चेन्नई: जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु की राजनीति उथलपुथल का शिकार है. राज्य में अब एआईडीएमके में वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गई है. इस लड़ाई में एक तरफ मुख्यमंत्री और जयललिता के विश्वासपात्र पन्नीसेल्वम हैं तो दूसरी तरफ अम्मा की सबसे करीबी माने जाने वालीं शशिकला.

जयललिता की पार्टी एआईडीएमके में चल रही उठा पटक के बाद अब बड़ा सवाल यही है कि क्या ये पार्टी टूट जाएगी? जिस पन्नीसेल्वम को जयललिता ने अपने जीवन में दो बार मुख्यमंत्री बनाया था, उसी पन्नीरसेल्वम नें मुख्यमंत्री बनने जा रही शशिकला के खिलाफ बगावत की है. पार्टी दो गुटों में बंट गई है. ऐसे में अब एक और सवाल पैदा हो गया है कि क्या पन्नीरसेल्वम अपनी नई पार्टी बना लेंगे या विपक्षी डीएमके के साथ हो लेंगे.

पन्नीरसेल्वम गुट के साथ 50 विधायक ?

अब सवाल ये है कि कहीं डीएमके की नजर सरकार बनाने पर तो नहीं है, क्योंकि अगर पन्नीरसेल्वम गुट का 50 विधायकों के समर्थन का दावा सही है तो फिर डीएमके के समर्थन से बात बन सकती है, क्योंकि पन्नीर सेल्वम की 50 और डीएमके की 89 सीटों को जोड़ने से कुल 139 सीटें हो जाती हैं यानी बहुमत हो जाता है.

साल 1972 में क्या हुआ था ?

इतिहास के पन्ने पलटे तो साल 1972 में कुछ ऐसा ही हुआ था. जयललिता के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी डीएमके के नेता एम करुणानिधी का संबंध भी एमजीआर के साथ रहा है. पहले एमजीआर भी डीएमके का ही हिस्सा थे.

एमजीआर ने की थी एडीएमके की स्थापना

अन्नादुरई के निधन के बाद दोनों नेताओं के बीच दूरियां बनना शुरू हुईं. 1969 में करुणानिधि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने थे. उस वक्त एमजीआर ने ही करुणानिधि को ताकतवर बनाने में अहम भूमिका अदा की थी. लेकिन 1972 में जब उन्होंने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया तो करुणानिधि ने उन्हें पार्टी से बर्खास्त कर दिया. इसके बाद एमजीआर ने एडीएमके की स्थापना की और पांच साल बाद ही सीएम भी बन गए.

1982 में जयललिता को सियासत में लाने वाले एमजीआर ही थे. 1987 में एमजीआर के निधन के बाद पार्टी में उनकी विरासत को लेकर जंग छिड़ी जिसमें आखिरकार बाजी जयललिता के हाथ रही.

1987 में जयललिता बनाम जानकी-

जयललिता के सामने उस वक्त एमजीआर की पत्नी ‘जानकी’ थी. जिन्हें मुख्यमंत्री बनवा दिया गया था. लेकिन 1989 के चुनाव में पार्टी की हार हुई और विरोधियों को मजबूरी में उन्हें नेता विपक्ष का नेता बनाना पड़ा. 1991 के चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने वाली जयललिता की पार्टी को बहुमत मिला. वह पहली बार तमिलनाड़ु की सीएम बनीं.

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