करगिल विजय दिवस की 26 जुलाई 2021 को 22 साल पूरे हो रहे हैं. पाकिस्तान ने साल 1999 में धोखे से भारत की कुछ चोटियों पर अपना कब्जा कर लिया है. लेकिन, इस पर अपना नियंत्रण पाना भारतीय सेना के लिए इतना आसान नहीं था. काफी ऊंचाई और दुर्गम रास्तों की वजह से यह जंग दुनिया की मुश्किल भरी लड़ाइयों में से एक थी. लेकिन भारतीय जवानों के हौसले और उनकी वीरता के आगे दुश्मन घुटने टेकते हुए नजर आए.


15,000 फीट की ऊंचाई पर कब्जा करने के लिए नाइक दिगेन्द्र की प्लान ने तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल वीपी मलिक को भी आश्चर्यचकित कर दिया था. तोलोलिंग पर कब्जा करने के तीन असफल प्रयासों के बाद द्रास में 2 जून 1999 को सैनिक दरबार लगाया गया था. जब जनरल मलिक ने इस सेना की टुकड़ी से तोलोलिंग की पहाड़ी को आजाद कराने की योजना के बारे में पूछी थी तो नायक दिगेन्द्र ने कहा था कि मेरे पास योजना है, जिसके माध्यम से हमारी जीत सुनिश्चित है.


राजपूताना रायफल्स को मिली तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा की जिम्मेदारी


दो महीने तक लड़ी गई करगिल की लड़ाई के दौरान पहली जीत नाइक दिगेन्द्र कुमार ने दिलवाई थी. करगिल की लड़ाई के दौरान अपनी जमीन वापस पाने के लिए भारतीय सेना ने जो ऑपरेशन शुरू किया उसका नाम दिया गया था 'ऑपरेशन विजय'. 2 राजपूताना रायफल्स को करगिल जाकर पाकिस्तानी घुसपैठिए से तोलोलिंग की पहाड़ी पर अपना कब्जा जमाने का आदेश दिया गया. उस वक्त तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल वीपी मलिक ने यह जिम्मेदारी 2 राजपूताना रायफल्स को सौंपी.


2 राजपूताना रायफल्स का एक दल तोलोलिंग की तरफ से बढ़ रहा था और उसकी अगुवाई कर रहे थे मेजर विवेक गुप्ता. इस दल का थे नायर दिगेन्द्र कुमार. करीब 14 घंटे तक चट्टानों पर खड़ी चढ़ाई के बाद यह दल तोलोलिंग के पास पहुंचा. लेकिन वहां पर पाकिस्तानी घुसपैठिए ने पहले से 11 बंकर बना रखे थे.






नायक दिगेन्द्र ने काटी पाकिस्तानी मेजर का गर्दन


जैसे ही दल आगे बढ़ा तो पाकिस्तानी सैनिकों की तरफ से भीषण गोलीबारी शुरू हो गई. खराब मौसम की वजह से आगे कुछ भी देखने में काफी मुश्किलें आ रही थी. नायक दिगेन्द्र आगे बढ़ने के लिए अपना हाथ पत्थर के बीच डाला और दुश्मन की फायर करती मशीन गन की बैरल उनके हाथ आई. इसके बाद उन्होनें एक ग्रेनेड निकालकर बंकर के अंदर फेंका, जिससे पहला बंकर पूरी तरह बर्बाद हो गया.


इसके बाद सामने घात लगाए बैठा दुश्मन सतर्क हो गया और नायक दिगेन्द्र और उनके दल पर जोरदार फायरिंग शुरू कर दी. इस दौरान मेजर विवेक गुप्ता समेत जवान शहीद हो गए. नायक दिगेन्द्र को भी पांच गोलियां लगी लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और हिम्मत जुटाकर फिर अगे बढ़ते हुए ग्रेनेड बंकरों पर फेंके.




उसी वक्त नाइक दिगेन्द्र के सामने अचानक पाकिस्तानी सेना के मेजर अनवर खान आए गए. ऐसे ही मेजर खान से आमना-सामना हुआ नायक दिगेन्द्र कुमार ने फौरन छलांग लगाकर उसे पकड़ लिया और अपने डीगल से अनवर खान की गर्दन काट दी. 13 जून 1999 को नायक दिगेन्द्र ने तोलोलिंग की पहाड़ी पर सुबह 4 बजे भारतीय झंडा लहरया, जो ऑपरेशन विजय की भारत के लिए यह पहली जीत थी. उनके इस असीम साहस और वीरता के लिए महावीर चक्र से नवाजा गया था.




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