पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को सात समंदर पार पहुंचाया
15 अगस्त, 1947 जब देश स्वतंत्र हुआ तो सुबह 6:30 बजे आकाशवाणी से पं. ओंकारनाथ ठाकुर का राग देश में निबद्ध वन्दे मातरम् के गायन का प्रसारण किया गया था. उनकी इस प्रस्तुति को आज भी सहेज कर रखा गया है.
नई दिल्ली: भारतीय शास्त्रीय संगीत की बात आती है तो उसमें पंडित ओंकारनाथ ठाकुर का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है. वे ऐसे संगीतज्ञ थे जिसकी तारीफ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी करते थे. महामना मदनमोहन मालवीय भी उनसे बेहद प्रभावित थे. ओंकारनाथ ठाकुर पहले ऐसे संगीतज्ञ थे जिन्होने संगीतज्ञों को उनका पारितोषिक दिलाना शुरू किया.
संगीतज्ञों की हकों को वह मुखर होकर उठाते थे. सरदार पटेल भी उनकी गायकी को पंसद करते थे. ओंकारनाथ ठाकुर के पिता नाना साहब पेशवा की सेना में योद्धा थे. उनका जन्म गुजरात के बड़ौदा में हुआ था. यही उनकी प्राथमिक शिक्षा आरंभ हुई. ओंकारनाथ के घर की माली हालत ठीक नहीं थी उनका बचपन सीमित संसाधनों में बीता.
बचपन में हो गया था पिता का देहांत
बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया. इसी दौरान एक संगीत प्रेमी ने उनकी गायकी की प्रतिभा को पहचान लिया और संगीत की शिक्षा के लिए मुंबई के विष्णु दिगंबर संगीत महाविद्यालय में शिक्षा लेने के लिए भेज दिया. उनकी शिक्षा पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के दिशा निर्देशन में शुरू हुई.
उन्होंने अपनी गायकी का प्रर्दशन नेपाल में भी किया. वहां के महाराज के वे दरबारी गायक बन गए. इसके साथ ही उन्होने जर्मनी, इटली, फ्रांस, इंग्लैंड, स्विट्जरलैंड और रूस में भी अपनी गायकी जलबा बिखेरा.
'संगीत निकेतन की स्थापना'
पत्नी के निधन के बाद वे अकेले ही रहे और मुंबई में संगीत निकेतन की स्थापना की. वे बेहद प्रतिभाशाली थे. जब वे बीस वर्ष के थे उन्हें लाहौर के गंधर्व संगीत विद्यालय का प्रिंसिपल बनाया गया.
मदन मोहन मालवीय ने उन्हें एक बार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल होने का न्यौता दिया, काशी आकर उन्हें इतना अच्छा लगा कि वे यहीं बस गए.
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