करगिल युद्ध भारत पर पाकिस्तान की तरफ से थोपी गई एक ऐसी लड़ाई थी, जिस जंग में भले ही भारत की जीत मिली, लेकिन उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी. दो महीने तक लड़े गए इस युद्ध में भारत के 527 वीर सपूत शहीद हो गए थे और 1300 से ज्यादा घायल हुए थे. दुश्मनों के अधिक ऊंचाई वाली जगहों पर चुपके से कब्जा करने और खड़ी चढ़ाई की वजह से भारतीय जवानों के लिए यह लड़ाई दुनिया की मुश्किल भरी लड़ाइयों में से एक थी. लेकिन भारतीय जवानों के साहस और वीरता के आगे पाकिस्तान घुसपैठिए दुम दबाकर भागते हुए नजर आए.


तोलोलिंग पर कब्जा करने की मिली थी जिम्मेदारी    


2 राजपूताना रायफल्स के जिन भारतीय जवानों को तोलोलिंग पर कब्जा करने के लिए भेजा गया था उनमें से एक थे मेजर पद्मपाणि आचार्य. मेजर पद्मपाणि आचार्य को 28 जून 1999 को कंपनी कमांडर के तौर पर दुश्मनों के कब्जे तोलोलिंग से से इसे अपने नियंत्रण में लेने का आदेश दिया गया था. लेकिन पाकिस्तानी घुसपैठिए ने वहां पर माइंस बिछा रखी थी और अत्याधुनिक हथियारों से लैस थे.


दुश्मनों की गोलियां खाकर भी बढ़ते रहे मेजर पद्मपाणि


मेजर पद्मपाणि को दुश्मनों की कई गोलियां लगी लेकिन वे अपने मिशन में लगातार आगे बढ़ते रहे और दुश्मनों को वहां से खदेड़ कर उस चौकी पर अपना कब्जा किया. मेजर पद्मपाणि हालांकि इस मिशन को पूरा करते ही बुरी तरह दुश्मनों को गोलियों से घायल होने की वजह से शहीद हो गए.





पिता से कहा था- बेटी को सुनाएं महाभारत की स्टोरी


लड़ाई से कुछ दिनों पहले ही उन्होंने अपने पिता को पत्र लिखते हुए कहा था कि ‘लड़ाई जीवनभर का सम्मान’ है. उसी पत्र में मेजर पद्मपाणि ने अपने पिता से अनुरोध करते हुए कहा था कि उनकी बेटी चारू को एक दिन महाभारत से एक स्टोरी सुनाएं, जो दोबारा अपने पिता को कभी नहीं देख पाई. लेकिन 20 साल की आयु में वह भी सेना ज्वाइन करना चाहती है.




हैदराबाद में साल 1968 में 21 जून के पैदा हुए भारत के इस वीर सपूत पद्मपाणि उस्मानिया यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद 1993 में आर्मी में शामिल हुए थे. उन्हें मद्रास में प्रशिक्षण के बाद राजपूताना रायफल्स में कमीशन मिला. उनकी शादी 1996 में हुई और जैसे ही वे पिता बनने वाले थे कि ये करगिल का वॉर शुरू हो गया था.


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