नेहरू ने कहा था कि चूंकि किताब जेल में लिखी गई थी जहां न ही उनके पास रिफरेन्स बुक थी और न ही जानकार, ऐसे में उन्होंने सब कुछ स्मरणशक्ति और पुराने नोट्स के आधार पर लिखा जो कि बेहद ग़लत है.


अपनी गलती मानने के साथ ही पंडित नेहरू ने जानकारी दी थी कि छत्रपति शिवाजी और अफ़ज़ल ख़ान की घटना वाला विवादित हिस्सा वो अपनी किताब के नए संस्करण से हटा देंगे. साथ ही मराठी लेखकों के लेख के लिए पंडित नेहरू ने देओगिरकर का शुक्रिया अदा किया था. पंडित नेहरू की ओर से लिखा गया ये पत्र सिलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ जवाहरलाल नेहरू पुस्तक के वॉल्यूम 7 में दर्ज है जिसकी Exclusive प्रति एबीपी न्यूज़ के पास भी मौजूद है.


पंडित नेहरू के इस पत्र के बाद ‘ग्लिम्प्स ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ का दूसरा संस्करण साल 1939 में छपा जिसमें छत्रपति शिवाजी पर लिखा गया विवादित हिस्सा हटा दिया गया था. हालांकि जिस तरह आज पंडित नेहरू की छत्रपति शिवाजी पर लिखे लेख पर आलोचना हो रही है, ऐसे ही उनके जीवनकाल में भी कई बार हुई और उन्होंने कई बार सफ़ाई भी दी.


साल 1957 में महाराष्ट्र के प्रतापगढ़ में पंडित नेहरू को छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा का अनावरण करना था तब भी ग्लिम्प्स ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री के पहले संस्करण में शिवाजी पर लिखे गए विवादित लेख को आधार बनाते हुए पंडित नेहरू का मराठी लेखक एसजी भावे ने विरोध किया था और उन पर छत्रपति शिवाजी को पसंद न करने और अपमान करने आरोप लगाया था. जिसके जवाब में पंडित नेहरू ने लंबी चौड़ी चिट्ठी लिख कर 14 नवंबर 1957 को सफाई दी थी कि उन पर ये आरोप तब लगाए जा रहे हैं तब उनकी लिखी गई किताब ग्लिम्प्सेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री को लिखे गए 25 साल हो चुके हैं.


‘मैंने शिवाजी की बहुत प्रशंसा की’


पंडित नेहरू ने अपना बचाव करते हुए यह भी लिखा था कि किताब लिखते समय छत्रपति शिवाजी पर उनकी जानकारी सीमित थी और पंडित नेहरू ने विदेशी इतिहासकारों पर आरोप लगाते हुए कहा था कि उस समय उन्होंने छत्रपति शिवाजी के विषय में सिर्फ़ विदेशी इतिहासकारों को पढ़ा था, जिनकी राय शिवाजी के प्रति निष्पक्ष नहीं थी. अपने इस पत्र में देओगिरकर वाली घटना का जिक्र करते हुए नेहरू ने पत्र में लिखा कि उन्होंने पहले कुछ बातों को सही नहीं समझा, लेकिन जब उन्हें  शिवाजी के जीवन की अधिक प्रामाणिक जानकारी मिली, तो उनकी राय बदल गई. पंडित नेहरू ने ज़ोर देकर पत्र में लिखा कि यह कहना कि वो शिवाजी को पसंद नहीं करते यह गलत होगा क्योंकि उन्होंने हमेशा ही शिवाजी की बहुत प्रशंसा की थी.


बताते चलें कि पंडित नेहरू जब साल 1930 से साल 1933 तक नैनी सेंट्रल जेल में थे तब वहां से उन्होंने अपनी बेटी इंदिरा गांधी को 196 पत्र लिखे थे, जिसमें उन्होंने विश्व और भारत पर अपने विचार लिखे थे और फिर जेल से बाहर आने के बाद पंडित नेहरू ने इन चिट्ठियों को एक किताब में छपवा दिया था और उसका नाम ‘ग्लिम्प्स ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ रखा था.


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