करगिल युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ जंग में भारत की विजय के 22 पूरे साल होने जा रहे हैं. 26 जुलाई 1999 को करगिल जंग में भारत ने जीत का झंडा लहराया था और लड़ाई को ‘ऑपरेशन विजय’ नाम दिया गया था. इस युद्ध के दौरान भारतीय वीर सपूतों ने जिस तरह का शौर्य और पराक्रम दिखाया, उसी वजह से यह जीत मुमकिन हो पाई. करगिल युद्ध के दौरान चार बहादुर जवानों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. लेकिन इन चारों वीर सपूतों में से एक नाम है राइफलमैन संजय कुमार.


टैक्सी से सेना ज्वाइन करने का सफर


13 जम्मू कश्मीर रायफल्स के जवान संजय कुमार एक वक्त टैक्सी ड्राइवर थे और सेना की तरफ से तीन बार उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया था. करगिल युद्ध की लड़ाई के दौरान वह उस टुकड़ी का हिस्सा थे जिसे मुश्कोह घाटी में प्वाइंट 4875 के फ्लैट टॉप पर कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गई थी.


करगिल जंग में राइफल मैंन संजय कुमारको 4 जुलाई 1999 को मश्कोह घाटी में प्वाइंट 4875 के फ्लैट टॉप क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए भेजा गया. जैसे ही वे आगे बढ़े कि दुश्मनों की ओर से जबरदस्त ऑटोमेटिक गन से गोलीबारी शुरू हो गई और ऐसी स्थिति में टुकड़ी का आगे बढ़ना मुश्किल लग रहा था.




इसके बाद राइफलमैन संजय कुमार ने आमने-सामने की मुठभेड़ में तीन पाकिस्तानी फौज को वहीं पर ढ़ेर कर दिया और खुद लहूलुहान हालत होने के बावजूद जख्म से बेपरवाह आगे की ओर बढ़ गए. संजय की तरफ से अचानक किए गए इस हमले के बाद दुश्मन वहां से भाग खड़ा हुआ.  पाकिस्तानी फौज अपनी यूनिवर्सल मशीनगर तक छोड़ते हुए जान बचाकर भाग निकले.


दुश्मनों की मशीनगन से उन्हीं पर हमला


इसके बाद राइफलमैन संजय ने उसकी वो गन भी ले ली और दुश्मनों पर लगातार हमला बोलते रहे. उनकी इस जांबाजी को देखते हुए उसकी टुकड़ी के दूसरे जवानों में भी जोश भर उठा और वे सभी दुश्मनों पर टूट पड़े. लेकिन जब तक उन्होंने गंभीर हालत में जख्मी होने के बावजूद प्वाइंट फ्लैट टॉप खाली नहीं करवा लिया वह दुश्मनों के साथ लड़ते रहे. उनके इस शौर्य के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.






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